स्मृति−संवर्द्धन के कुछ मनोवैज्ञानिक उपाय

April 2003

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स्मरणशक्ति ईश्वरप्रदत्त उपहार भी है, इसलिए कई लोगों में यह क्षमता अद्भुत रूप से पाई जाती है। इस संदर्भ में राजा भोज के दरबारी श्रुतिधर की स्मृति विशेष उल्लेखनीय है। वे चौबीस मिनट तक सुने गए किसी भी भाषा के प्रसंग को बिना किसी त्रुटि के तत्काल ज्यों−का−त्यों सुना सकते थे। रूसी पत्रकार सालोमन वेनियामिनोवा की स्मरणशक्ति भी विलक्षण थी। वे सरसरी निगाह से पढ़ी किताबों के पन्नों, टाइम टेबल आदि को आसानी से दोहरा लेते थे। फ्रांस के पूर्व प्रधानमंत्री लियान मेग्वेज की स्मृति तो हैरतअंगेज थी। वे संसद में दिए गए विपक्षी नेताओं के भाषण तथा पिछले दस वर्ष का संपूर्ण बजट आँकड़ों सहित तत्काल सुना सकते थे।

इससे स्पष्ट होता है कि स्मरणशक्ति की सीमा असीमित है, परंतु इसकी एक अत्यंत सीमित क्षमता को ही उपयोग में लाया जाता है। इस क्षेत्र में अनेक अनुसंधान−अन्वेषण हुए हैं और जारी हैं। मानव अपने दैनिक जीवन में इस क्षमता को अत्यंत न्यून मात्रा में ही उपयोग करता है। इस दिशा में कार्य कर रहे विश्वरूप चौधरी ने अपनी पुस्तक ‘डाइनैमिक मेमोरी मेथड्स’ में उल्लेख किया है कि हम जो पढ़ते हैं, उसका मात्र 25 प्रतिशत याद रहता है। जो सुनते हैं, उसका 35 प्रतिशत, जो देखते हैं, उसका 50 प्रतिशत और जो करते हैं, उसके 75 प्रतिशत की ही स्मृति रहती है। इन सभी का योग 95 प्रतिशत है। इसका तात्पर्य है कि प्रकृति ने मनुष्य को अच्छी−खासी स्मरणशक्ति दी है। आवश्यकता है, शाँत मनःस्थिति से इस दिव्य क्षमता का भरपूर उपयोग किया जाए।

आधुनिक न्यूरो साइकोलॉजिस्ट्स की मान्यता है कि मनुष्य सामान्य रूप से मस्तिष्क की तार्किक क्षमताओं वाले बायें गोलार्द्ध का प्रयोग करता है, क्योंकि यहीं से तर्क, विचार एवं गणितीय परिकल्पनाएँ उभरती हैं। वह दाहिने भाग की भावनात्मकता एवं कल्पनाशीलता का उपयोग नहीं कर पाता है। न्यूरो साइकोलॉजिस्ट हेनरी हेकेन के अनुसार यदि मस्तिष्क के दोनों गोलार्द्धों का सम्यक् एवं समुचित उपयोग किया जा सके तो स्मरणशक्ति को असीमित विस्तार दिया जा सकता है। सन् 1998 में न्यूरो साइकोलॉजिस्ट राबीन माँरीस द्वारा तैयार किए एक मेमोरी टेस्ट से पता चलता है कि मस्तिष्क का फ्रंटल लोब ही स्मृति को नियमित एवं नियंत्रित करता है। अगर इस लोब की क्रियाशीलता को बढ़ाया जा सके, तो भी स्मरणशक्ति में अभिवृद्धि की जा सकती है।

आज के दौर में स्मरणशक्ति में दिन−प्रतिदिन ह्रास होता जा रहा है। यह समस्या सामान्य हो गई है। आखिर इनसान भूल क्यों जाता है? वह याद क्यों नहीं रख पाता?

