सन्त बलहीरी (Kahani)

February 1987

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सन्त बलहीरी अपनी शिष्य मंडली के साथ सड़क पर जा रहे थे। ऊपर के मकान से किसी औरत ने टोकरा भरी गीली राख फेंक दी। हीरी के सारे कपड़े और शरीर लथपथ हो गये।

शिष्य उस औरत पर बिगड़े ओर मारने पर उतारू हो गये।

सन्त ने कहा-किसी पूर्व कर्म के फल स्वरूप आग बरसने वाली थी। खुदा का शुक्र है कि उसकी जगह कीचड़ का ही सामना करना पड़ा। विग्रहों को शान्ति से इस तरह बदला जाता है।

शाहजादा अलहीरी मकतब से पालकी में बैठकर लौट रहा था। रास्ते में घायल गधा पड़ा मिला। शहजादा उत्तर पड़ा उसने अपने कपड़े फाड़े और जहाँ-जहाँ जख्मों का कौए काट रहे थे, उन्हीं सभी जगहों पर पट्टी बाँध दी। गधे की आँखों में झाँका तो भगवान आशीर्वाद देते दिखे।

इस छोटे से पुण्य ने उनकी आत्मा को प्रेम रस में सराबोर कर दिया। वे घरेलू काम कन्धे से विरक्त होकर सूफी सन्त बन गये और जन-जन से मिल कर मुहब्बत और भलाई की नसीहतें देने लगे।

बगदाद का व्यापारी वहराम ऊँटों के काफिले लादकर विदेशों में व्यापार करने जाया करता था। एक बार उसका काफिला डाकुओं ने लूट लिया और सरी पूँजी चली गई।

उसकी दशा पर आँसू बहाने और सहानुभूति दिखाने अनेकों मित्र आये। आगन्तुकों का अहसान मानते हुए उसने कहा- “मेरा ईश्वर और भविष्य पर से विश्वास उठा नहीं है।” इतना बच रहने पर, मैं कंगालों की श्रेणी में नहीं गिना जा सकता।


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