‘तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु’ मंत्र हम साकार करें।
आओ! मन को साध, दिव्यता की सामर्थ्य करें ॥ 1॥
है प्रचंड ‘अणुशक्ति- साध से, मन की शक्ति अधिक।
मन प्रतिपल गतिमय रहकर के, करता काम अथक ॥
मन बंधन का और मोक्ष का, कारण होता है।
मन के ही ‘मनचाहा’ धारण होता है ॥
मनकी प्रबल शक्ति का, आओ! मन में ध्यान धरें।
आओ! मन को साध, दिव्यता की सामर्थ्य वरें ॥ 2॥
मन चाहे तो पतन! पराभव का भी गर्त बने।
मानव के शरीर में मन ही, पशुवत् क्त्य बने ॥
नये-नये संकल्प-विकल्प, खड़े कर लेता है।
नई-नई कल्पनाओं से, मन भर देता है ॥
पाप, पतन की ओर न जायें, इतना तनिक डरें।
आओ! मनको साध, दिव्यता की सामर्थ्य वरें ॥ 3॥
यदि विवेक का रहे नियंत्रण तो मन सधता है।
यह चंचल मन, संयम के द्वारा ही बँधता है ॥
आत्मोन्मुखी बनावें इसको, श्रेष्ठ दिशाएँ दें।
फिर इस देव तुल्य दाता से, जो भी चाहे ले ॥
मन यदि शिव संकल्प करे तो, फिर त्रयताप हरें।
आओ! मन को साध, दिव्यता की सामर्थ्य वरें ॥ 4॥
मन की प्रबल शक्ति को साधें, त्याग और तप से।
केन्द्रित मन की शक्ति, प्रबलतम होती है सबसे ॥
रवि किरणें केन्द्रित होकर के, दावानल बनतीं।
केन्द्रित मन की प्रबल शक्तियाँ, प्रबल क्रान्ति करतीं ॥
सद् विवेक से मन को जीतें, सद्संकल्प करें।
आओ! मन को साध, दिव्यता की सामर्थ्य वरें ॥ 5॥
- मंगल विजय