श्रवण कुमार कंधे पर अंधे माता पिता को काँवर में बिठाकर तीर्थ यात्रा कराने के लिए ले जा रहे थे। वे पितृ भक्ति का आदर्श प्रस्तुत करना चाहते थे।
एक स्थान ऐसा आया जहाँ उसके विचार बदल गये। काँवर जमीन पर रख दी। बोले आप लोग तो पैदल चल सकते हैं। रास्ता बताने का काम मैं करूंगा, आप लोग पितृ भक्ति का अनुचित लाभ न उठाइये।
लड़के की इस प्रकार स्वार्थ सनी क्रोध भरी वाणी सुन कर पिता सन्न रह गये। उनने इतना ही कहा -बेटे रात तो हो गई है पर हम लोगों को इस क्षेत्र में नहीं ठहरना चाहिए। इस इलाके को रात में ही चल कर पार कर लेना चाहिए।
वैसा ही किया गया। वह क्षेत्र समाप्त होते ही श्रवण कुमार के विचार बदले उनने पिता माता से क्षमा माँगी और पुनः काँवर में बिठा लिया। यह तो उनका सौभाग्य था जिसके आधार पर वे अपना अनुकरणीय आदर्श स्थापित कर रहे थे। फिर ऐसी उन्हें दुर्बुद्धि कैसे उपजी।
वृद्ध पिता ने कहा यह पुरातन काल से कंस दानव की नगरी रही है। भूमि में उसी की दुष्टता के संस्कार भरे हुए थे उसी के प्रभाव से तुम्हें ऐसी कुबुद्धि उपजी।
स्थानों में भी भले बुरे संस्कार होते हैं। वे वहाँ के प्राणियों को अपनी विशेषता के अनुसार प्रभावित करते रहते हैं।