उसके दुर्बल,जर्जर बूढ़े हाथों से पानी खींचने की रस्सी फिसल और पानी से भरी बाल्टी धम्म से कुएँ में जा पड़ी। उसने निर्बलता की एक गर्म आह भरी-या अल्लाह! आज यह मनहूस दिन भी देखना पड़ रहा है, जब प्यास से तालू सूख रहा है। इस लम्बी कैद और सुनसान जेलखाने में, इस बुढ़ापे और कमजोरी में, इस तपती दोपहरी में मुझे पानी तक पिलाने वाला कोई नहीं है। जिस हिन्दुस्तान के शहंशाह के आराम तथा खिदमत के लिए हाथ जोड़े गुलामों और बन्दियों की भीड़-की-भीड़ रहती थी, वही आज अकेला निरुपाय खुद कैदखाने में प्यास बुझाने के लिए पानी खींचने जैसे मामूली काम को भी नहीं कर पा रहा है। यह कैसी विवशता है।
थका हुआ लाचार प्यासा, वह एक कोने में जाकर बैठ गया। उसकी काया अब पीले पत्ते की तरह जीर्ण-शीर्ण हो चुकी थी। अपनी इस शारीरिक कमजोरी, निराशा और मानसिक परेशानी से वह बेहतर घबराया हुआ था। उसके अन्दर कहीं कुछ शीशे की तरह टूट-दरक रहा था।
रह-रहकर उसे अपने बीते दिन याद आने लगे। वह पूरे हिन्दुस्तान में दक्षिण तक फैली हुई हुकूमत का एकछत्र शहंशाह था। उसने बहुत दिनों तक एक बड़ी सल्तनत पर मनचाही हुकूमत की थी। वह बड़ा शौकीन तबियत, कलाप्रेमी और एक महान वास्तुशिल्पी था। उसने अपने युग की बेहतरीन इमारतों के रूप में अद्वितीय वास्तुशिल्प की अविस्मरणीय कलाकृतियाँ हिन्दुस्तान को दी थी। दुनिया भर में जाना जाने वाला आगरा का ताजमहल और दिल्ली का लाल किला उसके उत्कृष्ट कला- प्रेम के ही निशान कहे जाते है। इतनी बड़ी सल्तनत का मालिक, ऐसी आलीशान इमारतों का निर्माता आज एक बद्तर कैदखाने में पानी पीने का असह्य कष्ट पा रहा था। सैकड़ों गुलामों एवं बंदियों से हमेशा घिरा रहने वाला बादशाहे-हिन्द शाहजहाँ आज बिना किसी सहायक के अकेला था। जीवन की संध्या में निराशा और आत्महीनता की भावनाओं ने आज उसे और निर्बल बना दिया था। वह नकारात्मक चिन्तन से व्यग्र था। अपने पुत्रौ को धिक्कार रहा था। उनकी कृतघ्नता से संतप्त हो घोर पश्चाताप कर रहा था। आज की परिस्थितियों को अपने पुराने गुनाहों की सजा मानकर अशान्त था। इस पश्चाताप और अशान्ति के कारण क्लान्त मन हो बिलकुल किंकर्तव्यविमूढ़-सा निढाल पड़ा था।
हीनता के बोध के साथ-साथ इनसान के मन में तरह-तरह के काल्पनिक भय की भावनाएं प्रवेश कर जाती है। जिस वयस्क सन्तान का बर्ताव अपने वृद्ध माता-पिता के साथ अच्छा नहीं होता, जिन्हें बात−बात में अपमानित और तिरस्कृत किया जाता हैं, जिनका वातावरण संवेदनापूर्ण नहीं होता उन्हें चारों ओर से भय-निराशा और आशंकाएँ आ घरेती है। जिनके बच्चे क्रोधी अनुशासनहीन, चंचलचित एवं कठोर स्वभाव के होते है, वे भय और निराशा से सदा पीड़ित रहते है भय का कीड़ा जहाँ एक बार मन के भीतर घुसा फिर वह रक्तबीज की तरह अपना वंश बढ़ाता चला जाता है।
