एक सद्गृहस्थ राज्याधिकारियों का कोपभाजन बना और कोई आरोप लगाकर उसे बंदीगृह में पहुँचा दिया गया। बंदी ने एक रात स्वप्न देखा-उसने अपनी माता की हत्या कर दी सबेरे उठते ही इस विचित्र स्वप्न से वह सिहर उठा। माता के प्रति अन्नन्य भक्ति-भाव रखने और उसकी सेवा-सहायता का निरंतर ध्यान रखने वाले को यह दुस्स्वप्न क्यों आया? समाधान वह किससे पूछता। एक दिन एक धर्मोपदेशक बंदीगृह में पहुँचे। कैदियों ने अपनी अपनी जिज्ञासाएँ प्रस्तुत की। उसी अवसर पर इस मातृहत्या का स्वप्न देखने वाले ने भी अपना असमंजस प्रकट किया। साधु ने बताया-लगता है-भोजन बनाने या परोसने वाला कोई ऐसे ही कृत्य का अपराधी रहा होगा। उसके कुसंस्कार अन्न के साथ तुम्हारे मन को वैसी ही उत्तेजना देने लगे होंगे। तलाश किया तो बात सच निकली। एकमात्र हत्यारा बंदीगृह का रसोइया था। जब वह छूट गया और दूसरे कैदी भोजन बनाने लगे, तो उस प्रकार के सपने भी समाप्त हो गए। अन्न के साथ जुड़ने वाले संस्कारों की बात सभी ने अच्छी तरह समझी।