विधेयात्मक विचारों से समर्थ बनाएँ अपना मन

April 2003

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मनुष्य जीवन को सुखी, समृद्ध एवं सफल बनाने के लिए अथक श्रम करता है और इस प्रक्रिया में उसका औजार होता है उसका चेतन मन। जो अपनी विचार व संकल्प शक्ति द्वारा त्वरित उपलब्धियों में विश्वास करता है, किन्तु इसकी शक्ति एवं क्षमता की सीमाएँ हैं। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार मनुष्य यदि चेतन मन के साथ अवचेतन मन का भी सहयोग ले तो वाँछित सफलता अधिक त्वरित, समग्र व सरल रूप से उपलब्ध होगी। चेतन मन और बुद्धि के बाह्य प्रयास जहाँ एक सीमा तक ही अभीष्ट कार्य को सिद्ध करने में सफल हो पाते हैं, वहीं अवचेतन मन की बात दूसरी है। यह समस्त शक्ति का आधार है। एक मनोविद् के अनुसार, इसके अन्दर अद्भुत उत्पादक शक्ति भरी हुई है, जिसके द्वारा कुछ भी कार्य असम्भव नहीं। यह अल्लादीन के जादुई चिराग के समान है, जिसको घिसते ही जादुई जिन्न प्रकट होता है और मनवाँछित इच्छाओं को पूरा करता है। इसमें विश्वासपूर्ण जिन भी विचारों एवं भावों को संप्रेषित किया जाता है, यह उसी अनुरूप, अपनी असीम शक्ति के साथ इनको फलित करने में जुट जाता है, और एक अदृश्य किन्तु समर्थ सेवक की भाँति मालिक की आज्ञा का पालन करता है। इस तरह यदि हम इसका उपयोग करना सीख जायँ तो हम शारीरिक निरोगिता, मानसिक संतुलन से लेकर व्यावसायिक सफलता एवं आत्मलाभ तक के सभी क्षेत्रों में उपलब्धियों के नये आयामों को जोड़ सकते हैं।

हमारे शरीर में अवचेतन मन ही शक्ति का मूल आधार है। इसी के द्वारा शरीर के आन्तरिक अंग-अवयवों को संचालन हो रहा है। शरीर में रक्त परिभ्रमण, फेफड़ों की सक्रियता, पाचन क्रिया, हृदय का आकुँचन-प्रकुँचन आदि सभी कार्य अवचेतन मन के द्वारा ही गतिशील हैं। अवचेतन मन गहन भावनाओं द्वारा पुष्ट संकेतों से प्रभावित होता है और इन्हीं के अनुरूप शरीर पर अद्भुत प्रभाव डालता है। फ्राँस के प्रो. बूल इस संदर्भ में एक उदाहरण द्वारा इस तथ्य को स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि फ्रांस में एक अपराधी को प्राणदण्ड मिला। जेल में डॉक्टर ने उसकी आँखों पर पट्टी बाँधकर तख्ते पर लिटा दिया और कह दिया कि तुमको नसें काटकर मारा जायेगा। उसकी दोनों भुजाओं में सुइयाँ चुभो दी गई, जिससे कि वह कल्पना कर सके कि नसें काट दी गई हैं और साथ ही भुजाओं पर गर्म पानी की धारा इस तरह छोड़ी गई कि वह भ्रम में आ गया, कि नसों में से गर्म खून निकाला जा रहा है। फिर झूठ ही यह कहना शुरू किया गया कि ‘रक्त बहुत निकल गया, चारों ओर खून ही खून फैला हुआ है।’ यह सुनकर कैदी भाव जगत में लहूलुहान हो गया। और इसका परिणाम इतना भयंकर रहा कि कैदी मृत्यु को प्राप्त हो गया।

इस तरह उदाहरण से स्पष्ट होता है कि हमारे भावों एवं विश्वासों का शरीर पर कितना अद्भुत प्रभाव पड़ता है। ये अवचेतन मन द्वारा यथावत् ग्रहण किये जाते हैं और तुरन्त अपना प्रभाव दिखाते हैं। इसे छाया का भूत और रस्सी का साँप बनाते देर नहीं लगती। यह तो आज्ञाकारी सेवक की भाँति चेतन मन के सबल निर्देशों का अनुकरण करता है।

