मस्तिष्क की परतों में छिपे “टाइम कैप्सूल”

May 1991

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

इस संसार में जितने भी रहस्य रोमाँच है, वह सब मस्तिष्क की विज्ञात क्षमता से परे एवं अविज्ञात की परिधि में आते हैं। दैनिक जीवन में हम जो कुछ सीखते व समझते हैं वह मस्तिष्कीय सामर्थ्य का एक स्वल्प अंश भर है, जिसका कि हम भौतिक जानकारी बढ़ाने और सुविधा-साधन जुटाने के रूप में उपयोग करते हैं। यह तो मस्तिष्कीय शक्ति का स्थूल पक्ष है, जिसे बुद्धि के रूप में जाना समझा जाता है, पर इसका पक्ष इससे अनेक गुना विशाल और अनन्त संभावनाओं से भरा-पूरा है। जिस दिन इस विशाल शक्ति भण्डार को अनावृत कर लिया जायेगा, उस दिन यह विश्व उन घटनाओं से सर्वथा रहित हो जायेगा। जिन्हें इन दिनों हम दुनिया भर में रहस्य रोमाँच के रूप में घटित होते हुए देखते-सुनते हैं।

ऐसी ही एक रहस्यमय घटना सन् 1923 में शुलकौफ और उनके परिवार के साथ नार्थ सी के सिल्ट द्वीप पर घटी।

विलियम हटन और कैप्टन शुलकौफ बड़े घनिष्ठ मित्र थे। लंदन में इनका पास-पास ही मकान था। घनिष्ठता इतनी थी कि घूमने-फिरने का जब कोई कार्यक्रम बनता, तो दोनों परिवार साथ-साथ होते। इनकी गर्मियों की छुट्टियां प्रायः साथ-साथ सिल्ट द्वीप में बीतती।

प्रति वर्ष की तरह सन् 1923 में भी दोनों परिवार छुट्टियां बिताने सिल्ट द्वीप चले गये, किन्तु अभी वह समाप्त भी नहीं हुई थी कि विलियम हटन को आवश्यक कार्य हेतु ड्यूटी पर वापस बुला लिया गया। बड़ी अनिच्छा से वे जाने को तैयार हुए। 2 अगस्त को प्रस्थान का प्रोग्राम बना। इस दिन मित्र का परिवार तथा हटन के पत्नी-बच्चे सभी हटन को छोड़ने के लिए हवाई अड्डे तक आये। उन्हें विदा कर सभी लौट ही रहे थे, कि धीरे-धीरे शाम घिरने लगी। वे समुद्री तट पर सूर्यास्त के दृश्य का आनंद लेते हुए लौट रहे थे कि तभी अचानक शुलकौफ चलते-चलते रुक गये और असमंजस में पड़े समुद्र की ओर देखने लगे। सभी की दृष्टि उस ओर उठ गई। समुद्र में तेज ज्वार उठ रहे थे। इन्हीं के बीच फँसी एक नौका उससे सुरक्षित बाहर निकालने के लिए जूझ रही थी, पर भीषण समुद्री लहरों के बीच नाविकों का प्रयास बार-बार निष्फल हो जाता। प्रयत्न जारी था, नाव में सवार 15-20 मछुआरे नाव को लहरों से बाहर निकालने की जी तोड़ कोशिश कर रहे थे।

इसी बीच एक जोर का धमाका हुआ। शुलकौफ का ध्यान तट की ओर खिंच गया। देखा कि कुछ मछुआरे खड़े थे, जो अपने साथियो को बचाने का प्रयास कर रहे थे। इसी सिलसिले में उन्होंने लहरों में फँसी नाव तक तोप के सहारे लाइफ लाइन फेंकने की कोशिश की थी। नाव में सवार लोगों ने उसे पकड़ने का प्रयत्न किया, पर निष्फल गया। ज्वार ने उसे नाव से दूर जा पटका। तट पर खड़े साथियों ने दुबारा तोप दागी, किन्तु इस बार भी समुद्र में फँसे नाविक उसे पकड़ने में विफल रहे। पुनः तीसरी बार तोप द्वारा मझधार में फँसी नाव तक लाइफ लाइन फेंकी गयी, मगर न जाने तभी अचानक कहाँ से कई मीटर ऊँची एक ज्वार आ गया और उसने नाव व लाइफ लाइन को एक दूसरे से काफी दूर पहुँचा दिया। मौत से जूझते नाविकों के भाग्य ने इस बार भी साथ न दिया। इस बीच बार-बार के धमाकों से पास-पड़ोस की नाविक बस्तियों से अनेक स्त्री, पुरुष व बच्चे वहाँ एकत्र हो गये थे। उन्होंने मौत के मुँह में फँसे अपनी बस्ती वालों को देखा, तो सभी मिलकर ईश्वर से उनके सुरक्षित तट तक वापस आ जाने की प्रार्थना करने लगे। शुलकौफ दंपत्ति, उनके बच्चे तथा हटन की पत्नी-बच्चे ने भी उनका साथ दिया। वे अपने आराध्य ईसा को याद करने लगे।

