मृत्यु अंत नहीं, एक अविरल प्रवाह

January 1999

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विज्ञान की एक नयी शाख विकसित हो रही है, जो मरणासन्न व्यक्तियों का अध्ययन करती है। क्या इन व्यक्तियों को मृत्यु का भय होता है? निकटतर आ रही मृत्यु के बारे में बोध होने पर इन व्यक्तियों को कैसा महसूस होता है? मृत्यु सम्बन्धी ऐसे तथ्यों का अध्ययन करने वाले इस वान को ‘थेनाटालाँजी’ कहते है।

पश्चिमी जर्मनी के एक डॉक्टर लोथर विट्जल ने मरणासन्न मरीजों से उनकी मृत्यु के 24 घण्टे पूर्व बातचीत की। उन्होंने पाया कि जैसे-जैसे मृत्यु आती है, मरणासन्न व्यक्तियों में उसका भय मिटता जाता हैं बीमारी की वृद्धि के साथ-साथ ऐसे व्यक्तियों की धार्मिक आस्था दृढ़ होती चली जाती है और चिन्ताएँ कम होती जाती है।

मेसाचुसेट्स मेडिकल सोसाइटी’ के बोस्टन निवासी डॉ. मूर रसेल फ्लेचर ने 35 वर्षों तक गहन अन्वेषण करने के पश्चात् तथ्यों को ‘ट्रिटाइज ऑन सस्पेण्डेड-एनीमेशन नामक ग्रन्थ में लिपिबद्ध किया है, जिसमें मरने के उपरान्त फिरे जी उठे लोगों के अनुभव है। डॉ. फ्लेचर ने अपनी इसी पुस्तक में गार्थाइर शहर निवासी श्रीमती जॉन टी. डी. ब्लैक के बयान के अनुसार लिखा है कि वे तीन दिन तक मृतावस्था में पड़ी रही थी। डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया, किन्तु घरवालों ने किसी कारणवश नहीं दफनाया। तीन दिन बाद वे जी उठीं। पूछने पर उन्होंने बताया कि वे ऐसे लोक में पहुँच गयीं, जिसे परीलोक कहा जा सके। वहाँ बहुत-सी आत्माएँ प्रसन्नचित्त रह आसमान में बिना परों के ही उड़ती मालूम होती थी।

डॉ. रेमण्डमूडी ने बड़े प्रयत्नपूर्वक किये गये अपने शोध का प्रकाशन ‘लाइफ आफ्टर लाइफ’ नामक ग्रन्थ में किया है, जिसका विषय है-पुनर्जीवन व मृत्यु के मध्यांतर काल का अनुभव। इस ग्रन्थ में 150 घटनाओं के बीच अनेक घटनाएँ ऐसी है, जिसमें सम्बद्ध व्यक्ति ने बताया कि उनके मस्तिष्क में सनसनाहट-सी लगी और मक्खियों के भिनभिनाने जैसी गुंजन सुनाई पड़ी। इसके बाद सब कुछ ठण्डा लगा और सुध-बुध समाप्त हो गयी। दूसरे व्यक्ति का अनुभव था कि मानों उसे किसी अन्धकारपूर्ण खड्डे में गिरा दिया गया हो और वह नीचे की दिशा में तेजी से डूबता जा रहा हो।

सत्य की शोध में चेतना के सिद्धान्त का कम महत्वपूर्ण स्थान नहीं है-इस निष्कर्ष पर पहुँचे सर ओलीवरलॉज, विलियमक्रूक्स जैसे वैज्ञानिकों ने इस तथ्य को मुक्त कण्ठ से स्वीकारा है। उनका मत है कि चेतना पदार्थों के संघात का प्रतिफल मात्र नहीं, अपितु उससे भिन्न स्वतन्त्र सत्तावान है, जो शरीर के विनष्ट हो जाने पर भी विद्यमान रहती है। इस तथ्य के प्रमाण में उन्होंने कई मृतात्माओं का सहयोगपरक आह्वान किया था ओर सहयोगपरक आह्वान किया था और सहयोग प्रदान किया।

‘फ्राण्टियर के लेखक एडवर्ड सी रेण्डेल ने ऐसी ही एक दिवंगत आत्मा के अनुभवों को निम्न शब्दों में व्यक्त किया है- मरने के बाद अपने को चारों ओर से स्वजन-सम्बन्धियों से घिरा हुआ पाया। पहले-पहल तो अपने आप को ऊपर उठते हुए देखा, फिर धीरे-धीरे नीचे आ गया। एक शरीर बिस्तर पर पड़ा था तो दूसरा मैं खड़ा था। शारीरिक वेदनाएँ समाप्त हो गयी थी। जो आत्माएँ मुझे लेने आयी थीं उन्होंने मुझसे चलने को कहा। उन्होंने मुझे आश्वस्त किया कि मैं मर चुका हूँ।

मूर्धन्य मनोविज्ञानी कार्लजुँग ने अपने निजी मरणोत्तर जीवन का वृत्तांत स्वलिखित ‘मैमोरीज ड्रीम्स रिफ्लेक्सन ‘ में लिखा है। सन् 1944 में उन्हें दिल का दौरा पड़ा। डॉक्टर उन्हें मरणासन्न स्थिति में अनुभव कर रहे थे और आक्सीजन के सहारे बचाने का प्रयत्न कर रहे थे। उसी समय जुँग ने अनुभव किया कि वे हजारों मील ऊपर उड़ गये और अधर में लटके हुए है। इतने हल्के है कि किसी भी दिशा में इच्छानुसार जा सकते है। ऊपर से ही उन्होंने जेरूसलम नगर का दृश्य तथा और भी बहुत-सी चीजें देखी। उन्हें लगा वे अब पहले की अपेक्षा बहुत बदल गये है। बहुत देर की स्थिति में रहने के बाद उन्हें अपने पुराने शरीर में रहने के बाद उन्हें अपने पुराने शरीर में पुनः लौटना पड़ा। जुँग ने लिखा है, मरणोत्तर जीवन की इस अलौकिक अनुभूति ने मेरे समस्त संशय समाप्त कर दिये और यह समझा दिया कि मरने के बाद क्या होता है?

परामनोवैज्ञानिक डॉ. किंग हृरल ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘दी इम्माँर्टल सोल’ में मृत्यु से वापस लौटे व्यक्तियों की अनेकों घटनाओं को उल्लिखित किया है।

ओन्टोरियों (कनाडा) में कोस्टल क्षेत्र के मानव सम्पदा निर्देशक हर्वग्रिफिन को सन् 1974 में तीन बार हृदय के दौरे पड़े। डॉक्टरों द्वारा कई बार मृत घोषित किये जाने पर भी कुछ मिनटों बाद पुनर्जीवित हो उठते थे। ग्रिफिन ने मरणोत्तर जीवन की अनुभूतियों का विश्लेषण करते हुए बताया है कि “प्रत्येक मृत्यु के उपरान्त के अनुभवों में मैं अपने को तेज प्रकाश से घिरा पाया। वह प्रकाश मेरी ओर बढ़ रहा था। मेरे और प्रकाश के बीच एक काली छाया थी, जो अपने को समुद्र तट पर खड़ा एक भ्रूण सा महसूस कर रहा था, जिस पर सूर्य की तेज रोशनी के समान प्रकाश था। वह प्रकाश मेरी ओर बढ़ ही रहा था कि अचानक एक जाना-पहचाना चेहरा प्रकट हुआ जो स्लेटी रंग का सूट पहने हुये था। उसने निडर भाव से कहा-आ जाओ, सब ठीक है। अचानक मेरे सीने पर तेज आघात हुआ। आवाज मेरे सीने पर तेज आघात हुआ। आवाज भी सुनाई दी।’ क्या मैं बिजली के झटके दूँ। ‘दूसरी ओर से आवाज आयी-नहीं अभी नहीं! इसकी आयु अभी पूरी नहीं हुई। इसे जिन्दा रहना चाहिए।” इसके बाद मैं अस्पताल में पड़े अपने शरीर में वापस पहुँच गया।”

