अपनों से अपनी बात-2 - असीम-अनन्त विस्तार होने जा रहा है नवयुग की गंगोत्री का

January 1999

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महाकाल का घोंसला शाँतिकुँज विगत वर्ष महाशिवरात्रि की वेला में ही एक अतिविस्तृत परिसर के रूप ढाई गुना बड़ा रूप ले चुका है, यह समाचार सभी को विदित हैं प्रस्तुत परिसर को नवयुग की गंगोत्री के रूप में, भविष्य का युग कैसा होगा, इसके मॉडल के रूप में विकसित किया जा रहा है, यह जानकारी हम परिजनों को समय-समय पर देते रहे है। विश्वामित्र ऋषि की तपस्थली के रूप में इस युग के द्रष्टा परमपूज्य गुरुदेव ने अपनी पूर्व की तपस्थली का जब चयन किया था, तब उसके एक छोटे संस्करण का ही निर्माण हुआ था। आज तो यह प्राचीन तीर्थों, आरण्यकों, देवालयों, आश्रमों, गुरुकुलों की परम्परा की स्मृति दिलाने वाले एक समन्वित संस्करण के रूप में इतना विराट रूप ले चुका है कि सभी इसे एक दैवी पुरुषार्थ ही मानते है। मत्स्यावतार की तरह बढ़ते जा रहे करोड़ों व्यक्तियों, गायत्री साधकों के इस मुख्यालय को श्रद्धा के केन्द्रबिन्दु के रूप में विकसित किया गया था। संजीवनी साधना-सत्रों के शिविरार्थी- गणों को शाँति से साधना करने के निमित्त ही इसे बनाया गया था। परंतु आज इसी परिसर में सभी तरह की रचनात्मक, संगठनात्मक, सुधारात्मक गतिविधियाँ भी संचालित हो रही है। नयी भूमि के क्रय किये के बाद साधनाकेन्द्र इसी को बनाए रख शेष सारी गतिविधियों नए विस्तार में विकेन्द्रित किये जाने की बात सूत्र−संचालक सत्ता के सभी प्रतिनिधियों ने एकमत से स्वीकार की हैं

नया स्थान जो लिया गया है, पीछे गढ़वाल हिमालय की गिरि श्रृंखलाओं का छाया में सघन आम्रकुँजों से घिरा हुआ, दिल्ली-ऋषिकेश राजमार्ग पर हैं अभी तो प्रायः पच्चीस एकड़ का एक छोटा-सा भाग ही लिया गया है, किंतु भविष्य की संभावनाओं व कार्य के बढ़ते स्वरूप का देखते हुए आसपास के क्षेत्र को भी इसमें जोड़कर योजनाओं को मूर्तरूप देने की बात मन में आ रही हैं यह स्थान वर्तमान शाँतिकुँज से प्रायः 2 फर्लांग की दूरी पर ऋषिकेश की ओर है। कोलाहल से दूर वृक्षों की झुरमुटी सघनता से घिरा यह स्थान विश्व-विद्यालय स्तर की स्थापना के लिए एक आदर्श स्थान है। यही चिन्तन दृष्टिगत रख ऋषियुग्म की इच्छानुसार इसे नालन्दा तक्षशिला स्तर का, विश्व स्तर का प्रशिक्षण केन्द्र बनाए जाने की निश्चय हुआ हैं नक्शे बन रहे है- सभी शीर्ष स्तर के आर्कीटेक्टों भवन निर्माताओं से संपर्क जारी है तथा इसी फरवरी में निर्माणकार्य के द्रुतगामी रूप से आरम्भ होने की संभावनाएँ है।

इस शाँतिकुँज विस्तार में जो-जो विधाएँ प्रमुख रूप में ली गयी है व जो निर्माण प्रथम वरीयता पर हाथ में लिए जा रहे है, वे इस प्रकार है-

