परमपूज्य गुरुदेव की अमृत वाणी - आपका विवाह हम भगवान से कराना चाहते हैं।

January 1999

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(जनवरी, 1969 में गायत्री तपोभूमि में दिया गया प्रवचन)

गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्।

देवियो, भाइयो! आपने केवल अपने बेटे के लिए कमाया है, भले ही वह दो कौड़ी का हो। आपने केवल उसी के लिए जीना सीखा हैं मित्रो, हमारा जीवन किस काम के लिए खर्च हो गया। केवल मुट्ठीभर पत्थरों के लिए। हमने कभी भी सोचा नहीं कि हमें किस प्रकार जीना चाहिए। तो गुरु जी हमारी कमाई का क्या होगा? आपकी कमाई बेटे को मिलने वाली है, साले को मिलने वाली है, जमाई को मिलने वाली हैं आपने अपनी बीबी को तबाह कर डाला। अरे आप चाहते तो उसका ऊँचा उठा सकते थे। भगवान ने आपको मनुष्य का शरीर दिया था। जिस दिन उसने आपको बनाया था, उसके लम्बे-लम्बे ख्वाब थे, उम्मीदें थी। आपने सब पर पानी फेर दिया।

मित्रो! भगवान बहुत ज्यादा थक गया हैं उसकी इच्छा है कि हमारे प्रिय बेटे मनुष्य, यदि इस दुनिया को सुन्दर बनाते तो मजा आ जाता। भगवान को सगी और सहयोगी की आवश्यकता थी। इसलिए भगवान ने आपको बनाया था। भगवान के पास गीली मिट्टी थी। उसने कुम्हार के तरीके से उस मिट्टी को इस प्रकार लम्बा कर दिया कि साँप बन गया। गोल–मटोल कर दिया तो कछुआ बन गया, मेढ़क बन गये। परंतु जिस दिन भगवान ने आपको बनाया तो उन्हें पसीना आ गया। उनका बहुत सारा समय बीत गया। इसके पीछे दुनिया को सुन्दर बनाने का उनका उद्देश्य था। एक-एक कण शरीर का, जिसमें मस्तिष्क, हृदय,आँखें आदि सभी अंग बने। आज तक ऐसी बेमिसाल चीज दुनिया में नहीं बनी है जैसा कि मनुष्य का शरीर है। जब हम हिमालय गये तो नन्दनवन का फोटो खींचकर लाये। लम्बाई-चौड़ाई थी, परन्तु गहराई का पता नहीं लगा सका, तथा जो फोटो खींचा था तो वह पीले रंग का आया था। उसे देखकर मैंने सोचा कि यह कैसे हो सकता है फोटो का रंग तो इस प्रकार का नहीं होना चाहिए। वह तो मखमली था। मैंने उसे उठाकर फेंक दिया। यह सब लेंस का कमाल था।

मित्रो, हमारी आँखें कितने सुंदर लेंस की बनी है, इसका जवाब इस दुनिया में नहीं है। यह वास्तविक फोटो खींच लेती हैं इतना बेशकीमती शरीर तथा भगवान का ऐसा अनुदान किसी प्राणी को नहीं मिला है। इतनी उदारता भगवान ने क्यों बरती? यह प्रश्न आपके सामने हैं आपको विचार करना चाहिए कि भगवान ने ऐसा पक्षपात क्यों किया? अगर अन्य प्राणियों में सोचने का, विचार करने का माद्दा रहा होता, तो वे भगवान के सामने उपस्थित हो जाते तथा अपनी फरियाद सुनाकर आपको जेल भिजवा देते। परंतु उनमें यह माद्दा नहीं, अतः वे बेचारे क्या करे। परन्तु आपको तो विचार करना चाहिए। इस मामले में भगवान को अगर कोर्ट में बुलाया जाता तो वह काँपता हुआ आता। जब उससे इस बाबत पूछा जाता तो वह कहता हक मनुष्य को हमने विशेष चीजें इसलिए नहीं दीं कि वह फिजूलखर्ची करे मौज मस्ती उड़ाए। हमने तो इस दुनिया को सुन्दर बनाने के लिए, उसे सजाने-सँवारने के लिए बनाया था। यह हमारा बड़ा बेटा है, राजकुमार हैं हमने इस कारण से उसे राजगद्दी दे दी थी ओर सारी जिम्मेदारी सौंपी थी। यह इसलिए दिया था कि वह मेरा सहयोग करेगा। हमने बहुत बड़ा ख्वाब देखा था, इसके बारे में कि यह हमारा बड़ा बच्चा है, वरिष्ठ राजकुमार है जो इस दुनिया को सुन्दर बनाता हुआ चला जाएगा।

परन्तु उस अभागे को, बेहूदा को मैं क्या कहूँ जो घूमघाम कर वहीं आ गया जहाँ से चला था। वह कुत्ते की योनि से, बन्दर की योनि से, सुअर की योनि से आया था और निम्नकोटि के चिन्तन विचार होने के कारण फिर से उसी योनि में चला गया। उसे निम्न कोटि के प्राणियों की तरह ही अब भी पेट तथा प्रजनन की बात याद है, बाकी चीजें तो वह भूल-सा ही गया। उस अभागे को यह समझ में नहीं आया कि जब भगवान ने बन्दर के लिए, अन्य प्राणियों के लिए पेट भरने की व्यवस्था की है, तो क्या उसके प्रियपुत्र मनुष्य को वह रोटी का प्रबन्ध नहीं करेगा? परन्तु हाय रे! अभागे मनुष्य-वह इसकी कीमत नहीं जान सका। वह अपने उद्देश्य को भूल गया तथा यह कहने लगा कि मैं अपनी अकल से कमाऊँगा, बहुत अर्जन करूँगा, मौज से इसी में वह खपता रहा।

मित्रो! उसका हीरे एवं मोती जैसा दिमाग इसी में घूमता रहा, आगे-पीछे होता रहा। उस अभागे ने बर्बाद कर लिया, अपने आपको। साथियों घोड़ा, हाथी, भैंस आदि जानवर मनुष्य से ज्यादा खाते है और उनका पेट भर जाता है। परन्तु इस अभागे मनुष्य का पेट भाई से, बाप से, बीबी से भी नहीं भरता हैं हाय रे! अभागा यह मनुष्य, पेट की खातिर बर्बाद हो गया। भगवान ने हमसे कहा कि क्या कहूँ- आचार्य जी, हम तो बहुत चिन्तित है। हमने उन्हें पानी पिलाया और कहा कि आप जाइये एवं चिन्तित मत होइए। आपके पास तो चौरासी लाख योनि वाले प्राणियों की अनेकों शिकायतें आ चुकी है। आप जाइये, अब हम इन्हें ठीक करेंगे। मनुष्य के पास बुद्धिबल है।, उसे हम ठीक करेंगे। इस दुनिया में खुशी आनन्द,उल्लास का वातावरण पैदा करेंगे। अभी तो वह पेट-प्रजनन में लगा है। मैं पूछता हूँ कि तेरे पास धर्म, संस्कृति कहा है? तू कभी इसके बारे में सोचता है क्या? अरे तूने इतने सारे बच्चे पैदा कर दिये। क्या उनको पढ़ाने के लिए, विकास के लिए, ऊँचा उठाने के लिए तूने कोई व्यवस्था की है? नहीं। तो फिर इतने बच्चे क्यों पैदा कर लिए? इसे नासमझी के अतिरिक्त और क्या कहा जया?

भगवान ने कहा कि मैंने इसे बहुत प्यार से पैदा किया, पाला, बड़ा किया कि शायद यह मेरे काम आयेगा। मेरी सहयोगी बनेगा तो इस संसार को सुन्दर बनाएगा, परन्तु इसने तो हमारी सारी-की-सारी इच्छाओं पर पानी दिया हैं यह वहीं जा पहुँचा है, जहाँ अन्य चौरासी लाख योनियों के प्राणी रहते है। इसने भगवान की नाक में दम कर रखा है। हमने भगवान से कहा- हे प्रभु! इसे बार माफ कर दीजिए। अगर किसी को आगे इनसान बनाना तो उसे ठोंक -बजाकर देख लेना। हमने भगवान से प्रार्थना की कि भगवान! पहले उससे पूछ लेना कि क्या वह कोई सेठ बनने जा रहा है या बच्चा पैदा करने जा रहा है? पहले यह पूछ लेना फिर उसे इनसान का जन्मा देना। अगर मनुष्य का जन्म चाहिए तो दो रुपये के कागज पर हस्ताक्षर करा लेना और बता देना कि अमुक-अमुक लक्ष्य है। अगर उसे मंजूर हो तो जीवन देना, वरन् नहीं देना। अगर चाहिए तो जाओ, अन्यथा तुम बन्दर, कुत्ते की योनि में जाओ। तुम्हारे लिए मनुष्य का जीवन जीना तथा पाना संभव नहीं है। हमने भगवान से कहा और उन्होंने स्वीकार कर लिया। उन्होंने कहा कि हमें जिनका दिमाग, विचार, कार्य जानवरों जैसा दिखाई पड़ेगा, उन्हें हम मनुष्य का जन्म नहीं देंगे।

मित्रो, यह सच्चाई नहीं है। आप भगवान के बड़े बेटे है। आप उनके बेटे है जो बड़ा उदार, दयालु, कृपा का सागर तथा सर्वसम्पन्न हैं भगवान अपने लिए क्या चाहता है? क्या खाता है।? वह केवल दूसरों के लिए जिन्दा रहता है, आपको यह सोचना चाहिए तथा अपना जीवनक्रम बदलने का प्रयास करना चाहिए। आप तो केवल लक्ष्मी का मंत्र सीखना चाहते हैं आप कहते है। कि गुरुजी यह क्या कर रहे है? मित्रों, आप चौरासी लाख योनियों का शरीर देखिये आप अच्छे कर्म नहीं करेंगे तो आपको गधे की योनि स्वीकार करनी पड़ेगी। आप पर ईंट लादी जाएँगी। वजन के मारे पीछे का पैर जख्मी हो जाएगा। पैर लड़खड़ाने लगेंगे। आप कहेंगे कि आचार्य जी हम तो मन्नूलाला सेठ है। हम इस योनि में कैसे जाएँगे? आपने अच्छा कर्म नहीं किया तो आपको घुसना ही होगा।

मित्रों! आपको अपनी मूर्खता पर विचार करना चाहिए। आप बेकार की समस्याओं-बेसिर-पैर की समस्याओं में उलझे है। आपका दिमाग इस उलझन में पड़ रहता है। आपका जीवन बर्बाद हो रहा है ओर आप चुप बैठे रहते है। हम आपको धन्यवाद देने वाले थे, परंतु नहीं देना चाहते। आपको अभी 125 रुपये मिल रहे थे, पर आप 350 रुपये की नौकरी चाहते हैं यह बेकार की बातें है। आपको जब 125 रुपये खर्च करना नहीं आता तो 350 रुपये कैसे खर्च करेंगे। बेकार की बातें बन्द कीजिए। अगर आप आचार्य जी का आशीर्वाद ले जाते तथा अपने जीवन को महान बना लेते तो हम और आप दोनों धन्य हो जाते।

मित्रों! हमने शानदार जिन्दगी जी हैं तथा प्रसन्नता के साथ विदा होने को बैठे है कि हम भगवान को सही उत्तर देंगे। परन्तु आप भगवान को क्या जवाब देंगे। आप तो अपनी जिन्दगी भर रोते रहे एवं मरने के समय भी रोते रहेंगे। हमारा जीवन तालाब की तर हों गया हैं हमारा आधार कमजोर है। अगर अभी हमें लकवा हो जाये तो हम कहीं के नहीं रह जाएँगे। हमारा तालाब सूख जाएगा तो फिर क्या होगा? हमारी उन्नति का आधार समाप्त हो गया है। हमारे पास ज्ञान है, परन्तु हमारे मस्तिष्क का चिंतन खराब है, तो वह किसी तरह उपयोगी नहीं। हमारे पास सम्पत्ति है, परन्तु कुछ उलटा हो जाये, अकाल पड़ जाये, आग लग जाये, तूफान आ जायें तो हमारी सारी सम्पत्ति स्वाहा हो सकती है। जिसके प्रति हमारा अहंकार है, लोभ है, मोह है, वह बेकार हो जाएगा।

तालाब के ऊपर खेती का क्या भरोसा है। खेती कुएं के पास के बन्धे के ऊपर ठीक होती है जहाँ कुछ- न-कुछ अवश्य पैदा हो जाया करता हैं वह हरा-भरा रहता है तथा पानी की चिन्ता उसे नहीं होती है। हमारा भी इस तरह का ही चिन्तन है कि हमें भी मजबूत सहारा पकड़ना चाहिए, जिसमें कि हम भी हरे-भरे रह सकें इस तरह का सहारा हमारे लिए भगवान से बढ़कर और कोई नहीं है, जो हमें सदैव हरा-भरा रख सकता है। इसमें जिन्दगी की उन्नति का सारा-का-सारा मार्ग खुला हुआ है। यह एक अज्ञात शक्ति है, जिसके इशारे पर सारा संसार चल रहा है।

आप तो बेटे के नशे में है। हाय बेटा-हाय बेटा चिल्लाते रहते है। एक बार हमारे पास मध्यप्रदेश के एक सज्जन आये थे। उनके दूसरे नम्बर के बेटे की शादी तो हो गयी, पर नौकरी नहीं लगी थी। वह मक्कार था, श्रम करना नहीं चाहता था। उसने अपने बाप से कहा कि आपने पैदा किया है तो खिलाइये, पैसा दीजिए, नहीं तो हम जान से मार देंगे। बेचारे डर के मारे भागकर हमारे पास आये एवं कहा कि हम दो-तीन माह तक नहीं जाएँगे। छुट्टी ले लेंगे एवं यहाँ छिपे रहेंगे। उन्होंने कहा कि गुरुजी अगर उसका कोई पूछने आ जाये तो यह मत कहना कि हम यहाँ है। मित्रो, उनके मन में बेटे के प्रति जो ख्वाब था, वह चूर-चूर हो गया था। आप भी बेटे के पीछे पागल रहते है। रात-दिन बेटा बेटा करते रहते है। हमारा एक और दूसरा ख्वाब यह होता है कि हम यह बन जाएँगे, वह बन परन्तु एक आँधी आती है और हमारे सब ख्वाब समाप्त हो जाते है। हमने इतना कमजोर आधार बना दिया है कि हमें दिन में हँसना पड़ेगा तथा रात में रोना पड़ेगा। इस प्रकार हम अपनी हँसती जिन्दगी इसी प्रकार रोते हुए खत्म कर देंगे।

लेकिन मित्रो! एक और सहारा है, अगर आप उसे पकड़ लेंगे तो आपका जीवन कुछ बन सकता हैं वह सहारा भगवान का है। आप कहेंगे कि हम तो रोज शंकर जी के मंदिर जाते है। पूजा-पाठ करते है, परन्तु शंकरजी हमारी कोई मदद नहीं करते है। सावन के महीने में हमने बेलपत्र चढ़ाया, पानी का मटका लगा, परन्तु भगवान शंकर भगवान की कृपा प्राप्त करने के आपको बड़ा कदम उठाना होगा।

