सरदार वल्लभ भाई पटेल तब नेता नहीं, वकील थे। एक मुकदमे में बहस कर रहे थे। इसी बीच चपरासी ने एक कागज हाथ में थमाया। पढ़कर वे सन्न रह गए, पर दूसरे ही क्षण बहस आरंभ कर दी और कचहरी समाप्त होने तक काम चालू रखा। बहस बंद हुई, तो सरदार की आँखों से आँसू टपक पड़े। अदालत समेत उपस्थित लोगों ने कारण पूछा, तो पता चला कि चपरासी के जो कागज दिया था, उसमें उनकी पत्नी की मृत्यु का समाचार था।
बहस अधूरी छोड़ने से दोनों पक्षों का तथा अदालत का जो समय खराब होता, उसे देखते हुए सरदार ने अपने पर अंकुश लगाना ही ठीक समझा।