प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक डॉ. विलियम ब्राउन अवचेतन मन के रहस्यों का उद्घाटन करते हुए लिखते हैं कि ‘मैं एक रात अपनी पाइप पी रहा था। मुझे ऐसा लगा मानो कोई कह रहा हो कि धूम्रपान बुरा है। मैंने सोचा कि मुझे हुक्का पीना छोड़ देना चाहिए। उस रात को मैं देर तक कहता रहा - तम्बाकू हानिकारक है, घृणित है, इससे अनेक बुराइयाँ फैलती है। मैं कल से जरा भी हुक्का नहीं पीऊँगा। तम्बाकू से अब मेरा कोई सम्बन्ध नहीं है। मैं तो निर्विकार और निष्कलंक व्यक्ति हूँ, फिर तम्बाकू जैसे निकम्मे और निरुपयोगी पदार्थ से मेरा कोई सम्बन्ध नहीं हो सकता। मैं अवचेतन मन को ऐसे संकेत देकर सो गया। जब प्रातः उठा तो मुझे पाइप पीने की जरा भी इच्छा न हुई। तब से मेरी वह बुरी आदत छूट गयी। अब मैं अवचेतन मन पर संकेतों की पड़ने वाली अद्भुत शक्ति पर विश्वास करने लगा हूँ।’

आज यह एक वैज्ञानिक सत्य है कि यदि अवचेतन मन में यह विश्वास पैदा हो कि रोग अच्छा हो रहा है तो निश्चय ही रोग ठीक हो जायेगा। इस आधार पर आजकल बहुत से देशों में चिकित्सा कार्य एवं अनुसंधान चल रहे हैं। और बहुत से रोगी इससे आशातीत लाभ ले रहे हैं। फ्राँस में विख्यात मनोवैज्ञानिक एमिल कूए ने इस संदर्भ में गम्भीर शोध कार्य किया है व उनका यह दृढ़ विश्वास है कि ऐसा कोई रोग नहीं, जो इस पद्धति से ठीक न हो सके।

अवचेतन मन आश्चर्यजनक ढंग से कार्य को अंजाम कैसे देता है? एक मनीषी का मानना है कि अवचेतन मन अनन्त मन के संपर्क में रहता है जो कि असीम ज्ञान, असीम शक्ति और असीम आनन्द का भण्डागार है। अवचेतन मन द्वारा हम उस अनन्त मन से अभीष्ट शक्ति, ज्ञान एवं तत्त्व को प्राप्त करते हैं। किन्तु अवचेतन मन कोरे विचारों या छिछली कल्पनाओं से प्रभावित नहीं होता। यह गहन विश्वास द्वारा आवेशित विचारों, भावों एवं संकल्पों को ही ग्रहण करता है और जिस विश्वास को हम इसमें स्थापित करते हैं, उसी अनुरूप यह अभीष्ट फल देने लगता है और जीवन तथा व्यक्तित्व के स्वरूप को गढ़ता है।

एक मनोवैज्ञानिक के अनुसार - ‘हमारा जीवन प्रमुखतया अवचेतन मन द्वारा शासित होता है और सबसे महत्त्वपूर्ण चीज इसमें विधेयात्मक विचारों को भरना है। इसे हम अनवरत सकारात्मक भाव एवं चिंतन द्वारा कर सकते हैं। और यह एक स्थापित मनोवैज्ञानिक सत्य है कि अवचेतन में भेजा गया विचार, स्वतः ही फलित होता है। अतः अपनी सफलता के लिए स्वयं से हम कहें- ‘मुझे स्वयं पर व इस कार्य पर पूर्ण विश्वास है जो मैं कर रहा हूँ। मैं अपना श्रेष्ठतम प्रयास कर रहा हूँ, अतः मैं सफल होकर रहूँगा। ब्रह्मांड की अनन्त शक्ति मेरे साथ है, अतः मुझे किसी भी चीज से भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है।’ इस तरह के सकारात्मक भाव, विचारों एवं संकल्पों को दिन में कई बार दुहराते हुए अवचेतन मन की शक्ति को सक्रिय कर सकते हैं। प्रख्यात् मनोवैज्ञानिक नेपोलियन हिल के शब्दों में - ‘अपने अवचेतन मन में विधेयात्मक निर्देशों का निरन्तर प्रेषण ही एकमात्र वह पद्धति है जिसके द्वारा अंतर्मन में आत्म श्रद्धा एवं विश्वास को सचेतन रूप से विकसित किया जा सकता है। और अवचेतन मन में अनवरत रूप से संप्रेषित विचार अन्ततः स्वीकृत किया जाता है और क्रिया रूप में परिणत होता है तथा अभीष्ट फल देता है।’

