कलात्मक रुचि विकसित करें।

May 1991

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

गायन, वादन, संगीत, साहित्य, नृत्य जैसी भावाभिव्यंजनाएँ स्वस्थ मनोरंजन तथा मानसिक विकास का सर्वोत्तम साधन हैं। एक ही प्रकार के शारीरिक एवं बौद्धिक कार्यों से एक ऐसी ऊब पैदा होती है, जो मानसिक सरसता के अभाव में दूर नहीं होती एवं उसके बने रहने से जीवन नीरस बन जाता है, ऊब, खीज, पैदा होती है, जिसकी प्रतिक्रिया व्यक्तिगत जीवन में असंतोष एवं सामाजिक जीवन में विग्रह विद्वेष के रूप में सामने आती है। स्पष्ट है, जब स्थिति ऐसी बनने लगे, तो किसी भी क्षेत्र में सफलता की आशा दुराशा मात्र सिद्ध होगी।

तो फिर इससे बचा कैसे जाय? मनोवैज्ञानिकों ने इस संदर्भ में गहन अध्ययन किया है और लम्बे शोधकाल के उपरान्त यह निष्कर्ष निकाला है कि यदि ऊब और उसकी प्रतिक्रियाओं से बचना है, तो हर क्रियाशील व्यक्ति को अपने ढर्रे के कार्यों के अतिरिक्त किसी कलात्मक हॉबी का विकास करना चाहिए, जो सही अर्थों में मन को सरसता प्रदान करे और निरसता दूर करे। यह हॉबी रुचि के हिसाब से कुछ भी हो सकती है, पर इसका चयन करते समय ध्यान इस बात का भी रखा जाना चाहिए कि उससे न सिर्फ हमारा मनोरंजन भर हो, वरन् योग्यता संवर्धन के साथ-साथ शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक विकास भी सुनिश्चित हो।

मनीषी कहते हैं कि यह प्रक्रिया कलात्मक अभिरुचियाँ पैदा करके संपन्न की जा सकती है। ऐसा कोई भी व्यक्ति इस संसार में नहीं है, जिसमें कलात्मकता न हो। हर व्यक्ति में इसके बीज विद्यमान होते हैं। आवश्यकता है उन्हें पहचानने और विकसित करने की। इनमें कौन सी उसके विशेष रुचि की है और किस कला क्षेत्र में उसकी गति है- इसे तनिक सूक्ष्मतापूर्वक अध्ययन-विश्लेषण करके जाना और पता लगाया जा सकता है कि कम से कम समय और परिश्रम में वह अपनी प्रतिभा को किस क्षेत्र में अधिक अच्छी तरह सुविकसित कर सकता है। गायन, वादन, सामाजिक समस्याओं को चित्रित करने वाली पेंटिंग, मूर्तिकला, समाज को दिशा देने वाला सामयिक साहित्य-सृजन, बागवानी, आदि कोई भी इसके अनुकूल विषय हो सकते हैं। खेल-कूद को भी इस वर्ग में रखा जा सकता है। इससे एक साथ कई लाभ मिलते हैं। यह मनोरंजन का एक अच्छा साधन तो है ही, साथ ही इसमें व्यायाम की आवश्यकता की भलीभाँति पूर्ति होती रहती है एवं शरीर चुस्त-दुरुस्त बना रहता है। यदि इसमें तनिक अधिक समय और श्रम लगाया जा सके, राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर तक पहुँच कर न सिर्फ अपना, वरन् देश का नाम ऊंचा किया जा सकता है।

यूनिवर्सिटी ऑफ ऐरिजोना के शोधकर्मी वैज्ञानिकों ब्रूस केमेल्सकी, डोनाल्ड हेस एवं मेल्विन पावर ने प्रयोगों की एक नई शृंखला शुरू की है। उनका शोध का विषय है- कलात्मक अभिरुचियों के मानव मस्तिष्क एवं मनःसंस्थान पर पड़ने वाले प्रभावों की जाँच, पड़ताल करना। बच्चों पर किये गये अध्ययन के दौरान उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि कलात्मक हॉबियों से मस्तिष्क की प्रखरता बढ़ती है। ऐसे बच्चे जो स्मृति-दोष से पीड़ित थे, उन पर उनने प्रयोग किये। उनमें गायन, वादन, पेंटिंग, ड्राईंग की भिन्न-भिन्न रुचियाँ पैदा की गई, साथ-साथ उनका अध्ययन भी चलता रहा। प्रयोग के अन्त में देखा गया कि जो बच्चे मंद स्मृति की शिकायत किया करते थे, उनकी स्मरण शक्ति और धारणा क्षमता में उत्साहवर्धक बढ़ोत्तरी हुई है।

एक अन्य अध्ययन में बालकों के दो ग्रुपों को एक-सी शिक्षण-सुविधा उपलब्ध करायी गयी। दोनों में अन्तर मात्र इतना रखा गया कि एक ग्रुप को अतिरिक्त समय में कला संबंधी रोचक विषयों की शिक्षा दी जाती। साल भर के इस शिक्षण क्रम में प्रयोग के अन्त में परिणाम आश्चर्यजनक देखा गया। जिन ग्रुपों को कला संबंधी शिक्षण की अतिरिक्त सुविधा मिली थी। उनमें सभी बालकों का आई. क्यू. दूसरे ग्रुप के बालकों से बढ़ा पाया गया है।

इन प्रयोगों से यह स्पष्ट संकेत मिलता है कि नीरसता और उबाऊपन की बैठी-ठाली दशा से न सिर्फ हमारी शारीरिक क्षमताएँ घटती हैं, वरन् मानसिक क्षमता में भी ह्रास आने लगता है, अतः ऐसे अवसरों पर हर एक को ऐसे कार्य में स्वयं को व्यस्त रखना चाहिए, जो मनोरंजन की दृष्टि से भी उपयुक्त हो और शोर, मन एवं बुद्धि का भी उस दौरान पूरा-पूरा उपयोग होता रह सके। कलात्मक कार्यों में नियोजन इस दृष्टि से सर्वोत्तम है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118