रामनाम एक कलपरु

April 2003

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रामनवमी के पुण्य पर्व पर हृदय में रामनाम की धुन बजने लगी है। प्रभु राम का वही नाम जिसका गुणगान बाबा तुलसी ने ‘रामचरित’ में किया है। बड़ी महिमा बखानी है उन्होंने राम के नाम की। अनेकों चमत्कार गिनाये हैं उन्होंने रामनाम के। इस पवित्र प्रभु नाम का स्मरण करते ही सारे कार्य अपने ही आप सिद्ध हो जाते हैं। रामनाम के सहारे बहरे सुनने लगते हैं, गूँगे बोलने लगते हैं और लूले-लँगड़े-अपाहिज दुर्गम पर्वत शिखरों पर चढ़ जाते हैं। महा असम्भव को सहज सम्भव करने वाला है यह राम का नाम। गोसाँई बाबा के इस कथन में केवल शास्त्र वचनों की पुनरुक्ति भर नहीं है, बल्कि उनका अपना अनुभव भी समाया है। वह कहते हैं-

नाम राम को कलपतरु कलि कल्यान निवासु। जो सुमिरत भयो भाँगते तुलसी तुलसीदासु॥

कलियुग में राम का नाम मनचाहा फल देने वाला कल्पतरु है। सब तरह के कल्याण का घर है। जिसके स्मरण भर से भाँग की तरह से निकृष्ट तुलसीदास तुलसी की तरह पवित्र और पूजनीय हो गया।

रामनाम की महिमा यूँ तो हर युग में है। पर कलियुग में तो कुछ विशेष ही है। जप-तप, योग-जुगत के सारे पराक्रम रामनाम में समाये हैं। प्रभु श्रीराम जैसा दाता कभी कोई दूसरा नहीं। उन्होंने गिद्ध जटायु, आदिवासी स्त्री शबरी को वह सब दे डाला, जो योग साधना करने वाले ऋषि-मुनि जन्मों-जन्मों में नहीं पाते। अमिट और अपार है प्रभु राम के नाम का प्रभाव। इसी के प्रभाव से तो वनवासी बाल्मीकि महर्षि हो गये। अपने गोसाँई बाबा तुलसीदास को भी कौन पहचान पाता राम के नाम बिना। रामनाम की कथा ने ही तो उन्हें महाकवि के साथ जन कवि बना दिया। वह युगातीत और कालजयी हो गये। राम नाम की ही भाँति तुलसी का नाम भी मृत्युञ्जय बन गया है।

राम नाम की यह चमत्कारी शक्ति पिछली सदी में एक बार फिर से प्रकट हुई। गाँधी बाबा के हृदय में भी अपने गोसाँई बाबा की ही भाँति रामधुन बजी। राम नाम के अमोघ अस्त्र के सहारे गाँधी बाबा ने भारत की करोड़ों निःशस्त्र जनता को महापराक्रमी और अजेय समझे जाने वाले अंग्रेजों के खिलाफ खड़ा कर दिया। अनगिन जातियों, अनेक धर्मों-संस्कृतियों, असंख्य भाषाओं-बोलियों में बँटी हुई, एक-दूसरे से अलग-थलग रहने वाली इस देश की जनता गाँधी की रामधुन पर मंत्रमुग्ध हो गयी। गाँधी बाबा के आदेश पर मिटने के लिए संकल्पित हो गयी। सारे संसार ने बड़े ही अचरज से इस चमत्कार को घटित होते हुए देखा। जिन अंग्रेजों के राज्य में कभी सूरज अस्त नहीं होता था, उसे गाँधी बाबा ने बिना किसी तोप-बन्दूक के यूँ ही खदेड़ दिया। यह महाआश्चर्य राम के नाम की उसी महिमा से साकार हुआ, जिसकी चर्चा गोसाँई बाबा ने रामचरित मानस में की है।

राम के नाम में अनेकों रहस्य हैं, असंख्य चमत्कार हैं। जो इससे ठीक तरह से परिचित नहीं हैं वे यही कहते हैं कि रहस्य यही है आखिर गाँधी बापू को ऐसी हैरतअंगेज लोकप्रियता कहाँ से मिली? उनकी लोकप्रियता से हैरान फ्राँस के यशस्वी लेखक रोमाँ रोलाँ ने कहा था कि गाँधी जी के पास कोई अलौकिक शक्ति जरूर है। उनकी इसी जादुई ताकत से करोड़ों भारतीय पल भर में सम्मोहित हो जाते हैं। जब वे अनशन पर बैठते हैं तो असंख्य भारतवासी खाना छोड़ देते हैं। जब वे मौन होते हैं तो अनगिनत भारतीय बोलना छोड़ देते हैं। जब वे चलते हैं तो करोड़ों भारतवासी उनके पीछे चल पड़ते हैं। जब वे जेल जाते हैं तो अंग्रेजों के जेल खानों में कैदियों को रखने के लिए तिल भर भी जगह नहीं बचती। गाँधी बाबा की इस लोकप्रियता से हैरान रोमाँ रोलाँ ने लिखा है- जरूर उन्होंने कोई महामंत्र सिद्ध किया था। जिसके बल पर वह अपराजेय ब्रिटिश साम्राज्य को पराजित कर भारतीय स्वाधीनता के नये युग की शुरुआत कर सके।