आयुर्वेद के जन-जन तक विस्तार व विज्ञानसम्मत प्रस्तुतीकरण हेतु एक आधुनिकतम शोध-संस्थान का अभिनव निर्माण यहाँ किया जाना है। आज आयुर्वेद ही जन स्वास्थ्य को वे संजीवनी औषधियाँ दे सकता है, जिनकी मानवजाति को तलाश है।लगभग खोखले ही चुके मानव समुदाय को यदि कहीं से निजात मिल सकती है, तो वह वनौषधि विज्ञान एवं आयुर्वेद की शास्त्रसम्मत सभी विधाओं के पुनर्जीवन से, उनके प्रामाणिक प्रस्तुतीकरण से। एक ऐसे ही शोध संस्थान की स्थापना कर मानवमात्र के लिए सुखी हो सकने वाली दिव्य औषधियों के निर्माण का, उनके द्वारा चिकित्सा का प्रशिक्षण तंत्र बेयर फुटेड डॉक्टर्स (नंगे पैर चिकित्सकों) द्वारा गाँव-गाँव, घर-घर तक विस्तार का क्रम यहाँ विकसित किया जाना है। इस संबंध में प्रारंभिक चर्चाएँ पूरी कर विस्तृत प्रारूप बना लिया गया है। 2. अध्यात्म के प्रगतिशील स्वरूप का लोकशिक्षण हेतु नियोजन परमपूज्य गुरुदेव का अभिनव प्रयोग रहा हैं ऐसे धर्म-संस्कृति के कुमारजीव, महेन्द्र, संघमित्रा स्तर के परिव्राजक शिक्षित कर विभिन्न भाषाओं, धर्म-संप्रदायों वाले क्षेत्रों में भेजकर भारतीय धर्म का विज्ञान सम्मत विस्तार इस नए केन्द्र से किया जाना हैं ऐसे पाँच सौ से अधिक प्रशिक्षित परिव्राजक प्रतिवर्ष यहाँ से क्षेत्रों में भेजे जा सकें, ऐसी योजना बनी है। धर्म-संस्कृति के एक सर्वांगीण विश्वविद्यालय के रूप में इस विधा को विकसित किया जा रहा है। 3. ग्राम प्रधान राष्ट्र का अधिक विकास ग्रामोत्थान व गौवंश के विकास की धुरी पर होगा, तभी यह राष्ट्र सारे विश्व का नेतृत्व कर सकने की स्थिति में आएगा, यह निश्चित है। इसी आधार पर गौकेन्द्रित अर्थव्यवस्था-कृषि तकनीकी एवं मानव संसाधनों का विकास दृष्टि में रख यहाँ स्वावलम्बन व ग्रामीण विकास की विधा का एक पूरा वैशिष्ट्य भरा केन्द्र विकसित हो रहा है। सारे भारतवर्ष के विभिन्न जिलों में गौशालाओं की स्थापना, वनौषधियों के स्मृति उपवनों के निर्माण तथा ग्रामीण रोजगार प्रधान स्वावलम्बन केन्द्रों का मार्गदर्शन यहाँ से होगा। शाँतिकुँज का समग्र प्रशिक्षण इसी विधा से जुड़कर कार्य करेगा। प्रारम्भिक स्तर पर एक गौशाला का निर्माण यहाँ हो चुका है, जिसमें 24 गौएँ आ चुकी है। 4. अंतिम विधा है सार्थक -विद्या से समन्वित शिक्षा के विस्तार हेतु एक प्रशिक्षण केन्द्र जो डीम्ड यूनिवर्सिटी के रूप विकसित होगा। अभी जो शिक्षापद्धति है, उसके चलते बेरोजगारों की फौज तैयार हो रही ही, दूसरी ओर निरक्षर बढ़ते जा रहे है। शाँतिकुँज उन योजनाओं को इस विधा के माध्यम से क्रियान्वित करेगा, जिससे भारत ही नहीं सारे विश्व की विभिन्न भाषाओं में प्रशिक्षण आरंभ हो, सुसंस्कारिता प्रधान एक राष्ट्र, एक संस्कृति, एक विराट कुटुम्ब के रूप में विकसित हो रही मानवी सभ्यता को पुनर्जीवन मिल सके, यह प्रशिक्षण-शिक्षण विज्ञान की सारी विधाओं को देवसंस्कृति के आधारों पर पुनः प्रतिष्ठित करेगा।

प्राकृतिक सुरम्य वातावरण में निर्मित हो रहे इस परिसर का नवयुग का इक्कीसवीं सदी के सतयुग का एक छोटा संस्करण कहा जाए तो कोई अत्युक्ति नहीं है। प्रायः एक अरब रुपये की लागत से होने जा रहे इस निर्माण में जहाँ प्रतिभाओं की, विशेषज्ञों की आवश्यकता है।, वहाँ उन श्रीमन्तों उदारमनाओं की भी जिनके बलबूते ही इतना बड़ा असंभव समझा जाने वाली भागीरथी कार्य हाथ में लिया गया है। परमपूज्य गुरुदेव की तरह ही हमारी आशाओं को भी जीवित रखने वाले भामाशाह, जमनालाल बजाज व अंशदान देने वाली गिलहरियाँ अभी भी कही-न-कही विश्वभर में- भारतभूमि में मौजूद है, यह विश्वास प्रतिदिन दृढ़ होता चला जा रहा है।

*समाप्त*


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