समस्याओं के समाधान में अवचेतन मन कैसे काम करता है? इस संदर्भ में मनोवैज्ञानिकों के अनुसार - ‘इनक्यूवेशन’ अर्थात् परिपाक अवस्था एक महत्त्वपूर्ण तथ्य है। यह चेतन मन द्वारा समस्या के समाधान में किये गये अथक प्रयास के बाद इसे अवचेतन मन के हवाले छोड़ देना है। इसे विश्राँति काल भी कह सकते हैं जब चेतन मन समस्या के प्रति निश्चिंत होकर अन्य कार्यों को करता है और अवचेतन मन के गुह्य क्षेत्र में समस्या का समाधान रहस्यमय ढंग से चलता रहता है और उचित समय पर समाधान उभर कर चेतन मन की सतह पर एक प्रेरणा या स्फुरणा के रूप में उभरता है। वैज्ञानिक आविष्कारों, कलात्मक कृतियों, साहित्यिक रचनाओं एवं मानव की अन्य श्रेष्ठतम उपलब्धियों के मूल में यही रहस्य निहित रहा है।

इस तरह अवचेतन मन की अद्भुत शक्तियों का उपयोग हम जीवन के हर क्षेत्र को सजाने-सँवारने व इसे सर्वांग सुन्दर बनाने में कर सकते हैं।

पुष्ट संकेतों का संप्रेषण सबसे फलदायी ढंग से शरीर व मन की अर्धचेतनावस्था में होता है। इसलिए या तो प्रातः उठते समय जब पूरी नींद टूटती है या रात को लेटते समय जब दोनों आँखें बन्द होने लगती है, इसके लिए सबसे बेहतर समय हैं। इस समय हम व्यक्तित्व का जो भी पक्ष गढ़ना चाहते हैं या जीवन में जो भी अभीष्ट की प्राप्ति चाहते हैं, उसके अनुरूप अवचेतन मन के साथ भावपूर्ण अंतर्संवाद के अभ्यास द्वारा साकार कर सकते हैं।

लेकिन इसकी सफलता के लिए नियमित रूप से किया गया अध्यवसाय पूर्ण प्रयास अनिवार्य है। बार-बार और एक दिन भी नागा किये बिना अवचेतन मन को पुष्ट संकेतों से भरते रहना आवश्यक है। प्रत्येक दिन प्रातः एवं रात्रि के अतिरिक्त दिन भर में मन ही मन यदा-कदा इनकी आवृत्ति करते रहना चाहिए।

विश्वास इस प्रशिक्षण का प्राण है। विश्वास जितना दृढ़ होगा, प्रयास उतना ही फलदायी होगा। अविश्वास इसका महान् शत्रु है क्योंकि अवचेतन मन एक आज्ञाकारी सेवक की भाँति नकारात्मक भावों को भी उतनी ही शक्ति के साथ क्रियान्वित करता है। अतः अवाँछनीय निर्देशों के परिणाम घातक ही होंगे, यह सुनिश्चित है। अतः विश्वास को अभीष्ट सिद्धि का आधा फल मान सकते हैं। ‘यादृशी भावना यस्य सिद्धिर्भवति’ - जिसकी जैसी भावना होती है, उसकी सिद्धि भी वैसी ही होती है। यह एक सामान्य तथ्य है कि जो जैसे सोचता है, वह वैसा ही बन जाता है। रामकृष्ण परमहंस कहा करते थे कि जो स्वयं को पापी-पापी सोचता है, वह पापी ही बन जाता है। और अपने को महात्मा सोचते-सोचते वह महात्मा बन जाता है। जितनी बार हम स्वयं को दुर्बल, दुष्ट या बुरा सोचने की भावना मन में लायेंगे, उतनी ही बार हम अपनी प्रगति के रास्ते में काँटे बोते जाते हैं।

इस तरह अवचेतन मन हमारे हाथ में एक महान् उपकरण है, जिसकी शक्ति, समर्थता एवं आज्ञाकारिता का समुचित सदुपयोग करते हुए हम जीवन में अभीष्ट वरदानों की सृष्टि कर सकते हैं। यह तो कम्प्यूटर की तरह है, जिसमें हम जैसा प्रोग्राम (Input) भरेंगे, वैसा ही वह हमें परिणाम (Output) प्रस्तुत करेगा। हमारा जीवन स्वस्थ एवं सुखी हो, इसके लिए आवश्यक है कि हम स्वस्थ एवं स्वच्छ विचार भावों को ही इसमें संप्रेषित करें। हमारा जीवन सफलता एवं शान्ति से परिपूर्ण बनें इसके लिए अभीष्ट है कि हम श्रेष्ठतम, उदात्ततम एवं दिव्य विचारों से अपने अवचेतन को परिपुष्ट करें और इस तरह जीवन का सर्वांग सुन्दर रूप से गठन करते हुए अपने चरम लक्ष्य की ओर बढ़े।


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