महाकाल−वंदना (kavita)

April 2003

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महाकाल, हे महादेव, जय−जय प्रभु त्रिपुरारी। शंभु, सदाशिव, आशुतोष जय भोले भंडारी॥ हर−हर महादेव, जय−जय महादेव॥

सिर पर ज्ञान−गंगा की धारा का हे! प्रभु संचार करो। बालचंद्र की शाँति−काँति दे इस जग पर उपकार करो॥ नीलकंठ, जग का विकार हरने की शक्ति हमें दे दो। महादेव, देवत्व विमल हम सब के जीवन में भर दो॥ नए सृजन का घोष करो हे! शिव डमरूधारी॥ शंभु...... ॥

अशिव तत्त्व उन्मत्त हो रहा, प्रभु उसका उपचार करो। टूटे अशिव, बढ़े शिव ऐसा शिवताँडव साकार करो॥ काम, क्रोध, मद आदि पुरों में अशिव वृत्तियाँ रहती हैं।, उनके अत्याचारों से दुःख सारी दुनिया सहती है। इन त्रिपुरों को नष्ट करो प्रभु हे! त्रिशूल धारी॥ शंभु....॥

आदिशक्ति को प्रेरित कर प्रभु भक्तों को सशक्त कर दो। कार्तिकेय को आगे कर हम सब में सत्साहस भर दो॥ गणपति जी जन−जन के अंदर सद्विवेक संचार करें। आतंकी असुरों का अब तो वीरभद्र उपचार करें॥ नए सृजन का यज्ञ रचाओ हे! जग हितकारी॥ शंभु........॥

नाथ आपके पास देवता, प्रेत सभी सुख पाते हैं। चूहा, नाग, मयूर, सिंह, वृष सहज साथ रह जाते हैं॥ तुमने सबको प्यार सहित शुभ जीवन का आलोक दिया। सबको सच्ची राह दिखाई, भटकावों को रोक दिया॥ हम सबको यह कला सिखा दो हे! शिव उपकारी ॥ शंभु......॥

ब्रह्मवर्चस

*समाप्त*


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