(उत्तरार्द्ध)
पिछले अंक में कालमेघ क्वाथ, वासा क्वाथ, निर्गुंडी क्वाथ एवं कुटज क्वाथ का वर्णन किया जा चुका है। यह पाया गया है कि एलोपैथी दवाओं के साथ−साथ क्वाथ−चिकित्सा अपनाने पर एलोपैथी से होने वाले ‘साइड इफेक्ट्स’ अर्थात् उनके दुष्प्रभाव कम हो जाते हैं। उदाहरण के लिए एंटीबायोटिक दवाइयाँ देने के पश्चात महीनों तक रोगी व्यक्ति को कमजोरी बनी रहती है, जबकि एंटीबायोटिक के साथ उसी के अनुकूल क्वाथ चिकित्सा देने पर दुर्बलता लंबे समय तक नहीं रह पाती और व्यक्ति जल्दी स्वस्थ हो जाता है। जहाँ रोगों की तीव्रता हो या रोग पर नियंत्रण पाने में कठिनाई हो रही हो, वहाँ प्रारंभ में एलोपैथी का सहारा लिया जा सकता है, किंतु बाद में क्वाथ−चिकित्सा से रोग को पूरी तरह से निर्मूल किया जा सकता है। जिन्होंने पहले लंबे समय तक एलोपैथी दवाइयों का सेवन किया है, उन्हें भी बाद में पथ्य−परहेज रखते हुए माह−दो माह तक क्वाथ−चिकित्सा का अनिवार्य रूप से सेवन करना चाहिए। इससे एलोपैथी से होने वाले नुकसान की भरपाई प्राकृतिक ढंग से सहज रूप से में हो जाती है।
यहाँ पर जिन क्वाथों की चर्चा की जा रही है, उनमें सम्मिलित हैं−(5) अश्वगंधा क्वाथ, (6) सरस्वती पंचक क्वाथ, (7) त्रिफला क्वाथ, (8) अशोक क्वाथ एवं (9) काँचनार क्वाथ। इन क्वाथों से संबंधित घटक औषधियाँ एवं उनकी निर्धारित मात्रा इस प्रकार है—
(5) अश्वगंधा क्वाथ
अश्वगंधा—1/2 चम्मच, मुलहठी—1 चम्मच, विदारीकंद—2 चम्मच, विधारा—1 चम्मच, गोक्षरु—1 चम्मच, नागरमोथा—1 चम्मच, दशमूल—1/2 चम्मच, शतावर—1 चम्मच।
अश्वगंधा क्वाथ एक सर्वोत्तम टॉनिक है। यह शक्ति वर्द्धक है, साथ−ही−साथ सभी प्रकार की शारीरिक−मानसिक कमजोरियों को दूर कर सेवनकर्त्ता को हरदम तरोताजा बनाए रखता है।
(6) सरस्वती पंचक क्वाथ
इसमें निम्नलिखित पाँच चीजें संभाग में मिलाई जाती हैं—
ब्राह्मी—1 चम्मच, शंखपुष्पी—1 चम्मच, मीठी बच—1 चम्मच, गोरखमुँडी—1 चम्मच, शतावर—1 चम्मच।
यह क्वाथ बुद्धिवर्द्धक, प्रतिभा संवर्द्धक है। विद्यार्थियों, शिक्षकों, लेखकों एवं बुद्धिजीवियों के लिए बहुत ही उपयोगी है। साथ−ही साथ सिरदर्द, तनाव, उदासी, उत्तेजना, पागलपन, अनिद्रा, हिस्टीरिया आदि मस्तिष्क संबंधी समस्त रोगों पर लाभकारी है। इस क्वाथ का सेवन हृदय की धड़कन को सामान्य बनाता है। सरस्वती पंचक का यह योग परमपूज्य गुरुदेव द्वारा बनाया गया था, जो कई दशकों से सेवनकर्त्ताओं को लाभान्वित कर रहा है। बच्चों के लिए 1 चम्मच सुबह एवं 1 चम्मच शाम तथा बड़ों के लिए 20−20 मिलीलीटर सुबह−शाम देने का विधान है। सरस्वती पंचक को पाउडर के रूप में भी लिया जा सकता है। बच्चों के लिए 1/4 चम्मच (चौथाई चम्मच) तथा बड़ों के लिए 1 चम्मच पाउडर दूध, शहद या घी−शक्कर के साथ सुबह−शाम को देना चाहिए।
(7) त्रिफला क्वाथ
इसमें निम्नलिखित चीजें मिलाई जाती हैं—
हरड़—(1) चम्मच, बहेड़ा—1 चम्मच, सनाय पत्ती—2 चम्मच, अमलतास का गुदा—1 चम्मच।
