अपने दुर्भाग्य का बखान (Kahani)

February 1987

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

पानी से भरे घड़े के मुँह पर खाली कटोरी रखी थी। सभी घड़े का पानी पी रहे थे पर कटोरी को खाली ही रहना पड़ रहा था। वह उपस्थित जनों से रहना पड़ा रहा था। वह उपस्थित जनों से अपने दुर्भाग्य का बखान कर रही थीं और घड़े की निष्ठुरता की भी।

घड़े ने कहा जो पानी लेता है वह अपनी स्थिति दाता से विनती रखता है। एक तुम हो जो सिर पर बैठी हो और मुँह आसमान की ओर किए हुए हो।

एक शिष्य किसी सन्त पुरुष की सेवा में नित था और ऐसा मंत्र चाहता था जिसके सहारे वह ऋद्धियां दिख सके। पर सन्त थे जो सब को राम नाम ही बताते थे शिष्य को चमत्कारी मंत्र चाहिए था। राम नाम तो मामूली बात है उसे निराशा होने लगी। गुरु ने उसकी मनःस्थिति को ताड़ लिया।

एक दिन गुरु ने उस शिष्य को एक चिकना पत्थर दिया और कहा इसे सब्जी वालों से पूछकर आओ कितने में खरीदेंगे। शिष्य दिन भर घूमा। बटखरे के काम में आ सकता है। यह मान कर उनने दो चार पैसे भर की कीमत लगाई।

दूसरे दिन वही पत्थर लेकर सुनारों के मुहल्ले में भेजा वहाँ उसका दाम एक हजार तक लगाया गया। तीसरे दिन उसे जौहरी बाजार में उसकी कीमत मालूम करने को कहा गया। कइयों को दिखाने पर उसकी कीमत बढ़ते-बढ़ते एक लाख तक पहुँच गई। गुरु ने शिष्य को समझाया पत्थर तो वही था पर पारखियों ने अपनी-अपनी जानकारी के आधार पर उसका मोल बताया। राम नाम है तो एक ही पर मान्यता के अनुरूप उसका मूल्य और महत्व घटता बढ़ना रहता है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles