पूर्वाभास की क्षमताएँ (Kahani)

May 1991

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

एक जुलाहे ने भूत की सिद्धि की। भूत प्रकट हुआ तो उससे वरदान माँगा कि उसके दो सिर और चार हाथ हो जाएँ ताकि वह अधिक काम कर सके और दोहरा वजन लादकर हाट को जा सके।

वरदान तो मिल गया पर लोगों ने इस प्रकार के विचित्र आदमी को कौतूहल समझा और प्रेत पिशाच का अनुमान लगा कर मार डाला।

महत्वकाँक्षाएँ ऐसा ही दुख देती हैं। सुखी औसत नागरिक का स्तर अपना कर ही रहा जा सकता है।

दोनों वैज्ञानिकों का विश्वास है कि विभिन्न जीवधारी अपने अन्तर्निहित अतीन्द्रिय सामर्थ्य का लाभ इस लिए उठा पाते हैं, क्योंकि वे सर्वथा प्राकृतिक जीवन जीते, और कृत्रिमता से दूर रहते हैं, जबकि मनुष्य आज अस्वाभाविकता से इस कदर लद चुका है कि उसका जीवन प्राकृतिक न रह कर एक प्रकार से यान्त्रिक बन गया है। इस कारण उसकी शक्तियाँ कुंठित हो गई हैं। यदि वह भी स्वाभाविक जीवन जी सके तो कोई कारण नहीं की उसमें वैसी पूर्वाभास की क्षमताएँ विकसित न हो सके, जैसी मानवेत्तर प्राणियों में है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118