देखा जाए है कि ठंडे प्रदेशों, विशेषकर हिमालय की तराई में रहने वालों को त्रिफला क्वाथ में आँवले का प्रयोग करने पर, विशेषकर कच्चे आँवले से जोड़ों का दर्द, आर्थ्रराइटिस एवं गले की खराश बढ़ती है। अतः त्रिफला के प्रमुख घटक आँवला के स्थान पर अमलतास का गूदा डालने पर यह प्रभाव नहीं होता और जोड़ों का दर्द, आर्थ्रराइटिस आदि की समस्या भी नहीं रहती। गरमी वाले प्राँतों के लोग त्रिफला क्वाथ में 1 चम्मच के हिसाब से पका हुआ आँवला मिला सकते हैं। कब्ज एवं उदर रोगों के लिए त्रिफला क्वाथ बहुत ही उपयोगी है। आवश्यकता पड़ने पर अमलतास एवं सनाय पत्ती की मात्रा बढ़ाई जा सकती है।
(8) अशोक क्वाथ
इसमें निम्नाँकित चीजें मिलाई जाती हैं—
अशोक—1 चम्मच, लोध्र—1 चम्मच, अश्वगंधा—1/2 चम्मच, नागरमोथा—1 चम्मच, शतावर—1/2 चम्मच, मुलहठी—1 चम्मच, नीम छाल—1/2 चम्मच, उलट कंबल—1 चम्मच, गिलोय—1 चम्मच, पद्माख—1 चम्मच, खूनखराबा—2 रत्ती (एक रत्ती = 100 मिलीग्राम)
अशोक क्वाथ स्त्री रोगों, विशेषकर प्रदर आदि रोगों में बहुत उपयोगी सिद्ध हुआ है।
(9) काँचनार क्वाथ
इसमें निम्नलिखित चीजें मिलाई जाती हैं—
काँचनार छाल—2 चम्मच, शरपुँखा—1 चम्मच, गिलोय—2 चम्मच, पुनर्नवा—1 चम्मच, भारंगी—1 चम्मच, अशोक—1 चम्मच, अर्जुन—1 चम्मच, वरुण—1 चम्मच, अश्वगंधा—1/2 चम्मच, सारिवा—1 चम्मच, शतावर—1 चम्मच, कायफल—1 चम्मच।
हाइपोथाइरॉइडिज्म एवं गलगंड में यह क्वाथ विशेष रूप से लाभकारी है। कुपोषण अथवा एलोपैथी दवाओं के दुष्प्रभाव से कई बार गले में स्थित अंतःस्रावी थाइराइड ग्लैंड प्रभावित हो जाती है और थाइरॉक्सिन एवं ट्राइ−आयडोथाइरोनीन नामक हार्मोनों का स्राव पर्याप्त मात्रा में नहीं हो पाता। इसके कारण हाइपो थाइरॉइडिज्म एवं गलगंड जैसी बीमारियाँ उत्पन्न हो जाती हैं। हाइपो थारॉइडिज्म की अधिकतर शिकार प्रायः महिलाएँ होती हैं। इसके कारण गले की सूजन, शारीरिक शोथ, मोटापा, आलस्य, सुस्ती जैसी कितनी ही शारीरिक−मानसिक बीमारियाँ पैदा हो जाती हैं। ऐसी स्थिति में पथ्य−परहेज के साथ काँचनार क्वाथ का निरंतर नियमित रूप से सेवन करते रहने से न केवल उक्त परेशानियों से छुटकारा मिलता है, वरन् हाइपो थारॉइडिज्म को भी निर्मूल किया जा सकता है, जो अन्यान्य चिकित्सा पद्धतियों से संभव नहीं हो पाता है।
क्वाथ बनाने की विधि
क्वाथ बनाने की सबसे सरल विधि यह है कि सबसे पहले क्वाथ में जितनी दवाइयाँ डालनी हैं, उनको साफ−स्वच्छ करके कूट−पीसकर उनका अलग−अलग जौकुट (मोटा) पाउडर बना लिया जाए। तदुपराँत उन्हें उपर्युक्त निर्धारित मात्रा में लेकर सबको मिलाकर एकसार कर लिया जाए और एक डिब्बे में क्वाथ का नाम लिखकर सुरक्षित रख लिया जाए। जब क्वाथ बनाना हो तो निर्धारित क्वाथ के घटकों के सामने अंकित मात्रा को जोड़कर उतने चम्मच जौकुट पाउडर लेकर उन्हें लगभग पौन लीटर से एक लीटर जल में भिगो दिया जाए। यों तो सामान्य नियम यह है कि क्वाथ की मात्रा यदि 10 ग्राम है तो उसको लगभग 300 मिलीलीटर शेष रह जाए तब छानकर पानी (क्वाथ) पी लेना चाहिए।