मित्रो! बड़े कार्यों के लिए बड़ा कदम, जोखिम भरा कदम उठाना पड़ता है, तब लाभ प्राप्त होता है शंकरजी वरदान दिया था-रावण को, भस्मासुर को तथा शंकर जी ने वरदान दिया था परशुराम को, परन्तु उनके व्यवहार एवं कार्य करने के ढंग के कारण रावण एवं भस्मासुर को मारना पड़ा। अगर आपकी विचारधारा ठीक होगी और आप भगवान का अनुदान-वरदान प्राप्त करके इस संसार का कुछ अच्छा करना चाहते है, तो आपको भगवान का हर प्रकार का सहयोग मिलेगा। बल एवं धन के आधार पर मनुष्य बलवान नहीं हो सकता हैं हमको अपने विकास के लिए मजबूत आधार ढूँढ़ना होगा। वह मजबूत आधार केवल भगवान हैं भगवान का सहारा लेने के बाद हमारे पास क्या कमी रहेगी? हमें उनका प्यार-अनुदान प्राप्त करके अपना आध्यात्मिक विकास करने का प्रयास करना चाहिए। भगवान के पास अनन्त सुख के भंडार भरे पड़े है। उनके एक मित्र थे सुदामा, वे गरीबी का जीवन जी रहे थे। लोगों ने कहा कि आपकी भगवान से मुलाकात है। आप इस प्रकार क्यों हैं? सुदामा जी भगवान के पास गये, भगवान ने अपने मित्र का निहाल कर दिया।

गुरुनानक को उनके पिता ने नाराज होकर बीस हजार रुपये व्यापार करने को दिये और कहा- जा व्यापार द्वारा अपना जीवन निर्वाह कर। गुरुनानक देव संत थे, उन्होंने बीस रुपये की हींग खरीदी ओर वहाँ आये, जहाँ पर संतों का एक भण्डार चल रहा था। उस समय दाल बन रही थी। उसमें हींग का छोंक लगा दिया तथा सभी के आगे दाल परोस दी। सभी उपस्थित लोगों ने प्रेम से भोजन किया तथा प्रसन्न हुए। प्रातःकाल जब नानक घर पहुँचे तो उनके पिता काफी नाराज थे उन्होंने पूछा कि पैसों का क्या किया? नानकजी ने सारी बात बता दी तथा यह कहा कि पिता जी! हमने ऐसा व्यापार किया हैं जो भविष्य में हजार गुना होकर वापस होगा। आज वास्तव में गुरुनानक साहेब की याद में स्वर्णमंदिर अमृतसर में विद्यमान है, जो करोड़ों-अरबों का है। मित्रों, यह भगवान के साथ व्यापार करने का लाभ है। हमने विचार किया वह कैसा मंदिर है। करोड़ों का कौन-सा मन्दिर है, जिसमें गुरुनानक सोये हुए है। मित्रों, यह महत्व है भगवान के साथ जुड़ने का, उससे सम्बन्ध करने का।

मित्रो, कश्मीर में हजरत मोहम्मद साहब का पवित्र बाल एक शीशी में रखा हैं जहाँ मोहम्मद साहब का बाल रखा हैं अगर आज गुरुनानक देव, मोहम्मद साहब आ जायें तथा इतना बड़ा मूल्यवान मकान देख लें तो उनको आश्चर्य होगा। मित्रो, यह आध्यात्मिकता का मूल्य है। भगवान से सम्बन्ध बनाने के बाद आदमी कितना मूल्यवान हो जाता है, यह विचार करने का विषय हैं वह बहुत कीमती हो जाता है। नानक, विवेकानंद, मोहम्मद साहब महान हो गये। भगवान से सम्बन्ध हो जाने पर आदमी का वजन और मूल्य दोनों बढ़ जाते हैं

अगर एक औरत की शादी एक सेठजी के साथ होती है और दुर्भाग्य से उसके पति का देहांत हो जाता है, तो दूसरे दिन से ही वह सेठानी उसकी सारी जमीन -जायदाद की मालकिन बन जाती है। यही होता है भक्त का भगवान से सम्बन्ध जोड़ने पर। डॉक्टर की पत्नी डॉक्टरनी, वकील की पत्नी वकीलनी, पंडित की पत्नी पंडितानी बन जाती है, चाहें वह पांचवीं क्लास हो धर्मपत्नी बनकर आप से सम्बन्ध जोड़ने पर वह पति की सारी सम्पत्ति की मालकिन बन जाती है, उसी प्रकार भगवान से सम्बन्ध जोड़ने पर होता हैं आपको यहाँ हमने इसलिए बुलाया है कि आपका ब्याह भगवान से करा दे। इसके लिए आपको हमने अनुष्ठान प्रारम्भ कराया है। यह अनुष्ठान आपके विवाह के समय हल्दी लगाने तथा बाल सँवरने, वस्त्र आदि से सजाने के बराबर हैं हम आत्मा का परमात्मा से मिलन कराना चाहते है। यह बाजीगरी है। हम आपका संबंध भगवान से कराना चाहते हैं, ताकि आपका सम्बन्ध मालदार आदमी से हो जायें। मालदार आदमी के साथ सम्बन्ध भगवान से कराना चाहते है, ताकि आपका सम्बन्ध मालदार आदमी से हो जाये। मालदार आदमी के साथ सम्बन्ध बना लेने से आदमी को हर समय फायदा रहता है

