नियोजित कर दिया जाए (kahani)

April 2003

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आँख और कान की विशेषता और गरिमा बताने के लिए किसी जिज्ञासु ने विचारक से पूछा।

मनीषी ने उत्तर दिया, “आँखें केवल सामने का देखती हैं, जबकि कान विगत−आगत और वर्तमान को सुनने−समझने में सहायता करते हैं।”

सुँदर दीखने वाली आँखों की तुलना में कुरूप कानों की महिमा अधिक है। जो लोग सौंदर्य को, बहिरंग की सज्जा को ही महत्त्व देते हैं, उनके लिए यह जानना जरूरी है कि महत्ता कर्तृत्व की है।

बगदाद के खलीफा ने अपना दैनिक वेतन तीन रुपया रोज रखा था। कोई त्योहार आया तो बेगम ने कहा, “वेतन नहीं बढ़ा सकते तो राज्यकोष से दस रुपया उधार ले लो। उसे धीरे−धीरे चुकाते रहेंगे।”

खलीफा ने कहा, “मौत का क्या ठिकाना? कल ही आ गई तो लिया हुआ कर्ज कौन चुकाएगा? अभी समाज में जी रहे हैं, कर्ज तो चढ़ा ही है, पहले उससे तो मुक्त हों।” कर्ज लेने से उन्होंने स्पष्ट इनकार कर दिया तो बेगम ने दैनिक वेतन में से ही कुछ बचाकर त्योहार मनाया।

ब्रह्मसंध्या कर आचार्य उठे ही थे कि आत्मदेव ने उनके चरण पकड़ लिए। वह दीन शब्दों में बोला, “आचार्य प्रवर! एक संतान की इच्छा से आपके पास आया हूँ।”

आचार्य ने कहा,”आत्मदेव! संतान से सुख की आशा करना व्यर्थ है। मनुष्य अपने कर्मों के अनुसार सुख−दुःख पाता है। पूर्वजन्म की कृपणता का पाप ही तुम्हारे लिए सौभाग्य विमुख बना है।” आत्मदेव की समझ में नहीं आया, उसने कहा,”महात्मन्! या तो आज आपसे पुत्र लेकर लौटूँगा या आत्मदाह करूंगा।”

आचार्य ने हँसकर कहा,”तुम्हारे लिए किसी और का पुण्य छीनना पड़ेगा। पुत्र तो तुम्हारे भाग्य में है नहीं, परंतु तुम्हारी इच्छा परमात्मा पूर्ण करें, लो, यह फल अपनी भार्या को खिला देना। वह एक वर्ष तक निताँत पवित्र रहकर नित्य कुछ दान करे।’

आत्मदेव महर्षि के रहस्यमय वचन सुनकर कुछ समय न सका तथा वह फल अपनी पत्नी धुँधली को देकर सारी बातें समझा दीं। धुँधली ने सोचा, पवित्रता मुझसे बन न पड़ेगी, अपनी संपत्ति और को क्यों दान करूं। उसने वह फल गाय को खिला दिया और समय पर अपनी बहन का पुत्र गोद लेकर घोषणा कर दी कि उसके पुत्ररत्न हुआ है। पुत्र का नाम धुँधकारी रखा गया। कालाँतर में वह बहुत दुराचारी निकला। धुँधकारी ने अपने पिता की सारी संपत्ति माँस, मदिरा और वेश्यावृत्ति में नष्ट कर दी।

संतान लाभ की कामना हेतु आतुर व्यक्ति विवेक खो बैठता है। इससे तो अच्छा है कि समस्त विश्व को अपना परिवार मानकर उसके समग्र विकास में स्वयं को नियोजित कर दिया जाए।


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