इंग्लैंड के प्रख्यात पत्र ‘ग्लासेस्टर टाइम्स’ के संपादक और प्रकाशक एबर्ट रेक्स एक दिन किसी काम से सूटी आले मुहल्ले से होकर गुजर रहे थे। उसे गंदी बस्ती कहा जाता था। माँ−बाप जहाँ−तहाँ मजदूरी करने चले जाते और बच्चे आवारा फिरते। उन्हें शिष्टाचार का तनिक भी ज्ञान न था।
रेक्स जब उधर से निकले तो आवारा लड़कों ने उन पर कीचड़ फेंकना शुरू किया और सारे कपड़े गंदगी से सराबोर कर दिए। लड़कों पर समझाने का कोई असर नहीं हुआ। माँ−बाप वहाँ थे नहीं।
रेक्स पर इस घटना का बड़ा प्रभाव पड़ा। उनने लंदन और समीपवर्ती इलाकों का सर्वे किया। साथ ही यह भी पाया कि संपन्न लोगों में भी शिष्टाचार एवं नागरिक कर्त्तव्यों के प्रति रुचि बहुत कम है। इस सबने उन्हें कुछ करने के लिए प्रेरित किया।
रेक्स ने अपनी पत्रिका द्वारा भी शिष्टाचार का प्रसार किया। पुस्तिकाएँ भी लिखीं और मुहल्ले−मुहल्ले रविवारीय कक्षाएँ लगाने का प्रयत्न किया। आरंभ में तो इसे निरर्थक ठहराया जाता रहा, पर पीछे उस प्रयास की उपयोगिता समझी गई। पाँच वर्ष की अवधि में ऐसे एक हजार स्कूल खुले और उनमें एक लाख से अधिक शिक्षार्थियों ने नागरिक कर्त्तव्यों की प्रारंभिक शिक्षा पाई।