मित्रो, किसी का सम्बन्ध मालदार आदमी से होता है। ओर वह उसके यहाँ काम करता है, तो उसे सेठ जी कुछ लाने को भेजते है तथा सौ रुपये देते है। वह अस्सी रुपये का समान लाता है तथा बीस रुपये अपने पॉकेट में रख लेता हैं सेठजी उससे पूछते भी नहीं हैं इस प्रकार छोटे-छोटे कामों में वह पैसा इकट्ठा करता जाता है और मालदार के साथ मालदार हो जाता हैं उसकी बीबी कहती है कि हमारे घर में बाबू की तनख्वाह से क्या होगा, अगर रोज न कमाये। यह है मालदार आदमी से जुड़ने पर भौतिक लाभ। भगवान से जुड़ने पर भौतिक लाभ। भगवान से जुड़ने पर हमें क्या-क्या लाभ मिलते है, यह आप जुड़कर स्वयं देखे।

मित्रो! मालदार आदमी के पास नौकरी करने पर पैसों के लिए चालाकी, बेईमानी करनी पड़ती है तो आप पैसा कमाते है, परन्तु हम ऐसे मालदार आदमी से जिसका नाम भगवान है, उसके यहाँ आपकी नौकरी लगाना चाहते है, जिसके पास आपको सारी चीजें प्राप्त होती रहेंगी। उसके लिए आपको चालाकी या बेईमानी करने की कोई आवश्यकता नहीं पड़ेगी। हम चाहते है कि आपको भगवान की गोद में रख दे। गोद में रहने वाला व्यक्ति घाटे में नहीं रहता है। बाप कमाता रहता है बेटा खाता रहता है।

बेटे, हम भी आपको बाँटते रहते है, आशीर्वाद देते रहते है कि आपका कष्ट दूर हो जाये। आपकी मनोकामना पूर्ण हो जाये। आज आप कमजोर है, हो सकता है कि कल आप कमजोर है, हो सकता है कि कल आप मजबूत हो जायें तथा भगवान का काम कर सके। आप यह सोचते है कि दो साल के बाद गुरु जी चले जाएँगे तथा हमें तपोभूमि या फिर हरिद्वार जाने के क्या मिलेगा? आप इधर-उधर बगलें झाँकने लगते है तथा साँई बाबा के पास चले जाते है। वहाँ जाने के बाद हनुमान जी के पास, करौली वाली माँ के पास जाते है, इधर−उधर भटकते रहते है। जिन्दगी भर आप खाली हाथ रहते है। मित्रो, इधर-उधर आप भटकते न रहे, आप भगवान का पल्ला पकड़ लीजिए। तथा अपने जीवन को पार कर लीजिए।

मित्रो, हमारी मुलाकात किसी एम.पी. एम.एल.ए या मिनिस्टर से होती है या उससे जान-पहचान, साँठ-गाँठ होती है, तो हमारी समस्या तथा हमारी मुसीबतें दूर होती हो जाती है। अगर हमारा सम्बन्ध भगवान से हो तो फिर क्या कहना कहना? मध्यप्रदेश के पूर्व मंत्री हमारे पास आये और यह कहा कि गुरुजी हमें एक दिन के लिए ही मुख्यमंत्री बना दीजिए। वे दो-ढाई घण्टे तक हमारे पास बैठे रहे। भगवान की कृपा से तुक्का लग गया और वे मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बन गये। मित्रों यह क्या बात है? हमारी जान-पहचान किससे है? हमारी जान-पहचान भगवान से है।

आदमी की पहचान बड़े आदमी से होने पर काम बन जाता है। एक बार ऐसा ही हुआ कि एक पंडित जी थे। पंडित जी ने एक दुकानदार के पास पाँच सौ रुपये रख दिये। उन्होंने सोचा कि जब बच्ची की शादी होगी तो पैसा ले लेंगे। थोड़े दिनों के बाद जब बच्ची सयानी हो गयी तो पंडित जी उस दुकानदार के पास गये उसने नकार दिया कि आपने कब हमें पैसा दिया था। उसने पंडित जी से कहा कि क्या हमने कुछ लिखकर दिया हैं पंडित जी इस हरकत से परेशान हो गये और चिन्ता में डूब गये। थोड़े दिन के बाद उन्हें याद आया कि क्यों न राजा से इस बारे में शिकायत कर दें ताकि वे कुछ फैसला कर दें एवं मेरा पैसा कन्या के विवाह के लिए मिल जाये। वे राजा के पास पहुँचे तथा अपनी फरियाद सुनाई। राजा ने कहा-कल हमारी सवारी निकलेंगी, तुम लालाजी की दुकान के पास खड़े रहना। राजा की सवारी निकली। सभी लोगों ने फूलमालाएँ पहनाई, किसी ने आरती उतारी। पंडित जी लालाजी की दुकान के पास खड़े थे। राजा ने कहा-गुरुजी आप यहाँ कैसे, आप तो हमारे गुरु है? आइये इस बग्घी में बैठ जाइये। लालाजी यह सब देख रहे थे। उन्होंने आरती उतारी, सवारी आगे बढ़ गयी। थोड़ी दूर चलने के बाद राजा ने पंडित जी को उतार दिया और यह कहा कि पंडित जी हमने आपका काम कर दिया। अब आगे आपका भाग्य।

