पाटलिपुत्र में उस वर्ष गंगा में भारी बाढ़ आई। पानी नगर में घुस गया। किसानों के घर और खेत डूब गये।
बाढ़ कैसे शान्त हो? उसका उपाय सिद्ध पुरुषों की मंडली से पूछा गया। उनने एक ही उपचार बताया कि कोई सच्ची पतिव्रता इस पानी में पैर डाले तो उस पुण्य से सन्तुष्ट होकर गंगा शान्त हो सकती है।
सच्ची पतिव्रता की खोज हुई पर किसी सुहागिन को अपनी स्थिति इस योग्य प्रतीत न हुई। खोज से निराशा हाथ लगी।
तब एक वेश्या आगे आई और उसने अपने को सच्ची पतिव्रता कहकर गंगा में पैर डाला फलतः बाढ़ शांत हो गई।
चकित दर्शकों का समाधान करते हुए वेश्या ने कहा - मैं जितने समय के लिए किसी को शरीर दान करती हूँ। उतने समय तन मन से उसकी सेवा करती हूँ। किसी अन्य की कल्पना तक नहीं करती।