अपनों से अपनी बात- - एक दिव्य महापुरश्चरण के समापन की पूर्व वेला एक अभिनव उपक्रम

January 1999

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सूक्ष्मजगत के परिशोधन एवं भविष्य को उज्ज्वल बनाने हेतु एक दिव्य उपासनाक्रम के रूप में, मनुष्य में देवत्व उपासनाक्रम के रूप में, मनुष्य में देवत्व का उदय और धरती पर स्वर्ग का अवतरण संभव बनाने के लिए सामूहिक महासाधना के नियोजन के रूप में एक दिव्य महापुरश्चरण सन्निकट का आश्विन नवरात्र से शाँतिकुँज में आरंभ किया गया है। नाम है ‘युगसंधि महापुरश्चरण ‘। शाँतिकुँज हरिद्वार से संचालित यह पुण्य आयोजन सारे भारत व विश्व में सन् 2000 तक चलता रहेगा, इक्कीसवीं सदी के आरंभ के साथ ही उसकी पूर्णाहुति होगी, जिसे साधना के अनुरूप ही इतना बड़ा कहा जा सकेगा कि उसी तुलना अब तक के किसी भी विशालतम समागत से भी न की जा सकें ‘ परमपूज्य गुरुदेव द्वारा ये पंक्तियाँ आज से 10 वर्ष 4 माह पूर्व अक्टूबर, 1988 की अखण्ड ज्योति में लिखी गयी थी। युगसंधि की विषम वेला में उनने इस साधना को प्रत्येक के लिए अनिवार्य बताते हुए उसके भागीदारों की संख्या समापन होते-होते प्रायः चौबीस करोड़ से भी अधिक होने की बात कही थी।

अगला अंक ‘साधना वर्ष विशेषांक ‘ के रूप में

दस वर्ष बीतकर ग्यारहवाँ वर्ष लग गया। अब मुश्किल से बारह माह का समय बाकी है, जब हम एक विषमताओं से भरे वर्ष का समापन कर एक शताब्दी ही नहीं, एक सहस्राब्दी को पार कर नयी सहस्राब्दी में प्रवेश कर जाएँगे। निश्चित ही प्रस्तुत अवधि भारी उलटफेरों, अप्रत्याशित परिवर्तनों व उथल-पुथल से भरी होगी। इसी कारण इस वर्ष की वसंत पंचमी सन् 1999 (22 जनवरी ) से बसंत पंचमी सन् 2000 (10 फरवरी तक) की अवधि को प्रखर साधना वर्ष घोषित किया गया है। इस अवधि में राष्ट्र ही नहीं, विश्व के कोने-कोने में, चप्पे-चप्पे में गायत्री के अखण्ड जप के रूप में उज्ज्वल भविष्य की प्रार्थना के रूप में विराट साधना-पुरुषार्थ सम्पन्न होगा एवं इस पूरे साधना -पराक्रम का समापन एक विराट महापूर्णाहुति के माध्यम से संपन्न होगा जिनने प्रथम महापूर्णाहुति जो आराध्य गुरुसत्ता की जन्मस्थली आँवलखेड़ा में नवम्बर 1995 में सम्पन्न हुई, देखी है, वे जानते है कि कितनी बड़ी जनशक्ति उस समय एकजुट हुई थी व उनने आगामी पाँच वर्षों में मिशन के प्रकाश को विश्वभर में फैलाने के लिए स्वयं को संकल्पित किया था। तब से मिशन ओर अधिक विस्तृत हुआ हैं व आगामी दो वर्षों में इसमें अनेकानेक वर्गों के समाविष्ट होने की संभावनाएँ है। ऐसी स्थिति में कल्पना की जा सकती है कि इस महापुरश्चरण की महापूर्णाहुति जिसकी उपमा परमपूज्य गुरुदेव ने किसी और समागम से न करते हुए इस भारतभूमि के कोने-कोने से संपन्न किए जाने की बात लिखी है, कितनी विराटतम होगी। इसे निश्चित ही उज्ज्वल भविष्य से भरे सतयुग की स्वागत -अगवानी वाला एक आयोजन सारे विश्वभर में माना जाएगा।

पाठक -परिजन विगत अंक में साधना विशेषांक के माध्यम से जान चुके है कि किस रूप हमें साधना के विभिन्न आयामों को अपने जीवन में, परिवार-परिकर में एवं राष्ट्रीय जीवन में, समाहित कर एक श्रेष्ठ साधक बनना है। राष्ट्र को समर्थ एवं सशक्त बनाने वाली इस युगसाधना के लिए परमपूज्य गुरुदेव -श्री अरविन्द व रमण महर्षि की परम्परा में ही निरन्तर तप करते रहे एवं सभी को साधना में निरत होने की प्रेरणा सत्त देते रहे। चरित्रहीन, अराजकता एवं अधः पतन के अंधकार भरे युग में जी रहे मानव -पुरुषार्थ ही। त्याग-उत्सर्ग बलिदान की परम्पराएँ जब समाप्त हो गयी हों, भोग-विलास ही चारों ओर संव्याप्त हो-साधक परम्परा पुनः जिन्दा कर उनकी संख्या द्रुतगति से बढ़ाना ही आज का युगधर्म हैं राष्ट्रीय चरित्र का विकास इसी धुरी पर होगा एवं यही भारतवासियों के आत्मबल में वृद्धि करेगा। यह आत्मबल का विकास संयम को साधने से व योग को जीवन के हर पक्ष में उतारने पर ही संभव हैं अपने देश को जगद्गुरु इसी तपोबल की निधि के आधार पर कहा जाता था। जब से तप की वह निधि कम होती चली गयी- जड़ें खोखली होती चली गयीं एवं हम गुलामी के शिकार हो अंधकार युग में चले गए।

आज की स्थिति कुछ ऐसी ही है। शहरीकरण तेजी से हुआ, साधनों की होड़ भी बढ़ी है। सीमेन्ट -कंक्रीटीकरण के कारण हरे जंगलों का तेजी से विनाश हुआ है व जीवनशैली पाश्चात्य सभ्यता का अंधानुकरण कर वैसी ही ढलती चली अंधानुकरण कर वैसी ही ढलती चली गयी हैं साधनों को ने की दौड़ने मनुष्य के मन की शाँति छीन ली है एवं प्रायः सभी को तनाव से ग्रसित अशक्त-बीमार देखा जा सकता है। जब तक समग्र योग के रूप में उपासना-भक्तियोग साधना-ज्ञानयोग एवं आराधना-कर्मयोग हमारे जीवन में समाविष्ट नहीं होती, स्थिति और भी विषम ही होती चली जाएगी एवं सुख -चैन दूभर ही रहेगा। परमपूज्य गुरुदेव जो राष्ट्र की स्वतंत्रता के प्रत्यक्ष साक्षी रहे, इस तथ्य को जानते थे कि सदियों से गुलाम रहा यह देश जब अंकुश हटने पर उदारीकरण की हवा लगेगी तो गड़बड़ा सकता हैं इसीलिए उनने राष्ट्र को समर्थ-समृद्ध व सशक्त बनाने के लिए राष्ट्र के नागरिकों को एक श्रेष्ठ साधक के रूप में निखरने हेतु अनेकानेक उपचारों का प्रावधान किया, गायत्री को सार्वजनीन बनाया एवं यज्ञीय तत्त्वदर्शन के विश्वभर में विस्तार द्वारा सत्कर्म व पर्यावरण -संशोधन की प्रक्रिया को परिपूर्णता तक पहुँचाया। प्रस्तुत साधना महापुरश्चरण राष्ट्र के साँस्कृतिक पुनर्जागरण हेतु अनिवार्य माना जा सकता है व समय की विषमता से जूझने हेतु एक आध्यात्मिक महापुरुषार्थ भी। यह भी एक प्रसन्नता की ही बात मानी जानी चाहिए कि इस प्रखर साधना पराक्रम के शुरुआती दीप प्रज्ज्वलन के रूप में पिछले दिनों गायत्रीतीर्थ शाँतिकुँज हरिद्वार में एक अन्तर्राष्ट्रीय योगसम्मेलन भी सफलता-पूर्वक आयोजित हो कर इस उपक्रम का शानदार शुभारम्भ हो चुका है।

यह अन्तर्राष्ट्रीय योग सम्मेलन विवेकानन्द केंद्र बैंगलोर के पारस्परिक समन्वय के आधार पर शान्तिकुञ्ज परिसर में 13 से 18 दिसम्बर, 1998 की तारीखों में प्री–कांफ्रेंस के रूप में तथा 19, 20 दिसम्बर को मुख्य कांफ्रेंस या सम्मेलन के रूप आयोजित हुआ। यह तथ्य भली-भाँति समझ जाना चाहिए कि प्रस्तुत वेला जो युगसंधि की है, श्रेष्ठ कार्यों में जुटी संस्थाओं के समन्वित रूप में कार्य करने की संगति - करण की है। इसी उद्देश्य को दृष्टिगत रख समान उद्देश्यों के लिए काम कर रही संस्थाओं से गायत्री परिवार सतत् सम्पर्क कर समन्वय स्थापित करता रहा है। इसी कड़ी में विवेकानन्द केन्द्र (वी. के. योगाज) के एवं शाँतिकुँज के सम्मिलित तत्त्वावधान में गंगा-कावेरी के, उत्तर-दक्षिण के, हिमालय-हिंद महासागर के मिलनक्रम के रूप में राष्ट्रीय एकता को केन्द्रबिन्दु में रखकर यह आयोजन बड़ी सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। इसमें भारत व विदेश के योग वेदान्त -दर्शन, योग-चिकित्सा से लेकर प्रबंध व्यवस्था से जुड़े विभिन्न विद्वानों ने भाग लिया। कन्याकुमारी स्थित विवेकानन्द केन्द्र के बैंगलोर प्रतिष्ठान के पदाधिकारियों सहित भारत के पूर्व से पश्चिम छोर तक व उत्तर से दक्षिण छोर तक व उत्तर से दक्षिण छोर तक के कई योग−साधकों ने उसमें भागीदारी की। छह दिन तक चली प्री–कांफ्रेंस में बच्चों के व्यक्तित्व परिष्कार व योग से सर्वांगीण विकास से लेकर -योगथेरेपी, योगथेरेपी प्रशिक्षकों का प्रशिक्षण, तनाव प्रबन्ध, उपनिषद् व चेतना-डीप इकोलॉजी -विज्ञान वेदान्त का समन्वय -शोध अनुसंधान की तकनीकों आदि विषयों पर समानांतर पाँच हॉलों में वर्कशॉप चलती रही। योग ओलम्पियाड के रूप में ‘हिमालय’ नामक प्रतिस्पर्धाओं का आयोजन इसकी एक विशिष्ट भागों से आए बालक-बालिकाओं तथा बरेली, उड़ीसा-मुँगेर व अजमेर के छात्र-छात्राओं में प्रतिस्पर्द्धा हुई एवं समापन के दिन स्वामी कल्याणदेव जी महाराज के हाथों पुरस्कार वितरण हुआ। 125 वर्ष की आयु के स्वामी जी जो स्वामी विवेकानन्द का 1892 में दर्शन कर उनके साथ पैदल यात्रा कर चुके है एवं गायत्री परिवार की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हैं, से बढ़कर और कौन श्रेष्ठ पात्र इस कार्य के लिए हो सकता था।

