आगन्तुक ने उनका हाथ पकड़ा (Kahani)

February 1987

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अमेरिका में स्वामी रामतीर्थ के प्रवचनों से प्रभावित होकर एक विश्वविद्यालय ने उन्हें पी0एच0डी0 की उपाधि से विभूषित करने का प्रस्ताव किया।

स्वामीजी ने उसे अस्वीकार करते हुए कहा स्वामी और एम0ए॰ यह दो उपाधियाँ तो पहले से ही मेरे ऊपर लदी है एक और अधिक बोझ लादने का मेरा तनिक भी मन नहीं है।

भगवान बुद्ध ने आनन्द को झरने से एक लोटा पानी लेने भेजा। पर उसी समय उस धारा में जंगली जानवर लोट लौट रहे थे। गंदे पानी को लिए बिना ही शिष्य वापस लौट आया।

तथागत ने उसे दुबारा भेजा और कहा- जानवरों को चले जाने देना और गंदगी तली में बैठ जाने की प्रतीक्षा में उसी किनारे पर खड़े रहो।

उतावली में ही असफलता दीखती है। पर प्रतीक्षावान समय पर अपने उद्देश्य की पूर्ति कर लेते हैं।

विग्रहराज ओर उनकी रानी हाथ से जो कमा पाते, उतने से ही गुजारा करने। राज्यकोष का प्रजा धन को छूते तक न थे। उनकी इस सत्यनिष्ठा से वरुण देव प्रसन्न थे। रानी कच्चे धागे की डोरी बनाकर उसी से कुएं से खींचा करती थी।

लोभ आते ही आत्मबल समाप्त हो जाता है।

चीन धर्मगुरु नान -- के आश्रम में एक विद्वान दार्शनिक आये उन्हें अपने अध्ययन पर बड़ा अभिमान भी था पर धर्म तत्व के रहस्यों के संबंध में कुछ सीखना चाहते थे।

नान ने आगन्तुक को चाय भरा प्याला पेश किया। जैसे ही पीना शुरू किया। नान एक केतली भरकर चाय और ले आये भरे प्याले में डालने लगे।

आगन्तुक ने उनका हाथ पकड़ा और कहा प्याला तो भरा हुआ है इसमें अब कुछ और नहीं आ सकता नान हंस पड़े और बोले तुम्हारे पास पूर्वाग्रह बहुत है। जब तक वह खाली नहीं हो जाने तब तक उसमें कुछ और नहीं डाला जा सकता।


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