नव सम्वत्सर अपने अंतस् में अनेकों नवीन सम्भावनाएँ संजोये है। इसके पहले नौ दिनों में इन सम्भावनाओं को उजागर करने का आह्वान है। सम्वत्सर की सुखद सम्भावनाओं को साकार करने वाले संकल्पित साधकों के लिए पुकार है। इन नौ दिनों में समर्थ साधना के वे बीज बोये जा सकते हैं। जिनकी लहलहाती फसलें साधकों के आन्तरिक एवं बाह्य जीवन को समूचे वर्ष समृद्ध बनाये रखें। इन नौ दिनों को नकारने का अर्थ है, नव सम्वत्सर की सम्पूर्ण सम्भावनाओं को नकार देना।
इन नौ दिनों की नौरात्रियाँ भी अपने में साधना के गहरे रहस्यों को समेटे हैं। इनके पल-पल में प्रेरणा भरी पुकार है। जो साधक हैं वे इसे सुने बिना नहीं रह सकते। रणभूमि में रणभेरी बजती रहे और शूरवीर मुँह छुपाये किसी कोने में दुबके बैठे रहें, यह किसी भी तरह से सम्भव नहीं। नव सम्वत्सर के नौ दिन भी साधकों के लिए ऐसी ही चुनौती भरी साधना की रणभेरी बजा रहे हैं। जो साधक हैं, वे इसे सुनकर साधना का महापुरुषार्थ किए बिना नहीं रह पायेंगे।
नव सम्वत्सर के इन नौ दिनों में आदि शक्ति माता गायत्री ने अपनी सन्तानों को शक्ति का अनुदान देने के लिए पुकारा है। महाकाली, महालक्ष्मी एवं महासरस्वती उन्हीं की अंशभूता शक्तियाँ हैं। शैलपूत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघण्टा, कूष्माण्डा, स्कन्दमाता, कात्यायिनी, कालरात्रि, महागौरी व सिद्धिदात्रि के नौ रूपों में वही इन नौ दिनों की अधिष्ठात्री शक्ति है। दुर्गा सप्तशती में उन्हीं की कीर्ति का गायन है। शुम्भ-निशुम्भ का दलन करने वाली महिष मर्दिनी माता वेदमाता गायत्री ही है। वही वरदायिनी माता अपनी शक्ति का विशिष्ट अंश देने के लिए इन नौ दिनों में सत्पात्रों और साधकों को खोजती हैं।
ध्यान रहे, माँ की पुकार को हममें से कोई अनसुना न करें। कोई ऐसा बचा न रहे जो नौ दिवसीय साधना अनुष्ठान के लिए संकल्पित न हुआ हो। चौबीस अक्षरों वाले गायत्री महामंत्र के चौबीस हजार के अनुष्ठान में ही माता की कृपा झलकती है। उनकी कृपा से सब कुछ सम्भव है। महा असम्भव को अति शीघ्र सम्भव करने वाली वरदायिनी माता गायत्री की सन्तानों में से किसी को नौ दिनों में वंचित नहीं रहना चाहिए। स्वास्थ्य, सफलता, समृद्धि-सिद्धि सभी कुछ नव सम्वत्सर के इन नौ दिनों में समाया है। इसे पाने के लिए हमारा साधनात्मक पुरुषार्थ ठिठका न रहे।