योग-सम्मेलन तो संपन्न हो एक महत्वपूर्ण संदेश सबके लिए छोड़ गया हैं दैनन्दिन जीवन में योग की कर्मठता को, स्वस्थ समर्थ बनाने वाली विधा को अब गाँव-गाँव, घर-घर तक पहुँचाना हैं यह साधना वर्ष इस दिशा में निश्चित ही महत्वपूर्ण स्थापनाएँ करेगा। बिना साधना के योगस्थ होना संभव नहीं। जीवन-दर्शन जब तक योगी स्तर की नहीं बनेगा, कोई भी साधना सफल नहीं मानी जा सकती। गायत्री अपने में परिपूर्ण योग हैं यदि महाशक्ति त्रिपदा के तीनों सूत्रों को भक्तियोग, ज्ञानयोग, कर्मयोग के रूप में आत्मसात् कर जीवन वैसा बना लिया जाय तो राष्ट्र का कायाकल्प बहुत दूर नहीं। इस सम्मेलन में सभी ने इस तथ्य पर जोर देते हुए साधना वर्ष को अपने प्रखरतम रूप में उसी प्रचण्ड भाव से हर हिस्से में, दक्षिण के भी कोने-कोने में, पूर्वोत्तर व पश्चिमोत्तर भारत के भी चप्पे-चप्पे में मनाए जाने का संदेश ग्रहण व सम्प्रेषित किया है। ये इसी रूप में सम्पन्न होगा भी, इसमें किसी भी प्रकार का संदेह नहीं है।

दिसंबर वर्ष के साधना अंक का जिनने स्वाध्याय किया है, उन्हें पूरक के रूप में फरवरी 99 का साधना वर्ष विशेषांक पढ़ने को मिलेगा। इस पूरे अंक को इसी उद्देश्य विशेष के लिए तैयार किया गया है कि साधना-वर्ष किस रूप में, किस स्तर पर सभी वर्गों द्वारा मनाया जाना चाहिए।

प्रस्तुत ‘ साधना वर्ष विशेषांक एक विलक्षण वसंत पर्व की पूर्व वेला में दैवी संदेश के रूप में लिखा गया हैं। जैसा कि बहुत से परिजन जानते हैं, आज से प्रायः तीस वर्ष पूर्व 1969 में परमपूज्य गुरुदेव ने एक ऐतिहासिक युगांतरकारी घटना के माध्यम से परिवर्तन आने की भविष्यवाणी इसी वसंत के दिन के लिए व्यक्त की थी। इस वर्ष भी वसंत पर्व 22 जनवरी को था। इस वर्ष भी यह 22 जनवरी को ही आ रहा हैं साधना वर्ष विशेषांक तो वसन्तपर्व सम्पन्न हो जाने के बाद ही सबके पास पहुँचेगा, किंतु तब तक स्थान-स्थान पर अखण्ड जप प्रधान उज्ज्वल भविष्य की प्रार्थना के साधना प्रधान आयोजन संपन्न होने लगेंगे। यह ऐतिहासिक वेला में है, जिसमें मिशन ही नहीं, सारा विश्व एक विलक्षण मोड़ से गुजरेगा।

इस ‘साधना वर्ष विशेषांक में परमपूज्य गुरुदेव की भावी योजनाओं सहित यह समग्र प्रारूप होगा कि कैसे भारतभूमि को तपोभूमि बनाने का उपक्रम शाँतिकुँज के माध्यम से संचालित होने जा रहा है। अंतरिक्ष में जो परिवर्तन संभावित है- उनसे क्या- क्या हो सकता है एवं इस महान साधना से सूक्ष्मजगत का परिशोधन कैसे होगा, इस विस्तार के साथ दैवी पुरुषार्थ से सामूहिक पापों के प्रक्षालन की प्रक्रिया भी स्पष्ट की जाएगी।


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