उधर तट में स्थित रक्षक दल इन सब से अनभिज्ञ सुरक्षा उपायों में लगा हुआ था। नाविकों के बचाने के जब तीन बार के लाइफ लाइन प्रयास निरर्थक गये, तो उन्होंने इस बार लाइफ लाइन फेंकने के बजाय एक छोटी डोंगी के सहारे उन तक पहुँचने का निश्चय किया। इस निर्णय के बाद एक छोटी नौका में पाँच मछुआरों को बैठा कर उन तक रवाना किया गया। ऊँची-नीची लहरों के भीषण थपेड़ों से संघर्ष करती हुई डोंगी धीरे-धीरे मझधार की ओर बढ़ने लगी। सभी साँस रोके इस जीवन-मृत्यु के बीच का संघर्ष देख रहे थे और साथ ही भगवान से लगातार मनुहार भी करते जा रहे थे। शनैः-शनैः डोंगी लहरों के बीच फँसी नाव तक पहुँच गई। सभी खुशी से झूम उठे और ईश्वर को लाख-लाख धन्यवाद देने लगे, किन्तु यह क्या। अभी रक्षक नौका फँसी नाव के पास पहुँची ही थी कि एक भीषण ज्वार आया और दोनों नाव उसमें कहीं खो-सी गयी। लहरे शान्त हुई, तो नाव में सवार नाविकों का दूर-दूर तक कहीं अता-पता नहीं था। जो समुद्र थोड़े समय पूर्व विकराल बना हुआ था और सब कुछ लील लेना चाहता था, वह ऐसे शान्त हो गया, जैसे कुछ हुआ ही न हो। शुलकौफ और उनके पत्नी-बच्चे दुःख के सागर में डूब गये। साँत्वना देने के लिए जब साथी नाविकों की ओर मुड़े, तो भय मिश्रित आश्चर्य में पड़ गये। अभी-अभी जो रक्षक नाविक तट पर रक्षा के विभिन्न प्रकार के उपक्रम करते दिखाई पड़ रहे थे, वे न जाने यकायक कहाँ गायब हो गये। वहाँ चलायी जाने वाली न तोप थी, न तोपची और न स्त्री, पुरुष व बच्चों के वह झुण्ड, जो कुछ क्षण पूर्व तक वहाँ एकत्रित हो यह सब दृश्य देख रहे थे।

तो क्या यह दृष्टिभ्रम था? शुलकौफ मन ही मन बुदबुदाये, किन्तु उनके साथ उनके पत्नी, बच्चे और हटन के पत्नी-बच्चे भी थे। सभी को एक साथ इस प्रकार का दृष्टिभ्रम कैसे हो सकता है। इन्हीं विचारों में डूबते-उतराते वे कुछ आगे बढ़ गये, तभी उन्हें वहाँ एक चबूतरा दिखाई पड़ा। यह चबूतरा ठीक उसी स्थान पर था, जहाँ कुछ समय पूर्व तोप रखी दिखाई पड़ी थी। उत्सुकता वश वे उसके और समीप पहुँच गये तो पता चला कि उसमें एक शिलालेख अंकित है, जिसमें लिखा था- “ईश्वर उन सभी नाविकों और उनके रक्षक साथियों की आत्मा को शान्ति प्रदान करे, जो 2 अगस्त सन् 1872 की शाम समुद्र में आये भीषण तूफान में काम आ गये। उनकी चिरस्मृति में समस्त मछुआरा समुदाय।”

शिलालेख को पढ़ने के बाद शुलकौफ कुछ सोचने लगे कि अचानक चौंक पड़े यह जान कर कि आज भी तो अगस्त की दो तारीख है, अर्थात् 51 वर्ष पूर्व का वही दिन जिस रोज यह दुर्घटना हुई थी। इस रहस्यमय घटना के बारे में कुछ विशेष जानने के लिए सभी स्थानीय पादरी के घर की ओर चल पड़े। वहाँ पादरी ने जो कुछ बताया, उसे सुन कर सभी अचम्भे में पड़ गये। उसके अनुसार हर वर्ष इसी दिन इसी समय उक्त घटना की पुनरावृत्ति होती है, जिस को इस द्वीप के हजारों लोग ज्यों-की-ज्यों घटित होते हुए देखते हैं।

उक्त घटना के प्रत्यक्षदर्शी रहे विलियम हटन के पुत्र व मूर्धन्य मनोविज्ञानी डॉ. रैमजे वर्नाड हटन अपनी आत्मकथा में लिखते हैं कि बहुत कुछ इस जगत में घटता और प्रत्यक्ष देखा जाता रहता है। सबकी व्याख्या प्रत्यक्षवाद के आधार पर नहीं हो सकती है। परोक्षजगत से जुड़ी ऐसी अनेकानेक विलक्षणताएँ हैं जो बताती हैं कि भूतकाल व भविष्यत् में संभावित कई घटनाएँ ऐसी हैं जो समय-समय पर प्रत्यक्ष नेत्रों से देखी जा सकती हैं। मस्तिष्क को जो दीख रहा है वह सच है, यह एक अकाट्य तथ्य है। फिर भी जो घट रहा है, वह वर्तमान में ही है यह सुनिश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118