भीतर से खोखले (Kahani)

February 1987

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

एक ज्योतिषी ने सुकरात का कुरूप चेहरा देखकर उनके अनेकों दुर्गुण गिनाये, जो उसी पोथी के हिसाब से हो सकते थे।

सुकरात ने सुना और नम्रता से कहा- आप जो कहते हैं सो सच है। दुर्गुण मुझमें भी हैं, पर मैं अपने विवेक का अंकुश किये रहता हूँ ताकि उनमें से कोई उभर न पाये।

उन दिनों अकाल पड़ा था। उस गाँव का एक मास्टर स्कूल बन्द हो जाने से बेकार हो गया और भूखा करने लगा।

उन्हीं दिनों सरकस वाले उस रास्ते अपने सरंजाम समेत उधर होकर निकले। मास्टर ने गिड़गिड़ा कर कहा-मुझे भी कोई नौकरी दे दें। आपके पास तो इतने आदमी हैं जो काम बतायेंगे सो ही कर लूँगा।

सरकस वाले ने मास्टर को रख लिया काम पूछा तो मालिक ने कहा तुम्हैं शेर का चमड़ा पहनकर शेर बनना है। और उसी का पार्ट अदा करना है। अभ्यास कराया गया सो वह बताए हुए पार्ट ठीक से करने लगा।

एक दिन उस गाँव के समीप ही सरकस का खेल हुआ। मास्टर के विद्यार्थी और पड़ौसी भी बड़ी संख्या में उसे देखने पहुँचे। नकली शेर ने उन्हें देखा तो हड़बड़ा गया। यह लोग मुझे यह स्वाँग करते देखेंगे तो क्या कहैंगे? लज्जा और ग्लानि से पसीना छूटने लगा। शेर का जो पार्ट उसे रस्से पर चढ़कर करना था सो उससे बना नहीं और हड़बड़ा कर नीचे गिर पड़ा। जहाँ गिरा वहाँ इर्द गिर्द चार और शेर पिंजड़े से निकाल कर लाए गए थे उनके बीच अपने को पाकर उसे मौत दिखाई पड़ने लगी और बचाओ, बचाओ का शोर बुरी तरह मचाने लगा।

दर्शकों का कौतूहल दूना हो गया वे सरकस की अलौकिकता पर तालियाँ बजाने लगे। शेर किस तरह मनुष्य की बोली बोलता है। उसे देखकर उनने उस तमाशे की भूरि-भूरि प्रशंसा की। रस्से पर से गिरने की असफलता पर उनने ध्यान तक न दिया।

नकली शेर को इस प्रकार चीखते चिल्लाते देखकर-पिंजड़े में से निकाले गए असली शेर एक - एक करके उसके पास आए और बारी-बारी से सान्त्वना देते हुए अपने-अपने पिंजड़ों में जा बैठे। मास्टर ने चिल्लाना बन्द करके सन्तोष की साँस ली और पाया कि वह अकेला नहीं यहाँ पूरे सरकस के सभी शेर उसी की तरह नकली हैं।

इन दिनों शेर जैसे मूर्धन्य दीखने वाले उच्च पदासीन लोग आत्म प्रदर्शन तो बहुत करते हैं, पर भीतर से खोखले और बनावटी होने से परीक्षा की घड़ी आने पर सन्तुलन गवाँ बैठते हैं।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles