धुनिया रुई के गोदाम में गया तो सन्त रह गया। इतनी मुझे धुननी पड़ी तो किस प्रकार पार पड़ेगी?
दुकान मालिक उसकी भीरुता को ताड़ गया और बोला-जब तुम धुनने का इरादा करोगे तो अनेकों साझेदार मिल जायेंगे। हिम्मत छोड़ दोगे तो थोड़ा काम भी भारी पड़ेगा।
माधवाचार्य ने वृन्दावन रहकर गायत्री के 14 महापुरश्चरण किये, इतने पर भी उन्हें कोई सफलता न मिली। निराश होकर वे काशी चले गये। वहाँ एक तांत्रिक से मरघट में रहकर भैरव सिद्ध करने में लग गये।
एक वर्ष में भैरव आये पर पीछे खड़े होकर वरदान माँगने की बात करने लगे। माधवाचार्य ने सामने दर्शन देने का अनुरोध किया तो जवाब मिला हम तांत्रिक देवता हैं। गायत्री जप से तुम्हें जो ब्रह्म तेज प्राप्त है उसके कारण सामने आते नहीं बनता।
माधवाचार्य ने कहा-यदि गायत्री साधना में ऐसा ही ब्रह्म तेज प्राप्त होता है तो 14 पुरश्चरण पर भी कोई सिद्ध क्यों नहीं मिली। भैरव ने उन्हें 14 जन्मों के दृश्य दिखाये। उनमें बन पड़े पापों के करने में ही अब तक के अनुष्ठान खप जाने की बात बताई ओर पाप कुसंस्कार कट जाने पर अब जो साधना करेंगे उससे सिद्धि मिलेगी। माधवाचार्य को नया प्रकाश मिला वे वापस वृन्दावन लौट आये। पन्द्रहवें पुरश्चरण पर उन्हें सिद्धि मिली। उस उपलब्धि के सहारे उन्होंने “माधव निदान” नामक आयुर्वेद का अद्भुत ग्रन्थ बनाया और कृतकृत्य हो गये।