जब भी क्वाथ बनाना हो तो दवाओं के सम्मिलित जौकुट पाउडर को निर्धारित मात्रा में लेकर उसे 16 गुने जल में या उपर्युक्त नियमानुसार जल में स्टील के एक स्वच्छ भगोने में भिगो देना चाहिए। आयुर्वेदानुसार वयस्कों के लिए जौकुट पाउडर या चूर्ण चार तोला अर्थात् 48 ग्राम एवं अवयस्कों के लिए 24 ग्राम निर्धारित है, किंतु कुशल एवं अनुभवी चिकित्सक उसमें दोष−बल के अनुसार घट−बढ़ कर लेते हैं। क्वाथ बनाने का सबसे सरल एवं उत्तम तरीका यही है कि इसे रात्रि में भिगो दिया जाए और सुबह मंद आँच पर उबाला जाए। सुविधानुसार इसे सुबह भिगोया और दोपहर में उबाला या दोपहर में भिगोकर शाम को उबाला जा सकता है। काढ़े को उबालने से पहले उसे कम−से−कम 8−10 घंटे पहले भिगोकर रखने से वह अधिक गुणकारी हो जाता है। क्वाथ सदैव मंद आँच पर ही बनाना चाहिए।
क्वाथ या काढ़ा जहाँ तक हो सके, सदैव ताजा बनाकर ही पीना चाहिए। सुबह का बनाया हुआ क्वाथ शाम को एवं शाम का बनाया हुआ सुबह को लिया जा सकता है। गर्मियों में अधिक समय तक क्वाथ रखा रहने से प्रायः वह खट्टा हो जाता है, अतः इस तरह के क्वाथ को नहीं पीना चाहिए। इसी तरह जला हुआ, काला, नीला, लाल, झागदार, कच्चा एवं दुर्गंधयुक्त क्वाथ भी नहीं पीना चाहिए। यह विषतुल्य माना जाता है। औषधियों की मौलिक गंध से युक्त एवं सुँदर रंग वाला काढ़ा ही पीना चाहिए। यह अमृत के समान गुणकारी होता है।
क्वाथ सेवन का सर्वोत्तम समय आहार रस के पाक हो चुकने के बाद अर्थात् भोजन पचने के बाद का है। क्वाथ का स्वाद कड़वा होने पर उसमें शहद या मीठा मिलाकर भी पी सकते हैं, किंतु बिना मीठे के क्वाथ पीना अत्यंत लाभप्रद होता है। कभी−कभी रोगानुसार क्वाथ में कोई द्रव या प्रक्षेप विशेष मिलाने के लिए कहा जाता है, जैसे जीरा, हींग, सेंधा नमक, जवाखार, गूगल, सोंठ, पीपर, कालीमिर्च या त्रिकटु, शिलाजीत आदि। अतः इन्हें क्वाथ में पीते समय 1 से 4 ग्राम की मात्रा में मिलाकर तब पीना चाहिए। इसी तरह दूध, घी, तेल, गोमूत्र, गुड़ आदि क्वाथ में डालना हो तो 10-12 ग्राम तक की मात्रा में इन्हें मिलाकर तब पीना चाहिए। प्रक्षेप वाली इन चीजों को क्वाथ में पहले से मिलाकर नहीं रखा जाता और न ही उबालते समय डाला जाता है। क्वाथ में शहद मिलाना हो तो कफ प्रधान रोगों में क्वाथ का चौथाई भाग, पित्त प्रधान रोगों में आठवाँ भाग एवं वात प्रधान रोगों में सोलहवाँ भाग मिलाना चाहिए। खाँड़ या मिसरी मिलाना हो तो वात प्रधान रोगों में चौथाई भाग, पित्त प्रधान रोगों में आठवाँ भाग एवं कफ प्रधान रोगों में सोलहवाँ भाग डालनी चाहिए।
एक बार तैयार किए हुए क्वाथ को ठंडा होने के पश्चात दुबारा उसे गरम करके नहीं पीना चाहिए। कहा गया है, शृतशीतं पुनस्तप्तं तोयं विषसमं भवेत्। निर्य्यूहोऽपि तथाशीतः पुनस्तप्तो विषोपमः॥ अर्थात् एक बार उबालने के पश्चात शीतल किया हुआ जल दुबारा गरम करने पर विषतुल्य हो जाता है। इसी प्रकार निर्य्यूह अर्थात् क्वाथ ठंडा होने के बाद दुबारा गरम करके पीने से विष के समान हो जाता है। काढ़ा पीने के पश्चात एक घंटे तक पानी नहीं पीना चाहिए। नियमित रूप से पथ्य−परहेज के साथ क्वाथ−चिकित्सा अपनाने से हर कोई स्वास्थ्य−लाभ प्राप्त कर सकता है और कायाकल्प जैसा स्फूर्ति भरे जीवन का आनंद उठा सकता है।