इसका कारण स्पष्ट करते हुए मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि इच्छा का अभाव, विषय को पूरे मनोयोग से न सुनना−समझना तथा प्रसंग−अरुचि व उपेक्षा का भाव होने से ही याददाश्त में कमी आती है। अतः आवश्यकता है कि जिसे हम याद रखना चाहते हैं, उसमें अपनी इच्छा का समावेश किया जाए और यह तभी संभव है, जब उसमें रुचि उत्पन्न की जाए या अपनी पसंद का कार्य किया जाए। जिस विषय में मन लग जाता है, वह आसानी से याद आ जाता है, परंतु उबाऊ विषय हजार कोशिशों के बावजूद याद नहीं रहता। इसके लिए जरूरी है कि पहले अपने मनपसंद कार्य को किया जाए या पुस्तकों को पढ़ा जाया जाए। धीरे−धीरे जब मन लगने लगेगा तो कठिन विषय के क्षेत्र में भी प्रवेश किया जा सकता है। अनवरत प्रयत्न से अब तक अरुचिकर एवं बोझ लगने वाला विषय भी आसानी से याद होने लगता है।

कथा−कहानियाँ, नाटक, उपन्यास, फिल्म आदि आसानी से याद रहते हैं, क्योंकि इन्हें हम मन लगाकर देखते−पढ़ते हैं। प्रायः विद्यार्थियों के लिए विषयवस्तु भारवत जान पड़ती है। वह इसलिए कि इसमें वे रुचि उत्पन्न नहीं कर पाते, मन नहीं लगाते, उपेक्षा का बरताव करते हैं, परंतु जो मन लगाकर पढ़ते हैं, उनके लिए गंभीर दर्शन एवं जटिल गणित भी कथा−कहानियों जैसे प्रिय लगने लगते हैं। अतः जो भी पढ़ा जाए या किया जाए, मनोयोगपूर्वक किया जाए तो मस्तिष्क में उसका स्मरण दीर्घ अवधि तक बना रह सकता है।

अब प्रश्न उठता हैं कि स्मृति को बढ़ाया कैसे जाए? तरोताजा कैसे रखा जाए? स्मृति−संवर्द्धन के लिए मनोवैज्ञानिक पुनरावृत्ति के सिद्धाँत को सबसे कारगर एवं सफल बताते हैं। क्योंकि तंत्रिका विज्ञानी मानते हैं कि सामान्यतः 50 मिनट से अधिक समय तक पढ़ने या अन्य सूचनाओं का संश्लेषण करने के बाद मस्तिष्क की प्रक्रिया धीमी पड़ जाती है, अतः इस अवधि के बाद पाँच से बारह मिनट तक का विश्राम ले लेना चाहिए। मस्तिष्क द्वारा ग्रहण की गई सूचनाएँ 24 घंटे तक सक्रिय रहती हैं, अतः पहली बार अध्ययन के 24 घंटे के भीतर ही उन्हें पुनः एक बार दोहरा लेना चाहिए। लगभग एक सप्ताह बाद तीसरी बार तथा डेढ़ माह पश्चात चौथी बार याद कर लेने पर वे स्मृतिपटल पर बनी रहती हैं।

अमेरिका के ‘स्कूल ऑफ मेमोरीज एंड कन्सन्ट्रेशन’ के डॉक्टर बूनोफर्स्ट के अनुसार सहजता एवं मनोयोगपूर्वक किया गया कार्य या पढ़ी हुई बातें अधिक समय तक याद रखी जा सकती हैं। मनोविद् वार्टटेल की भी ठीक यही मान्यता है। वे कहते हैं कि जिन तथ्यों को लंबे समय तक याद रखना हो, उनमें गहरी रुचि उत्पन्न करनी चाहिए तथा संकल्पपूर्वक करनी चाहिए। चिंतन−मननपूर्वक याद करने का प्रभाव दीर्घकालिक होता है, अतः स्मृति में रखने के लिए आवश्यक है कि याद करने वाली योग्य और अच्छी बातों को ही मन में रखा जाए और शेष को भुला दिया जाए। इससे मन पर दबाव एवं बोझ नहीं पड़ेगा और वह हलका तथा प्रसन्न रहेगा। ऐसा मन ही स्मरणशक्ति को दीर्घकाल तक बनाए रखता है।


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