अखण्ड ज्योतिः आज से पचास वर्ष पूर्व - महापुरुषों द्वारा गायत्री महिमा का गान

October 1999

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हिंदूधर्म में अनेक मान्यताएँ प्रचलित हैं। विविध बातों के संबंध में परस्पर विरोधी मतभेद भी हैं। परंतु गायत्री मंत्र की महिमा एक ऐसा तत्व है, जिसे सभी शास्त्रों ने, सभी संप्रदायों ने, सभी ऋषियों ने एक स्वर से स्वीकार किया है।

अथर्ववेद 19-71-1 में गायत्री की स्तुति की गई है, जिसमें उसे आयु, प्राण,शक्ति, कीर्ति, धन और ब्रह्मतेज प्रदान करने वाली कहा गया है। विश्वामित्र का कथन है- “गायत्री के समान चारों वेदों में कोई मंत्र नहीं है। संपूर्ण वेद, यज्ञ, दान, तप, गायत्री मंत्र की एक कला के समान भी नहीं हैं।” भगवान मनु का कथन है- “ब्रह्माजी ने तीन वेदों का सार तीन चरण वाले गायत्री मंत्र के रूप में निकाला। गायत्री से बढ़कर पवित्र करने और कोई मंत्र नहीं है। जो मनुष्य नियमित रूप से तीन वर्ष तक गायत्री का जप करता है, वह ईश्वर को प्राप्त करता है। जो द्विज दोनों संध्याओं में गायत्री जपता है, वह वेद पढ़ने के फल को प्राप्त होता है। अन्य कोई साधना करे या न करे, केवल गायत्री जप से भी सिद्धि पा सकता है। नित्य एक हजार जप करने वाला पापों से वैसे ही छूट जाता है, जैसे केंचुली से सर्प छूट जाता है। जो द्विज गायत्री की उपासना नहीं करता, वह निंदा का पात्र है।”

ऋषि याज्ञवल्क्य कहते हैं- “गायत्री और समस्त वेदों को तराजू में तोला गया। एक ओर षट्अंगों समेत वेद और दूसरी ओर गायत्री को रखा गया। वेदों का सार उपनिषद् है। उपनिषदों का सार व्याहृति समेत गायत्री है। गायत्री वेदों की जननी है, पापों का नाश करने वाली है इससे अधिक पवित्र करने वाला अन्य कोई मंत्र स्वर्ग और पृथ्वी पर नहीं है।” वस्तुतः यही कहा गया है कि गंगा के समान कोई तीर्थ नहीं, केशव से श्रेष्ठ कोई देव नहीं गायत्री से श्रेष्ठ कोई मंत्र न हुआ है, न आगे होगा। गायत्री जान लेने वाला समस्त विधाओं का वेत्ता और श्रेष्ठ श्रोत्रिय हो जाता है। जो द्विज गायत्रीपरायण नहीं, वह वेदों का पारंगत होते हुए भी शूद्र के समान है, अन्यत्र किया हुआ उसका श्रम व्यर्थ है। जो गायत्री नहीं जानता ऐसा व्यक्ति ब्राह्मणत्व से च्युत और पापयुक्त हो जाता है।

पाराशर मुनि कहते हैं- “समस्त सूक्तों तथा वेदमंत्रों में गायत्री मंत्र परम श्रेष्ठ है। वेद और गायत्री की तुलना में गायत्री जपने वाला परम मुक्त होकर पवित्र बन जाता है। वेद, शास्त्र, पुराण, इतिहास पढ़ लेने पर भी जो गायत्री से हीन है, उसे ब्राह्मण नहीं समझना चाहिए।”

शंख ऋषि का मत है - “नरक रूपी समुद्र में गिरते हुए को हाथ पकड़कर बचाने वाली गायत्री ही है। गायत्री का ज्ञाता निस्संदेह स्वर्ग को प्राप्त करता है। “शौनक ऋषि का मत है ”अन्य उपासनाएँ करें चाहे न करें, केवल गायत्री जप से द्विज जीवनमुक्त हो जाता है। साँसारिक और पारलौकिक समस्त सुखों को पाता है। संकट के समय दस हजार जप करने से विपत्ति का निवारण होता है।”

अत्रि ऋषि कहते हैं - “गायत्री आत्मा का परम शोधन करने वाली शक्ति है। उसके प्रताप से कठिन दोष और दुर्गुणों का परिमार्जन हो जाता है। जो मनुष्य गायत्री तत्त्व को भलीप्रकार समझ लेता है, इसके लिए इस संसार में कोई दुख शेष नहीं रह जाता।” महर्षि व्यास कहते हैं- “जिस प्रकार पुष्पों का सार शहद, दुग्ध का सार घृत है, उसी प्रकार समस्त वेदों का सार गायत्री है। सिद्ध की हुई गायत्री कामधेनु के समान है। गंगा शरीर के पापों को निर्मल करती है, गायत्री रूपी ब्रह्मगंगा से आत्मा पवित्र होती है। जो गायत्री छोड़कर अन्य उपासनाएँ करता है, वह पकवान छोड़कर भिक्षा माँगने वाले के समान मूर्ख है। काम्य सफलता तथा तप की वृद्धि के लिए गायत्री से श्रेष्ठ और कुछ है नहीं।”

भारद्वाज ऋषि कहते हैं- “ब्रह्मा आदि देवता भी गायत्री का जप करते हैं, वह ब्रह्मसाक्षात्कार कराने वाली है। अनुचित काम करने वालों के दुर्गुण गायत्री के कारण छूट जाते हैं। गायत्री से रहित व्यक्ति शूद्र से भी अपवित्र है।” नारद जी की उथ्कत है- “गायत्रीशक्ति का ही रूप है। जहाँ भक्तिरूपा गायत्री है, वहाँ श्री नारायण का निवास होने में काई संदेह नहीं होना चाहिए।” वर्तमान शताब्दी के आध्यात्मिक तथा दार्शनिक महापुरुषों ने भी गायत्री के महत्व को उसी प्रकार स्वीकार किया है जैसा कि प्राचीनकाल के तत्वदर्शी ऋषियों ने किया था। महात्मा गाँधी कहते हैं- “जिस बहुमुखी दासता के बंधनों में भारतीय प्रजा जकड़ी हुई, उसका अंत राजनैतिक संघर्ष करने मात्र से न हो जाएगा। उसके लिए आत्मा के अंदर प्रकाश उत्पन्न होना चाहिए, जिससे सत् और असत् का विवेक पैदा हो, कुमार्ग को छोड़कर श्रेष्ठ मार्ग पर चलने की प्रेरणा मिले। गायत्री मंत्र में वही भावना विद्यमान है।”

महामना मालवीय जी ने कहा है- “ऋषियों ने जो अमूल्य रत्न हमें दिए हैं, उनमें से एक अनुपम रत्न गायत्री है। गायत्री में ईश्वरपरायणता का भाव उत्पन्न करने की शक्ति है।” श्री रामकृष्ण परमहंस कहते थे-लंबे साधन करने की जरूरत नहीं है। इस छोटी-सी गायत्री की साधना करके तो देखो। इससे बड़ी-बड़ी सिद्धियाँ मिल जाती है। उपर्युक्त सभी मंतव्य बताते हैं कि गायत्री उपासना के पीछे आत्मोन्नति में सहायक ठोस तत्वों का बल है। गायत्री साधना कभी निष्फल नहीं जाती।


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