आशाजनक सफलता पाई (kahani)

April 2003

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दक्षिण भारत में जन्मे डॉ.कौस्तुभ परीक्षा पास करने के उपराँत सरकारी क्षय−चिकित्सालय में नियुक्त हुए। उनने जॉर्ज बर्नार्ड शा की वह उक्ति अपने कमरे में टाँग रखी थी कि ‘रोगी को दवा की अपेक्षा डॉक्टर की सहानुभूति की जरूरत होती है।’ उनने रोगियों से ममता भरा व्यवहार किया और इतने से ममता भरा व्यवहार किया और इतने अनुपात में रोगी अच्छे किए, जितने पहले कभी भी न हुए थे।

उनने अपने अस्पताल की एक नर्स से इस शर्त पर विवाह किया कि वे संतानोत्पादन के फेर में न पड़ेंगे और रोगियों को ही अपने बालक मानेंगे। सेवाधर्म में संलग्न रहकर वे पति−पत्नी अत्यंत सुखी−संतुष्ट रहे।

नैपल्स नगर में आवारा लड़कों की भरमार थी। दरिद्र और पिछड़े लोगों के लड़के कुसंग में पड़कर अपने−अपने गिरोह बना लेते थे और चोरी, उठाईगीरी, ठगी के धंधे से अपना गुजारा करते थे। नशेबाजी जैसे अनेक दुर्व्यसन बढ़ जाने से वे अच्छे नागरिकों की तरह पढ़ना एवं आजीविका कमाना पसंद भी नहीं करते थे। यह आवारागर्दी यूरोप के अनेक देशों में बढ़ती जा रही थी। सभ्य नागरिकों को उनके मारे नाकों में दम था।

पादरी बोरेली का ध्यान इन लड़कों की ओर गया। उनने इनके सुधार का बीड़ा उठाया। सूखे उपदेशों को वे सुनने तक को तैयार न होते थे। अस्तु, बोरेली ने उनमें घुल−मिलकर रहने तथा मित्रता गाँठने का उपाय अपनाया। पादरी नई उम्र के और ठिगने कद के थे, इसलिए उन्हें घुल−मिल जाने में अधिक कठिनाई नहीं हुई।

पादरी ने एक टूटा हुआ पुराना मकान किराये पर लिया। ऐसे लड़कों का न तो कहीं आश्रय था और न खाने−पीने का ठिकाना। बोरेली के इस घर में रात्रि को रहने की, शाम को ताजा खाना पकाकर खाने की सुविधा हुई तो सैकड़ों लड़के उस आवारा−आश्रम में आने लगे। यही अवसर था, जिसमें उन्हें पढ़ाने, कमाने, खाने तथा कुटेव छोड़ने के लिए सहमत किया जा सका और इस योजना के अनुसार हजारों को सभ्य तथा स्वावलंबी बनाया जा सका। पादरी−समुदाय ने अन्य स्थानों में भी यह योजना चलाई और बिगड़ों को सुधारने में आशाजनक सफलता पाई।


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