काका कालेलकर उन दिनों जापान यात्रा पर थे। रास्ते में फुटपाथ पर पुरानी किताबें बेचने वाले लड़के को देखा। उन्हें एक किताब पसन्द आई। वह सस्ते मूल्य की थी सो खरीद ली।
इसके बाद लड़के ने पूछा - आप तो कोई विदेशी मालूम पड़ते हैं। शायद भारतीय हैं। किताब वापस कीजिए। मैं इतने ही पैसों में दुकानदार से नई किताब लेकर आपके होटल पर पहुँचा दूँगा।
काका ने आश्चर्य से पूछा- तुम लाभ क्यों छोड़ते हो और इतनी दौड़−धूप करने का क्या कारण है?
लड़के ने सहज उत्तर दिया- मैं नहीं चाहता कि जापानियों के अतिथि सम्मान पर कोई सन्देह करे। सद्व्यवहार के अभाव में तो जापान की विदेशों में बदनामी जो होगी।
काका सकते में आ गये और मन ही मन कहने लगे। काश! ऐसी ही भावनाएँ अपने देशवासियों में भी होती।