“यह समय पराक्रम और पौरुष का है, शौर्य और साहस का है। इस विषम वेला में युग के अर्जुनों के हाथों से गाण्डीव क्यों छूटे जा रहे है, उनके मुख क्यों सूख रहे है। पसीने क्यों छूट रहे है? सिद्धान्तवाद क्या कथा-गाथा जैसा कोई विनोद-मनोरंजन है, जिसकी यथार्थता परखी जाने का कभी कोई अवसर ही न आए? कृष्ण झुँझला पड़े थे। कथनी और करनी के मध्य इतना असाधारण व्यतिरेक उन्हें सहन नहीं हुआ और वे भौंहें तरेर कर बोले-अभागे! इस विषम वेला में यह कृपणता तेरे मन-मस्तिष्क पर किस प्रकार चढ़ बैठी? अंतरिक्ष से आज का महाकाल युग के गाण्डीवधारियों से लगभग उसी भाषा में प्रश्न पूछता और उत्तर माँगता है। “
-परमपूज्य गुरुदेव (अप्रैल 1982 अखण्ड ज्योति सम्पादकीय)