दूरदर्शिता भी उतनी ही आवश्यक (Kahani)

February 1987

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तीन सिद्ध पुरुष एक साथ लम्बे प्रवास कार्यक्रम पर निकले। रास्ते में एक सिंह का अस्थि पिंजर पड़ा मिला। उन में दो ने अपनी सिद्धि का प्रदर्शन करने के लिए सिंह को जीवित कर दिखाने की ढानी। तीसरा इसके दुष्परिणामों को बताता रहा और जीवित रहा। पर वे इतने आवेश में थे कि उस चेतावनी पर ध्यान ही न दे सके।

एक सिद्ध ने अस्थि पिंजर पर माँस, चर्म, रक्त का कलेवर चढ़ा दिया। काया बन कर तैयार हो गई। दूसरे ने मंत्र पढ़ा ओर उसमें प्राण फूँक दिया।

अनर्थ सामने आया देखकर तीसरा पेड़ पर चढ़ गया और परिणाम की प्रतीक्षा करने लगा।

सिंह जीवित हुआ और दहाड़ मारकर दोनों सिद्ध पुरुषों पर टूट पड़ा देखते देखते वे उदरस्थ हो गये।

पेड़ पर बैठा तीसरा सिद्ध सिंह के चले जाने पर नीचे उतरा और रास्ते भर यही सोचता गया, सामर्थ्य प्राप्त करना ही नहीं, दूरदर्शिता भी उतनी ही आवश्यक है।


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