विश्वविद्यालय का दरजा (kahani)

April 2003

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गुलाब के फूल ऊपर की टहनी पर खिल रहे थे और सड़ा गोबर उसकी जड़ में सिर झुकाए पड़ा था। गुलाब ने अपने सौभाग्य से, सड़े गोबर के दुर्भाग्य की तुलना करते हुए गर्वोक्ति की और व्यंग्य की हँसी हँस दी।

माली उधर से निकला तो उसने यह सब देखा। उससे चुप न रहा गया। गुलाब के काम से मुँह सटाकर बोला, “गुलाब के काम से मुँह सटाकर बोला, “तुम्हें इस स्थिति में पहुँचाने में, इन पिछड़े समझे जाने वालों का कितना योगदान रहा है, तनिक इसे भी समझने का प्रयत्न करो।”

स्वामी श्रद्धानंद ने अपना घर बेचकर उस पैसे से हरिद्वार के पास काँगड़ी गाँव में दस विद्यार्थियों को लेकर एक गुरुकुल चलाया। अध्यापक, पालक, संचालक वे स्वयं ही थे। जिस तत्परता से उनने बच्चों को पढ़ाया तथा विद्यालय चलाया, उसने देखने वालों के मन जीत लिए। ख्याति के साथ−साथ छात्रों की संख्या तथा उदारजनों की सहायता भी बढ़ती गई। एक−एक करके गुरुकुल विकसित होता गया। स्वामी जी के जीवनकाल में ही वह संस्था उन्नति के चरम लक्ष्य तक पहुँच चुकी थी। आज उसे विश्वविद्यालय का दरजा प्राप्त है।

सभी एकमासीय युगशिल्पी सत्र (प्रतिमाह 1 से 21 तारीख) में भाग लेने वाले भाई−बहनों से अनुरोध है कि निम्न प्रारूप के अनुसार ही आवेदन भेजें। अधूरे आवेदन पर स्वीकृति भेजना संभव न हो सकेगा।

आवेदन पत्र

( परिजन यह फार्म हिंदी अथवा जो भाषा आती हो, उसमें स्पष्ट अक्षरों से भरें )

(1) शिविरार्थी का नाम व पूरा पता...............................................................................................

(2) किस महीने के किस सत्र में आना चाहते हैं? यदि उसमें जगह भर चुकी हो तो अगले किस सत्र में आना चाहेंगे? अवश्य लिखें—

.............................................................अथवा....................................................................

(3) स्वयं तथा साथ आने वाले परिजनों का विवरण−

नाम आयु शिक्षा व्यवसाय पहले से किए मिशन की सत्रों का विवरण कौन−सी पत्रिका मँगाते हैं

1. ............................................................ ............................................................

2. ............................................................ ............................................................

(4) मिशन के द्वारा चलाई जा रही गतिविधियों में से क्या−क्या करते रहे हैं?

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(5) यहाँ के कड़े अनुशासन का भली भाँति पालन करने की प्रतिज्ञा करें।

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(6) शारीरिक या मानसिक दृष्टि से रोगी न होने का आश्वासन दें।

.......................................................................................................................................

आवेदक के हस्ताक्षर

दिनाँक........................... नाम.......................................

नोट—जो भी शिक्षार्थी साधना सत्र या प्रशिक्षण−सत्र में आना चाहें, वे इस आवेदन फार्म की नकल करके सादे कागज पर भेजें। वाँछित सत्र के लिए दो माह पूर्व ही आवेदन करें।

पत्र−व्यवहार का पता—गायत्री तीर्थ, शाँतिकुँज, हरिद्वार (उत्तराँचल)−249411 फोन—(01334) 260602, 261328, फैक्स—260866


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