उधर लालाजी यह सब देखकर हैरान थे कि पंडित जी की तो राजा से अच्छी साँठ-गाँठ है। कहीं वे हमारा कबाड़ा न करा दे। लालाजी ने अपने मुनीम को पंडित जी को ढूँढ़कर लाने को कहा-पंडित जी एक पेड़ के नीचे बैठकर कुछ विचार कर रहें थे मुनीम जी आदर के साथ उन्हें अपने साथ में ले गये। लाला जी ने प्रणाम किया और बोले-पंडित जी हमने काफी श्रम किया तथा पुराने खाते को देखा तो पाया कि हमारे खाते में आपका पाँच सौ रुपये जमा हैं पंडित जी दस साल में मय ब्याज के बारह हजार रुपये हों गये। पंडित जी आपकी बेटी हमारी बेटी है अतः एक हजार रुपये आप हमारी तरफ से ले जाइये तथा उसे लड़की की शादी में लगा देना इस प्रकार लालाजी ने पंडित जी को तरह हजार रुपये देकर प्रेम के साथ विदा किया।

मित्रों, यह हम क्या कह रहे थे? यह बतला रहे थे कि आप भी अगर इस दुनिया के राजा, जिसका नाम भगवान है, अगर अपना सम्बन्ध उससे जोड़ लें तो आपकी कोई समस्या, कठिनाई नहीं रहेंगी। आपको कोई तंग भी नहीं करेगा। आपके साथ अन्याय भी कोई नहीं कर सकता। पाँच फुट वाला आदमी जब भगवान से जुड़ गया तो मित्रो, वही आदमी महात्मा बन गया। उस आदमी का नाम महात्मा गाँधी हो गया, जिसको देखकर अंग्रेज डरते थे और यह कहते थे कि यह जादूगर है। इससे बचकर रहो। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री उससे डरते थे और यह कहते थे कि यह ‘बम’ हैं उनने अपने सभी मंत्रियों से गाँधीजी से नजर न मिलाने की हिदायत दे रखी थी। वह काला गाँधी नहीं, वरन् वह गाँधी था जो भगवान से जुड़ गया था और वह उसी का चमत्कारी। वह चालाकी या अक्ल वाला गाँधी नहीं था, बल्कि भगवान का सहयोगी गाँधी था। इन शक्तियों को आप भी भगवान के पास बैठकर पा सकते है। अपने को महान बना सकते हैं। अगर आप अपने आप को तैयार कर लें तो सब कुछ प्राप्त कर सकते है तथा संत, महामानव स्तर तक पहुँच सकते है।

मित्रो, सूर्य की रोशनी इस धरती पर पड़ती तो है, परन्तु है यह हमारी आँखों का चमत्कार। अगर आँखें न रहती तो म यह विभिन्न तरह के रंग कैसे देखते तथा आनन्द अनुभव कैसे करते? आँख का सूर्य अगर ठीक हो तो यह आपको

रामायण, भागवत् पढ़ा सकता है। अगर आपको बुखार आ जाये तथा तबियत खराब हो जाए तो आप ठीक से नहीं खा सकते है।यह बात आपको सोचनी चाहिए। एक महिला थी। उसके मरने का समय हो गया। उसे पकौड़ी, नीबू का आचार, रबड़ी दी गयी, परन्तु उसका मुँह कड़वा था। उसे सब चीजें मिट्टी के समान लगी। अगर आपकी अक्ल खराब हो जाए तो इस दुनिया की सारी सम्पत्ति आपको किसी काम की नहीं दिखायी पड़ेगी। यह क्या है? जिसके कारण आप दुनिया के सारे आनन्द ले रहे है? चौरासी लाख योनियों में सर्वश्रेष्ठ राजकुमार की तरह रह रहे है। यह है भगवान की अनुकम्पा, भगवान की कृपा, जो निरन्तर आपके ऊपर बरस रही है। हमें यह महसूस करना चाहिए कि भगवान हमारे सारे अंग-अंग में, सारे रोम-रोम में समाया हुआ है तथा उसकी शक्ति हमारे अन्दर समायी हुई है। वह हमें महान बना रहा है, जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आगे बढ़ रहा है। हमारा कायाकल्प कर रहा है, जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आगे बढ़ा रहा है। हमारा कायाकल्प कर रहा हैं। अगर इतना आप कर सकें तो मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि आप धन्य हो जाएँगे।

साथियों! हमारी काया के भीतर ऐसे सेल भरे पड़े है, जिसमें हीरे-मोती सोना-जवाहरात पड़े है। अगर आप उसे जगा लें तो मालामाल हो सकते है। आप पारस, कल्पवृक्ष हो सकते है। आपका सम्पर्क जिस किसी से होगा, उसको आप धन्य करते चले जाएँगे। आपका विकास होता चला जाएगा। हमें अपनी हर उँगली प्यारी हैं भगवान को भी हर प्राणी प्यारा है। वह सबका बराबर ध्यान रखता हैं भगवान अपने हर अंग को सुन्दर और सुडौल देखना चाहता है। भगवान के ऊपर पक्षपात का दोष नहीं लगाया जा सकता हैं वह सबको बराबर देता है, परन्तु मनुष्य अपने गुण, कर्म, स्वभाव, श्रम, आलस्य के कारण पिछड़ जाता है। अगर आपकी पात्रता हो तो आप अपनी प्रगति के लिए न जाने कहाँ-कहाँ घूमते है, किस-किसको गुरु बनाते फिरते है। हम भी तेरह से पंद्रह वर्ष की उम्र तक इसी चक्कर में पड़े रहे तथा तमाशा देखते रहे। हमने भी बहुत पैसा फेंका है, मात्र यह बाजीगरी देखने के लिए।

मित्रो! इन दो सालों में हमने हिन्दुस्तान के किसी भी सिद्धपुरुष, महात्मा, योगी को नहीं छोड़ा जो आज बाजीगर की तरह नाम बतलाते है तथा सोना बनाते है। अगर आप चाहें तो हम उनका नाम आपको बतला सकते है। एक बार हमने एक सिद्धपुरुष की बात सुनी तथा उसके लिए हमने बहुत बड़ा जोखिम उठाया, प्राणों की बाजी लगा दी। वो सिद्धपुरुष घने जंगल की एक गुफा में रहते थे लोगों ने बतलाया कि वे सबका नाम-पता तथा भूत-भविष्य वर्तमान सब कुछ बता देते है। हम पहुँच गये, उनके पास। बाबा ने सब बतलाया। हमें दाल में कुछ काला नजर आया।हमने उसे बतला दिया कि यह बेकार आदमी है। इसके चेले धन्धा करते है। हमने अध्यापक से कहा कि आप सब नाम-पते आदि गलत–सलत बताना। उसने चेलों से अपना नाम-पता सब गलत बतला दिया। दूसरे दिन महात्मा जी मिले तो उन्होंने भी वैसा ही बतलाया। अध्यापक तथा हम दोनों ये सब देखकर मुस्करा पड़े। यह उन चेलों ने देख लिया था। हमने किसी प्रकार धोती-कुर्ता समेटा और तौलिया लपेटकर दीर्घशंका का बहाना बनाकर वहाँ से भाग लिए। जाना था पूरब की ओर ओर पश्चिम की ओर निकल गये। किसी प्रकार प्राण बचाकर तीन दिन तक जंगल में भटकने के बाद अपने स्थान पर पहुँचे।

साथियों! हमने उस गुरू को भी देखा है, जो पंद्रह वर्ष की उम्र पूरी होने पर वसंत पंचमी के दिन हमारे पास आया था। उसने हमारे तीन जन्मों का दृश्य हमें दिखाया और हमें गायत्री उपासना में लगाया, जिसे चौबीस साल तक विधि-विधानपूर्वक किया। हमने अपने गुरुदेव से एक प्रश्न पूछा कि पूज्यवर हमारी एक शंका है। आप बतलाये कि गुरुओं की खोज में लोग छुट्टी लेते हैं, मेडिकल लीव लेते हैं, घर-बार छोड़ते है, तब जाकर शायद किसी कोने में कोई सच्चा गुरु मिलता है, परन्तु आप तो स्वयं हमारे पास चलें आये, यह क्या बात है? पूज्यवर ने बतलाया -बेटे! धरती क्या बादलों के पास जाती है या बादल स्वयं उसके पास आते है धरती पर? हमने कहा ’बादल स्वयं आते है एवं धरती पर बरस जाते है। बादलों को चलना पड़ता है। बादल स्वयं बरसते रहते है। उन्होंने कहा कि आकाश में बादलों की तरह सिद्धपुरुषों की भी कमी नहीं है, जो बादलों की तरह बरसने के लिए सुपात्र की खोज करते रहते है। दिव्य आत्माओं की वे तलाश करते रहते हैं।

मित्रों! आपने देखा होगा कि जब इस धरती पर मरी हुई लाश, कुत्ते आदि पड़े रहते है तो गीध, कौए, चील स्वयं आ जाते है तथा उसे नोंच-नोंच कर खा जाते है। उसी प्रकार भगवान, दिव्यपुरुष, संत भी ऊपर से तलाश करते है कि इस धरती पर कौन दिव्यपुरुष है, जिसे भगवान, गुरु संत की कृपा, वरदान, आशीर्वाद की आवश्यकता हैं और वहां वहाँ पर पहुँचकर सारा काम करते है। वे देखते है कि कौन दया के पात्र है। हम बद्रीनाथ, रामेश्वर जाते है, किन्तु वे भी हमारे पास आते है एवं हमारी परख करके चले जाते है। केवट की भक्ति, श्रद्धा महान थी। उसे देखकर भगवान राम स्वयं उसके पास आये और दर्शन दिया केवट रामचन्द्र जी के पास नहीं गया था। शबरी के पास रामचन्द्र स्वयं आये थे। शबरी नहीं गयी थी। श्रीकृष्ण गोपियों के पास गये थे तथा उन्हें प्यार दिया था। गोपियाँ नहीं गई थी। मित्रों! उसी प्रकार पात्रता देखकर गुरु शिष्य के पास आता है तथा उसे धन्य कर जाता हैं अगर वास्तव में पात्रता हो तो ऋद्धि-सिद्धियाँ पायी जा सकती है तथा निहाल हुआ जा सकता है।

भगवान के यहाँ अनन्त वैभव, कृपा अनुदान भरा पड़ता है। वह केवल ऐसे आदमी को मिलता है, जिनकी पात्रता है। एक बार हम पोरबन्दर-गुजरात गये थे और वहाँ गाँधीजी का जन्मस्थान देखा था। वह छोटा था। तब वहाँ छोटा-सा मकान था। परन्तु भगवान तो मालदार है। उसने गाँधी जी को धन्य कर दिया। आज वहाँ करोड़ों का स्मारक बना हुआ है। भगवान आते है। तो मनुष्य के सोचने का, विचार करने का, कार्य का ढंग बदल जाता हैं उसकी आवाज बदल जाती है। उसे सारे लोगों के प्रति श्रद्धा-निष्ठा हो जाती हैं वह दूसरों को प्यार देता है, दूसरों के दुखों को देखकर द्रवित होता है। गाँधी जी के अन्दर भगवान आये और जो भी आवाज उनने दी उसे पूरा होते देखा गया। भगवान की खुशामद करने से कोई काम नहीं चलेगा। पात्रता ही महान तत्व हैं जिसमें पात्रता होती है, सरकार उसे फिर बुला लेती है। उसको काम देती हैं प्रेम महाविद्यालय के प्रिंसिपल नब्बे वर्ष के होने के आये, परन्तु गवर्नमेंट ने उन्हें नहीं छोड़ा। हर साल उन्हें नया पद मिल जाता।

मित्रो! प्रतिभाओं की माँग, योग्यता की माँग, गुणों की माँग हर जगह होती है। हमारा भी यही उद्देश्य है कि आप आगे बढ़। हम चाहते है कि आपके अन्दर भी वे चीजें आ जाएँ, भगवान आ जाएँ तथा आपका विकास हो जाय। इसीलिए हमने आपका ब्याह भगवान से कराने का निश्चय किया है। परन्तु मित्रो, अगर कन्या अस्वस्थ हो, बीमार हो, कमजोर हो तो उसका विवाह अच्छे लड़के के साथ कैसे हो सकता है। उसी प्रकार आपकी पात्रता कमजोर हो तो भगवान कैसे आपकी अपनायेगा? कैसे स्नेह प्यार देगा? अगर राजकुमार से विवाह करना हो तो लड़की भी ठीक होनी चाहिए। अगर आप कोढ़ी है तो अच्छी लड़की आपको नहीं लेगी। आप अपाहिज है तो भगवान के साथ ब्याह नहीं कर सकते है। स्वस्थ, निरोग शरीर, स्वच्छ पवित्र मन की आवश्यकता है भगवान से ब्याह करने के लिए।

स्वच्छ मन, स्वस्थ, निरोग शरीर बनाने के लिए आपको यहाँ बुलाया गया है, ताकि आप भगवान से जुड़ सके। आपको हम गायत्री महापुरश्चरण करा रहे है। हमें प्रसन्नता है कि आप बहुत प्रातःकाल ही उठकर पूजा, ध्यान, जप प्राणायाम में लग जाते है। यह सब देखकर हमें खुशी होती है अगर आप इन करने वाले कर्मकाण्डों से कुछ प्रेरणा ले सकें तथा अपनी पात्रता का विकास कर सकें, अपने को जीवन्त बना सके, तो आप यकीन रखें कि आपका विवाह भगवान से हो जाएगा तथा आपके पास सारी ऋद्धि-सिद्धियाँ वैभव स्वतः आ जाएँगे, जिनके लिए आप रातदिन परेशान रहते है।

मित्रो! एक लड़की थी। उसका रिश्ता तय हो गया। उसकी गोद में एक नारियल भी लड़के वालों ने दे दिया था। बाद में लड़के वालों ने मना कर दिया। लड़की ने कमर कसी और लाठी लेकर उस गाँव में पहुँच गयी। उसने कहा कि अरे विवाह कर नहीं तो लाठी के सामने आ जा। मामला पंचायत तक पहुँचा। लड़की ने कहा कि इसने ही शादी पक्की की, नारियल भी दिया ओर अब ना कर रहा है। पंचायत ने फैसला किया कि विवाह इसी लड़की के साथ होगा।

मित्रो! हमने भी आपका विवाह भगवान से कराने का निश्चय किया है। आप भी उस लड़की की तरह दृढ़ निश्चय करके अपनी पात्रता को विकसित करके भगवान को प्राप्त करें। आपकी परेशानी दूर हो जाएगी। हम भगवान के पास होकर आये है। उनके पास ढेरों हीरे की अँगूठी -जवाहरात, बाल-बच्चे है, जिसे चाहे उठाकर ले आओ। मित्रो! यह विवाह किसी प्रकार घाटे का सौदा नहीं है। आप इसे निभाना। इसमें हमें प्रसन्नता होगी।

आज की बात समाप्त।

ॐ शान्ति!


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