मन का सामर्थ्य (Kavita)

May 1991

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‘तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु’ मंत्र हम साकार करें।

आओ! मन को साध, दिव्यता की सामर्थ्य करें ॥ 1॥

है प्रचंड ‘अणुशक्ति- साध से, मन की शक्ति अधिक।

मन प्रतिपल गतिमय रहकर के, करता काम अथक ॥

मन बंधन का और मोक्ष का, कारण होता है।

मन के ही ‘मनचाहा’ धारण होता है ॥

मनकी प्रबल शक्ति का, आओ! मन में ध्यान धरें।

आओ! मन को साध, दिव्यता की सामर्थ्य वरें ॥ 2॥

मन चाहे तो पतन! पराभव का भी गर्त बने।

मानव के शरीर में मन ही, पशुवत् क्त्य बने ॥

नये-नये संकल्प-विकल्प, खड़े कर लेता है।

नई-नई कल्पनाओं से, मन भर देता है ॥

पाप, पतन की ओर न जायें, इतना तनिक डरें।

आओ! मनको साध, दिव्यता की सामर्थ्य वरें ॥ 3॥

यदि विवेक का रहे नियंत्रण तो मन सधता है।

यह चंचल मन, संयम के द्वारा ही बँधता है ॥

आत्मोन्मुखी बनावें इसको, श्रेष्ठ दिशाएँ दें।

फिर इस देव तुल्य दाता से, जो भी चाहे ले ॥

मन यदि शिव संकल्प करे तो, फिर त्रयताप हरें।

आओ! मन को साध, दिव्यता की सामर्थ्य वरें ॥ 4॥

मन की प्रबल शक्ति को साधें, त्याग और तप से।

केन्द्रित मन की शक्ति, प्रबलतम होती है सबसे ॥

रवि किरणें केन्द्रित होकर के, दावानल बनतीं।

केन्द्रित मन की प्रबल शक्तियाँ, प्रबल क्रान्ति करतीं ॥

सद् विवेक से मन को जीतें, सद्संकल्प करें।

आओ! मन को साध, दिव्यता की सामर्थ्य वरें ॥ 5॥

- मंगल विजय


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