बेचारे शाहजहाँ के जीवन के अंतिम दिन एक भयभीत निःसहाय कैदी की तरह कट रहे थे। इनसान अपने बुरे कर्मों की सजा इसी जनम में पा लेता है। अपने राज्य की रखा के लिए तथा सत्त साम्राज्य विस्तार की महत्त्वाकाँक्षा के कारण वह विरोधियों को बुरी तरह दबाता आया था। आज उसी के पुत्र औरंगजेब ने उसे बंदीगृह में डालकर हिन्दुस्तान की हुकूमत अपने हाथों में ले ली थी। उसे मारने के लिए जेलखाने में कैद किया गया था। पुत्र के विश्वासघात एवं दुर्व्यवहार से वह बेबस, क्रुद्ध और नितान्त व्यथित था।
आज उसके पास न वे शाही ऐशोआराम थे, न सैकड़ों -हजारों दास-दासियाँ। उसे सर्व अनपेक्षित तथा अकल्पनीय जिन्दगी व्यतीत करनी पड़ रही थी। वह एकदम अकेला था। उसके इर्द -गिर्द न तो तारीफ करने वाले-मुँहलगे अफसरों का जमघट था और न कोई उसका खिदमतगार ही पास में था। अब वह नमाज अदा करते हुए खुदा की इबादत करते हुए जिस किसी तरह अपने मन को सान्त्वना देने में व्यस्त रहता था। फिर भी न जाने क्या उसे किसी भी तरह से मनः शान्ति नहीं मिल पा रही थी।
वे गर्मियों के दिन थे। दोपहर का तवे जैसा तपता गर्म मौसम। शाहजहाँ के पास रखा हुआ घड़े का पानी समाप्त हो चुका था। उसे समय बहुत प्यास लगी थी, किन्तु उस समय उसके पास पानी खींचकर कुएँ से निकालने वाला कोई सहायक नहीं था। वह बिलकुल अकेला था, बिलकुल ही अकेला।
अन्ततः विवश हो अपने कमजोर बूढ़े शरीर की परवाह किए बिना वह खुद कैदखाने के कुएँ में डालकर पानी खींचने लगा। पानी से भरकर बाल्टी भारी हो गयी। जिन नाजुक हाथों ने हमेशा फूल ही छुए हों, कलम ही पकड़ी हो, राजदण्ड ही सम्हाला हो, अपराधियों की ओर उँगली दिखाकर सजाएँ ही दी हों, शहंशाह के उन नाजुक हाथों में कुएँ से निकलते हुए पानी की भरी बाल्टी कैसे सम्हल सकती थी।
आखिरकार बूढ़े शाहजहाँ के हाथों से रस्सी फिसल गयी। भार के कारण नियन्त्रण न रहा, बाल्टी गिरी साथ ही उसके सिर में चक्कर भी आ गया। थककर हताश हो वे हारे हुए सेनापति की तरह बेबस होकर वहीं बैठ गए। आँखों के आगे अँधेरा के आगे अँधेरा-सा छा गया।
यूँ तो हमेशा ही शहंशाह नमाज पढ़ता था और खुदा को याद करता था। लेकिन अब तक तो यह मात्र औपचारिक बात भर थी। पर आज इन बेबसी के क्षणों में निराशा शाहजहाँ की आत्मा जाग्रत हो उठी। उसके मन में एक ज्योति-सी जली। वह उसकी ईश्वर के प्रति सच्ची आस्था की मशाल थी। लगा जैसे दोनों जहाँ के मालिक स्वयं उसकी सहायता के लिए आ गए हो। उसके मुँह से ये शब्द निकले-ऐ परवरदिगार! खुदा करीम! आज तूने देखा मैं इस जेलखाने के कुएँ से पानी खींचने जैसे मामूली काम के लायक भी न रहा। नन्हें बच्चे की तरह अपनी प्यास तक नहीं बुझा पा रहा हूँ। मैं यह महसूस करता हूँ कि दुनिया में शायद ही कोई आदमी मुझ जैसा अभागा, कमजोर, अशक्त और निःसहाय होगा। मैं कितना नादान बुद्धिहीन अल्पज्ञ हूँ -यह मैं आज अनुभव कर रहा हूँ। दरअसल मैं तो किसी भी लायक नहीं हूँ। न ही बीती हुई शाही जिन्दगी में किसी योग्य रहा था।
