लार्ड बायरन के नाम से प्रसिद्ध (kahani)

April 2003

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चीन में एक बौद्ध भिक्षुणी थी। उसने भगवान की एक छोटी स्वर्ण प्रतिमा बनाई। उसी की पूजा−अर्चा में निरत रहती।

एक दिन महाबुद्ध उत्सव हुआ। दूर−दूर की बुद्ध प्रतिमाएँ सज−धजकर लाई गई। उनका सामूहिक पूजा−अर्चा करने का कार्यक्रम बना।

भिक्षुणी पूजा की सामग्री तो लाई, पर वह अपनी ही प्रतिमा की उससे अर्चा करना चाहती थी। धूप, दीप, नैवेद्य समारोह में जलाने पर उसे भय था कि दूसरी प्रतिमाएँ उसकी सुगंध लूट ले जाएँगी। इस हानि से बचने के लिए उसने अपनी धूप का धुआँ एक बाँस की पोंगली द्वारा अपनी प्रतिमा की नाक से सटा दिया।

थोड़ी देर में प्रतिमा का मुँह धुएँ से काला हो गया। दर्शकों को वह कुरूप लगी और पूजने तथा लाने वाले तक की भर्त्सना हुई।

खिन्न भिक्षुणी को समारोह के अधिष्ठाता ने कहा, “संकीर्णता एवं प्रदर्शन−वृत्ति के रहते पूज्य, पुजारी, पूजा का मुँह काला ही हो सकता है। वस्तुतः धर्म का अर्थ है, सदाचरण।”

दोपहर, विद्यालय के विश्राम का समय। एक दुबला−पतला सुँदर−सा लड़का विद्यालय के बाहर निकलकर खाना खाने के लिए अपने घर जा रहा था। रास्ते में उसने देखा, दो लड़के आपस में झगड़ रहे हैं। उनमें एक बलवान था और दूसरा कमजोर। बलवान लड़का कमजोर लड़के को पीट रहा था। उसके हाथ में एक लड़की थी ।

रास्ते चलने वाले लड़के को जोश आ गया। वह तुरंत बलवान लड़के के पास चला गया। उसके भारी शरीर को देख लड़के का साहस उसे टोकने का न हुआ। कुछ क्षण सोचकर उसने बलवान लड़के से पूछा, “क्यों भाई, तुम इसको कितने बेंत लगाना चाहते हो?”

किसी अपरिचित लड़के को बीच में पड़ते देख बलवान लड़के का क्रोध तेज हो गया। उसने कठोर दृष्टि से देखते हुए कहा, “क्यों, तुम्हें क्या मतलब?”

“मुझे इससे मतलब है।” राह चलते लड़के ने कहा।

“तुम क्या कर लोगे?” बलवान लड़के ने चेतावनी दी।

“भाई, मैं तुमसे अधिक बलवान तो नहीं हूँ, जो इस कमजोर को बचाने के लिए तुमसे लड़ सकूँ । लेकिन इतना जरूर चाहता हूँ कि इसकी पिटाई में मैं भी भागीदार बन जाऊँ।” दर्शक लड़के ने कहा।

“तुम्हारा मतलब क्या है?” पीटने वाला लड़का इस पहेली का अर्थ न समझ पाया।

“तुम इस कमजोर लड़के के शरीर पर कुल जितने भी बेंत मारना चाहते हो, उसके आधे मेरी पीठ पर लगा दो। इस तरह इसका आधा कष्ट मैं बँटा लूँगा।” दर्शक लड़के ने अपनी बात स्पष्ट करते हुए कहा।

बलवान लड़का आश्चर्य से देखता रहा और कुछ क्षण बाद उसने चुपचाप अपने हाथ की लकड़ी तोड़कर फेंक दी और मन में पश्चात्ताप करता अपने रास्ते चला गया। पिटने वाले लड़के की मुसीबत टल गई। वह बीच का लड़का जीवन भर इसी तरह सूझ−बूझ से कार्य करता रहा तथा बड़ा होकर अँगरेजी का प्रसिद्ध कवि लार्ड बायरन के नाम से प्रसिद्ध हुआ।


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