द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अगस्त सन् 1994 को एक फौजी अफसर की घटना मित्र राज्य गजेटियर में प्रकाशित है। ऑफिसर सकाइट कार द्वारा जा रहा था, तभी जर्मन एण्टी टैंक ने उस पर सीधा प्रहार किया। उसकी कार में भी विस्फोट हुआ, मैं 20 फुट दूर जा गिरा। ऐसा लगा, मैं। दो भागों में विभक्त हो गया मेरा एक शरीर नीचे जमीन में पड़ा तड़प रहा है, उसके कपड़ों में आग लगी है, दूसरा ऊपर आकाश में हवा की तरह तैर रहा है। वहाँ से सड़क पार की वस्तु, युद्ध का दृश्य, झाड़ियाँ, जलती कार -मैं सब कुछ देख रहा था। तभी अन्तः प्रेरणा उठी कि तड़फड़ाने से कुछ लाभ नहीं, शरीर को मिट्टी से रगड़ दो ताकि आग बुझ जाये। शरीर ने ऐसा ही किया। वह लुढ़क कर बगल की नम खाड़ी में जा गिरा, आग बुझ गयी। फिर मैं वापस उसी शरीर में आ गया। अब मुझे शरीर की पीड़ा का पुनः भान होने लगा जबकि थोड़ी देर पूर्व यही दृश्य मैं मात्र दर्शक बना देख रहा था।

मोनेरो रिसर्च इन्स्टीट्यूट वर्जीनिया के राबर्ट ए. मोनोरे ने मरणोत्तर जीवन पर आयोजित एक सम्मेलन में लगभग एक हजार व्यक्तियों के मरणोपरान्त अनुभवों से सम्प्रेषण अवगत कराया। उन्होंने स्वयं दूसरी दुनिया में प्रवेश करने तथा एक अत्यन्त विकसित सभ्यता से संपर्क साधने, उससे वार्तालाप करने की विस्मयकारी घटना को प्रस्तुत किया। अपने रोमांचकारी अनुभवों को उनने पुस्तक, ‘जर्नीज आउट ऑफ दी बाड़ी ‘ में भी प्रतिपादित किया है, जिसके अंतर्गत उनने बाल्यकाल से ही ऐसे परोक्ष अनुभवों से सम्बन्धित घटनाओं का जिक्र किया है।

मनोविज्ञान के व्याख्याता डॉ. उन्ड्रियाँज केरियोस ओसिस का उदाहरण प्रस्तुत किया, जिनने लगभग एक हजार शरीर से परे के अनुभवों को प्रमाणित किया है। इन सबों में यह अनुभव व्यक्त किया गया-मृत्यु के बाद वे शरीर के बाहर निकले, ऊपर को उड़ें, मृतक सम्बन्धियों का आगमन हुआ आदि। इस बात की पुष्टि स्विट्जरलैंड के एक शिल्पकार -हरीफनजैंकोविच की इस उद्घोषणा से होती है कि जो दुर्घटनाग्रस्त होने से मृत्यु के शिकार हुए वे हाँस्पीटल में पुनः जीवित हो उठे। कुछेक लोगों द्वारा श्वेत दिव्य प्रकाश तथा सम्बन्धियों द्वारा आशीर्वचन का अनुभव व्यक्त किया पाया गया है। कुछ ने तो यह भी कहा कि मरणोपरान्त हमने शान्ति व प्रसन्नता का किया, परन्तु शरीर में प्रविष्ट होते ही पुनः कष्ट -सा अनुभव होने लगा।