फिर भी ऐ मेरे मालिक! दुनिया के सिरजनहार! नालायक आदमी को आपने इतने लम्बे अर्से तक हिन्दुस्तान जैसे बड़े मुल्क का बादशाह बनाए रखा-मैं सालों साल तक सफलतापूर्वक हुकूमत चलाता रहा इन सब पर कृपा-दया के लिए तुझे लाख -लाख शुक्रिया। आज में गिरी हुई हालात में हूँ, ऐ दुनिया के पिता! तू हमें कुछ भी दें, सुख-दुख हर्ष-विवाद आनन्द-तकलीफ, किसी तरह का इम्तहान ले, जो चाहे फैसला दे, मैं हर सूरतेहाल में तेरा एहसानमंद हूँ। जिन्दगी के हर कदम पर मुझे तेरा ही सहारा है। आज तू मेरे मन में रोशनी और आत्मा में शक्ति दे रहा है। तेरी यह दिव्य-शक्ति मुझमें जाग उठी है। मैं सब कुछ सहूँगा। तुम्हारी दिव्य प्रेरक शक्ति मुझे सम्बल प्रदान कर रही है। अब मुझे अकेलेपन का एहसास भी नहीं हो रहा है, क्योंकि तू तो मेरे साथ ही है।
खुदा की इबादत करते -करते बूढ़े शाहजहाँ को अपने अन्दर से एक ताकत मिली। यह जिस्मानी नहीं रुहानी ताकत थी। उसका तनाव कम हो गया। उसके अपने ही अन्तरमन में साहस, हिम्मत और सहनशीलता का सूर्य चमक उठा। उसने बड़े ही आत्मविश्वास कहा-ऐ खुदा! सब कुछ खोकर भी मेरे पास तेरी रहमत का दिया हुआ बेशकीमती खजाना है। तेरा नूर मेरी रूह में हैं यह ताकत अब सदा मेरे ही पास रहने वाली है। तेरी सहायता से तो मैं अब बड़ी से-बड़ी विपत्ति धैयपूर्वक सहन कर सकता हूँ।
ऐ अल्लाह! अब तू मेरे साथ है। मैं हमेशा-हमेशा के लिए नकारात्मक चिन्तन छोड़ता हूँ। तुम्हारा दिया हुआ आशावादी दृष्टिकोण अपनाता हूँ। तू सबका दाता है। मेरा पिता है। मुझे प्यार करता है। अब मैं अपने जीवन की सब स्थितियों एवं लोगों के दिखावटी स्वार्थ को परख चुका हूँ। अब मैं सिर्फ उन यादों को ही अपने मन में रखूँगा, जिनमें मुझे खुशी मिलती हैं तेरे दिए हुए आत्मिक आनन्द को ज्यादा-से ज्यादा अपनाने के लिए कोशिशमन्द रहूँगा। मैं जान गया हूँ कि जीवन में कुछ परेशानियाँ तो इम्तहान लेने के लिए आती ही है। उनमें बचा नहीं जा सकता। उन कठोर समस्याओं से धैर्यपूर्वक जूझना ही होगा। उन्हें हँसते−हँसते सहन करना ही होगा। अब मैं अपनी उन परेशानियों को वीरता से सहन करने को तैयार हूँ। मुझे अपने कर्म में फिर नए सिरे, नए साहस और धैर्य से लग जाना चाहिए।
वृद्ध शहंशाह ने एक बार फिर से नए उत्साह से बाल्टी खींचनी शुरू कर दी। सर्वेश्वर की असीम प्रेरणा शक्ति से परम आसित् खुदाबन्द के नेक बन्दे उस बादशाह का चेहरा चमक रहा था। जहाँ के मालिक के प्रति सकारात्मक भावना, उसके सम्बल के अटूट विश्वास से स्वतः स्फूर्त नव ऊर्जा के कारण शाहजहाँ का ललाट प्रदीप्त हो उठा था।