बेंजामिन फ्रेंकलिन ने एक अखबार निकाला और उसके कारण आर्थिक कठिनाई में पड़कर उसने अपने एक मित्र से बीस डॉलर लिए। जब उसकी स्थिति ठीक हो गई तो वह मित्र को वह रकम लौटाने गया। मित्र ने कहा, “वह रकम तो मैंने आपको सहायता में दी थी।” फ्रेंकलिन ने कहा, ‘सो ठीक है, पर जब मैं लौटाने की स्थिति में हूँ तो आपकी सहायता का ऋणी क्यों बनूँ?” झगड़े का अंत इस प्रकार हुआ—मित्र ने वे रुपये फ्रेंकलिन के पास इस उद्देश्य से जमा किए कि कोई जरूरतमंद उधार माँगे, तब इन्हें उसी शर्त पर दे दें कि वह भी स्थिति ठीक होने पर उन रुपयों को अपने पास जमा रखेगा और फिर किसी जरूरतमंद को इसी प्रकार, इसी शर्त पर दे देगा। कहते हैं कि अमेरिका में वे 20 डॉलर आज भी किसी−न−किसी जरूरतमंद के पास इसी उद्देश्य से घूम रहे हैं। आवश्यकता के समय दूसरों से सहायता ली जा सकती हैं, पर यह ध्यान रखना चाहिए कि समय होते ही वह सहायता किसी अन्य जरूरतमंद को लौटा दी जाए। सहायता के साथ जो दानवृत्ति जुड़ी हुई हैं, वह दोहरा कर्ज हैं। उसका चुकाना एक विशिष्ट नैतिक कर्त्तव्य है।