मानवता के सच्चे पुजारी (Kahani)

January 1999

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वैशाली महानगरी आज दुल्हन की भाँति सजी थी। सर्वत्र हर्ष-उल्लास का वातावरण था। राज्य महोत्सव मनाने के लिए यह सब तैयारियाँ हुई थी। बाल-वृद्ध नर-नारी सभी महोत्सव में भाग लेने के लिए राजमहल के समीप प्रांगण में एकत्रित हुए थे। राज्य नर्तकी का नृत्य आरम्भ हुआ। नृत्य की मस्ती में धीरे-धीरे राजा और प्रजा सभी डूबते जा रहे थे।

अचानक महल में लगे विशाल घण्टे की आवाज ने सबका ध्यान तोड़ा। पर यह क्या? घण्टा तो निरंतर बजता ही जा रहा था। राज-परम्परा के अनुसार घण्टे का निरन्तर बजना आने वाले संकट का परिचायक था, जिसका अर्थ होता था कि शत्रु ने राज्य पर आक्रमण कर दिया है। नृत्य अपने-आप थम गया और देखते ही देखते युद्ध की रणभेरी वातावरण में गूँजने लगी। पर शत्रु की विशाल सेना और पूर्व तैयारी न होने से वैशाली के सैनिकों के पैर उखड़ने लगे। राजा को बन्दी बना लिया गया। शत्रु सेना वैशाली नगर पर कहर ढाती निरंतर आगे बढ़ रही थी। बाल -वृद्ध, नर-नारियों की हत्या एवं लूट पाट से वातावरण चीत्कार कर उठा।

नगर नायक महायायन कभी अपनी शूरता के लिए विख्यात था। पर आज तो वह भी अपने को असमर्थ पर रहा था। वृद्धावस्था के कारण उसका अपना शरीर भी साथ नहीं दे रहा था। तो क्या हमारी आँखों के सामने ही शत्रु को सामने देखते ही वह बोल पड़ा-इन मासूमों पर अत्याचार बन्द करो।”

शत्रु सेनानायक को न जाने क्या सूझी, उसने महायायन के समक्ष एक विचित्र शर्त रखी। तुम जितनी देर सामने बह रही नदी में डूबे रहोगे, हमारी सेना लूट-पाट एवं हत्या बन्द रखेगी। शर्त स्वीकार कर अविलम्ब वृद्ध महायायन नदी में कूद पड़ा। वचनबद्ध शत्रु सेनानायक ने सेना को तब तक के लिए लूटपाट एवं संहार बन्द रखने को कहा जब तक कि वृद्ध का सिर पानी के बाहर न दिखायी पड़े। विशाल सेना, सेनाध्यक्ष के नेतृत्व में महायायन के बाहर निकलने की प्रतीक्षा बेचैनी से कर रही थी। प्रातः से दोपहर हुई और फिर शाम होने को आई, पर वृद्ध महायायन पानी में डूबा और डूबा ही रहा। सेनानायक को आश्चर्य हुआ। उसने गोताखोरों को वृद्ध का पता लगाने को कहा। लम्बी खोज-बीन के बाद नदी की गहराई में महायान का मृत शरीर चट्टान से लिपटा पाया गया। उसने दोनों हाथों से चट्टान को मजबूती से पकड़े ही दम तोड़ दिया था। इस अनुपम त्याग एवं बलिदान को देखकर शत्रु सेनानायक का हृदय भी द्रवित हो उठा। मानवता के इस पुजारी के समक्ष अपनी हार स्वीकारते हुए उसने सैनिकों को लूट की वस्तुओं को वापस देने तथा अपने राज्य की ओर वापस लौटने का आदेश दे दिया।


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