अमेरिका के जॉन अलेक्जेन्डर ने भी मृत्यु उपरान्त जीवन बात को सत्य बतलाया हैं उनने यह भी कहा कि अपूर्ण इच्छाओं के कारण व्यक्ति मृत्यु के बाद भी कष्ट का अनुभव करता है तथा उसे अन्धकार के वातावरण में रहना पड़ता है। इसके विपरीत संतोषी स्वभाव के सज्जन व्यक्ति चिर आनन्द की अनुभूति लेते रहते है। जॉन अलेक्जेन्डर ने अपनी पुस्तक ‘घोस्ट ‘ में अबाहिम लिंकन के भूत शरीर को अमेरिका के हृइट में चलने, दरवाजा खटखटाने तथा तत्कालीन राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत होने के घटना को संकलित किया है। राष्ट्रपति रुजवेल्ट प्रायः लिंकन के दुःखी चेहरे को देखने तथा सभी कमरों में टहलने का अनुभव व्यक्त करते थे। ऐसा दृश्य यूनाइटेड स्टेट्स के जन आन्दोलन के समय तक देखा जाता रहा।

नीदरलैण्ड की रानी विथहेलमिनिया एक बार ‘रोज यम’ में ठहरी थी। रात को अचानक दरवाजा खटखटाने की आवाज हुई। उन्होंने दरवाजा खोला, परन्तु लिंकन को प्रत्यक्ष रूप में खड़े देखकर भयाक्रान्त हो गई। विंस्टन चर्चिल भी लिंकन के कमरे में जब भी सोते तो रात में लिंकन को भी वहाँ उपस्थित पाते थे।

डॉ. मोनेरो ने इस रहस्यात्मक तथ्य के ऊपर विशेष अध्ययन करने हेतु एक सिगनल जेनरेटर’ का विकास किया है, जिसके द्वारा शरीर से आत्मा के पृथक् होते समय शरीर में होने वाली धड़कनों की ध्वनि की रिकार्ड किया जा सकता है तथा इस आधार पर विशेष अध्ययन आरम्भ किया जा सकता है। अभी इस दिशा में अन्वेषण चल रहे है।

पुनर्जन्म प्रकरण में अगले जन्मों में पिछले जन्म से मिलती-जुलती प्रकृति एवं परिस्थिति प्राप्त होती है, ऐसा भी देखा गया है। कई बार तो कुछ व्यक्ति ऐसे होते है जिन्हें पूर्ववर्ती लोगों की ‘ट्रू कॉपी’ कहा जा सके। ऐसी परिस्थितियों को भी पुनर्जन्म के रूप में स्मरण किया जाता है।

सुकरात को जहर दिये जाने के समय उनके सभी सम्बन्धी वहाँ आँसू बहा रहे थे। बिना किसी कुप्रभाव के उनके मुख-मण्डल पर प्रसन्नता, प्रफुल्लता और भी अधिक परिलक्षित हो रही थी। ऐसा लगता था कि किसी प्रियजन से मिलने की उमंगें उठ रही हो। पास में खड़े शिष्यों ने जब इसका कारण पूछा तो उन्होंने कहा-मैं मृत्यु से साक्षात्कार करना चाहता हूँ और यह जानना चाहता हूँ कि मृत्यु के बाद हमारा अस्तित्व रहता है या नहीं। मृत्यु जीवन का अंत है अथवा एक सामान्य जीवनक्रम।” सुकरात को निर्धारित समय पर विष देते समय सभी दर्शकों के नेत्र सजल हो उठे। उन्होंने उपस्थित जनसमूह को सम्बोधित करते हुए कहा-मेरे शरीर के सभी अवयव गतिहीन हो चुके है, लेकिन मेरा अस्तित्व पूर्ववत् ही है। जीवन की वास्तविकता पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने बताया कि मृत्यु जीवन का अन्त नहीं, एक अविरल प्रवाह है। जीवन की सत्ता मरणोपरान्त भी बनी रहती है। “


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