मंद बुद्धि बालकों का अनुपात (Kahani)

October 1999

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मेघनाद और रावण ने भी उन्हीं दिनों शक्ति पूजा की थी, जिन दिनों जिन दिनों राम ने शक्ति का आराधन किया था। असुर सम्राट और लंका के सेनापति के पास साधन सुविधाएं राम की तुलना में श्रेष्ठ ही थी। श्रद्धाभक्ति और विश्वास की दृष्टि से भी वे राम के सामने उन्नीस नहीं बैठते थे राम और रावण दोनों की पूजा सफल हुई। आशीर्वाद भी दिए फिर भी विजयश्री राम को ही क्यों मिली?

राजा विक्रमादित्य के राज्य में एक सदाचारी-संतोषी ब्राह्मण था वह निर्धन था। स्त्री की प्रेरणा से धन प्राप्ति के निमित्त घर से निकला तो जंगल में एक महात्मा से भेंट हुई। उन्होंने उसे चिंतित देख आश्वासन दिया और विक्रमादित्य को पत्र लिखा की तुम्हारी इच्छापूर्ति का अब समय आ गया है। अपना राज्य इस ब्राह्मण को देकर यहाँ चले आओ।

वह पत्र विक्रमादित्य ने पढ़ा, तो उन्हें बड़ी प्रसन्नता हुई और ब्राह्मण को राज्य सौंपने की तैयारी की। ब्राह्मण ने राजा को राज्य त्याग के लिए इतना उत्सुक और अत्यंत आनंद विभोर देखा, तो सोचना लगा की जब राजा ही राज्य सुख को लात मारकर योगी के पास जाने में विशेष आनंद अनुभव कर रहे है, तो योगी के पास अवश्य ही कोई राज्य से भी बड़ा सुख है। अतः उसने राजा से कहा-महाराज! मैं महात्मा के पास पुनः जा रहा हु, लौट कर राज्य लूँगा।ष् यह कहकर वह योगी के पास पहुंचकर बोला-भगवान! राजा तो राज्य त्याग कर आप के पास आने के लिए निताँत उतावला और हर्षविभोर हो गया। इससे जान पड़ता है की आप के पास राज्य से भी बड़ी कोई वस्तु है, मुझे वही दीजिये।ष् महात्मा ने प्रसन्नचित हो ब्राह्मण देवता को आत्मविधा सिखाई और उसे वह वैभव दे दिया जो उसे मोक्ष दिला गया। उस सुख की तुलना में सारे साँसारिक सुख नगण्य है।

जो आत्मावलंबी बहुरंगी दुनिया के सुख-आकर्षणों को ठुकराता है, अन्तः वह इस श्रेय का भागी बनता है। जो क्षणिक सुखलाभ के मोह में उन्हीं में लिप्त हो जाता है, वे अन्तः त्रास ही पाते है, भले ही उसमें तत्कालीन दृष्टि से सुख मिलता हो। उनकी उपमा तो उस बालक से ही की जा सकती है, जो खिलौने से खेल कर सामयिक आनंद पाने में ही रुचि लेता है। आयु की दृष्टि से बड़े होने पर भी ऐसे मंद बुद्धि बालकों का अनुपात जन्समुदाये में ही अधिक ही होता है।


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