वह चमत्कारी महामंत्र प्रभु राम का वही नाम था, जिसका बखान और गुणगान तुलसी बाबा ने अपनी रामायण में किया है। राम के नाम के साथ राष्ट्रपिता ने राम के राज्य का भी स्वप्न देखा था। पश्चिमी विज्ञान और आधुनिकता के मोहपाश में जकड़े हुए कतिपय लोगों को भले ही बापू का यह स्वप्न अवैज्ञानिक और पुरातन लगे, पर इतिहास-सत्य इसकी प्रमाणिकता की बेबाक गवाही देता है। अठारहवीं सदी में हुई फ्राँस की क्रान्ति के किस्से जिन्होंने पढ़े हैं, जिनने 1917 में हुई रूसी क्रान्ति की लाल किताब पढ़ी है, वे जानते हैं, ये दोनों ही आज अपनी खुशबू लेकर बासी हो चुके हैं। लेकिन रामराज्य के आदर्श में अभी भी ताजगी है। इसमें शाश्वतता और चिरन्तरता है। ध्यान रहे प्रभु राम और उनका नाम किसी एक धर्म विशेष अथवा जाति विशेष की धरोहर नहीं है। जो उनको किसी जाति अथवा धर्म की धरोहर मानता है, उसके लिए न तो प्रभु राम वरदायी रह जाते हैं और न उनका नाम फलदायी होता है। भीलनी शबरी के जूठे बेर खाने वाले, बूढ़े गिद्ध जटायु का अन्तिम संस्कार अपने हाथों करने वाले राम तो सबके हैं। उनकी कथा-गाथा केवल इस उपमहाद्वीप के समुदायों और सम्प्रदायों तक ही सीमित नहीं है। इंडोनेशिया, बाली, जावा, सुमात्रा, म्यामार तक इसकी संवेदन सरिता प्रवाहित है। राम भारत देश की महा संस्कृति के महानायक हैं। उनकी महागाथा आदिवासियों, अल्पसंख्यकों, दलितों, गिरिजनों के बीच तो है ही, दक्षिण के शैव और मातृपूजक भी इसकी संवेदना का संस्पर्श पाते हैं। उत्तर पूर्व के नगा, मेघ और मैतेइये भी राम के नाम से अपरिचित नहीं हैं। राम की कथा के अनेक रूप हैं, अनेकों रंगों में ढली है रामनाम की भावना। अपने गोसाँई बाबा ने तो कहा भी है- जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरति देखी तिन तैसी। क्षेत्र, वर्ग, सम्प्रदाय के हिसाब से लोकचेतना ने राम की अपनी मूरत बनायी। पर मूल भावना कभी अलग-अलग नहीं रही। यह ठीक है कि राम तुलसी के भी थे और सूफी सन्त जायसी के भी। जिन्होंने भारत के इतिहास को गहराई से पढ़ा है, वे यह सच्चाई भी जानते हैं कि राम की छबि तो बाबर के बेटे हुमायुँ के सिक्कों पर भी अंकित थी। लोक चेतना के शिखर पुरुष राम के सामने अकबर और उसका दीन-ए-इलाही भी सिज्दा करता था।

‘सबके राम-सबमें राम’ इसी भाव से विभोर होकर बापू ने राम और उनके नाम को भारतवासियों के संगठन का सूत्र बनाया था। पश्चिमी दर्शन की दकियानूसी सोच से अलग ‘रामराज्य’ का शुद्ध स्वदेशी मॉडल नयी पीढ़ी के सामने रखा था। बापू के राम राज्य के राम हिन्दुओं के भी उतने ही थे, मुसलमानों के भी उतने ही। सिक्खों और ईसाइयों का भी उन पर उतना ही हक था। राम और उनका नाम भारत की लोक चेतना और उसकी एकात्मता का प्रतीक था। हम यहाँ इन पंक्तियों में आश्चर्यजनक किन्तु सत्य तथ्य का उल्लेख करना चाहते हैं। वह आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि भारतीय लोक चेतना में सर्वव्यापी राम की हिन्दुओं के चारों धामों में कहीं केन्द्रीय उपस्थिति नहीं है। सम्भवतः यह इसलिए कि जन-जन में बसे राम और उनके नाम को सीमाओं में सिमटना नहीं भाया। जो लोग राम और उनके नाम को जाति-धर्म, वर्ग एवं क्षेत्र में समेटने की कोशिश में लगे हैं, वे कभी राम के नहीं हो सकते और राम कभी उनके नहीं हो सकते।

राम तो भारतीय लोक चेतना में प्रवाहित होने वाली अन्तर्धारा है। जो निर्गुण-निराकार रूप में सतत् भारत के जनमानस में बहती रहती है। दुष्टों के विनाश और साधु जनों के कल्याण के लिए युग-युग में उसका सगुण प्राकट्य होता है। दशरथ के घर में जन्म लेने वाले राम, साँस्कृतिक अभ्युत्थान का संकल्प लेने वाले श्रीराम के रूप में हमारे अपने युग में जन्मते हैं। मनुष्य रूप में हम सबके बीच विचरने वाले प्रभु भक्तों के हृदय में भी अवतार लेते हैं। बस हमारे अपने हृदय में राम नाम की सच्ची धुन तो बजे। फिर सुर-नर हितकारी और उनके नाम के चमत्कारों की शृंखला प्रारम्भ होने की देर नहीं।


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