नारी शिक्षा का एक मात्र केन्द्र (Kahani)

May 1991

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हाथरस (उत्तर प्रदेश) के पास सासनी नाम का एक कस्बा है। उसके समीप जंगल में एक फूटे खण्डहर वाली झाड़ियों से भरी एक जमीन थी। किसी ने परमार्थ कार्य की योजना लेकर उसे बनाया होगा। पर वह कार्य अधूरा ही रहा।

उसी क्षेत्र की एक बाल विधवा लक्ष्मी देवी इस सोच में थी कि शेष जीवन वैधव्य के दुर्भाग्य का रोना रोते हुए बिताने की अपेक्षा उसे सेवा कार्य में लगाया जाय। उन्हें अपने लिए सर्वसुलभ सेवा कार्य नारी शिक्षा में संलग्न हो जाना लगा।

उस झाड़ियों वाले खण्डहर को उन्होंने साफ किया और किसी प्रकार योजना बनायी कि वहाँ एक छोटी पाठशाला चल सके। छात्राएँ कहाँ से आये इस प्रश्न का हल भी उन्हें ही करना था। वे प्रातःकाल स्वयं ही समीपवर्ती गांवों में जाकर वहाँ से छात्राएँ साथ लाती और शाम को उन्हें घर पहुँचाने भी स्वयं जाती।

इस निष्ठ को देखकर ग्रामवासी प्रभावित हुए और उस विद्यालय को समुन्नत बनाने के लिए उत्साह भरी सहायता करने लगे। साधन जुटाने लगे।

समयानुसार सासनी का कन्या गुरुकुल सुव्यवस्थित होता चला गया। आज वह नारी शिक्षा का एक मात्र केन्द्र है। जो भी उधर जाता है एक एकाकी महिला द्वारा आरंभ किये उस पुरुषार्थ परमार्थ को देख कर दंग रह जाता है।


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