एक कसाई की वध-शाला से छूट कर गाय भाग गई। कसाई पकड़ने के लिए पीछे-पीछे दौड़ा।
गाय एक सन्त आश्रम के पीछे धनी झाड़ियों में घास चर रही थी और कसाई की आँखों से ओझल थी।
कसाई ने सन्त से पूछा इधर से गाय निकली है क्या? आपने उसे देखा है क्या?
सन्त सोचने लगे सच बोलने से गाय का प्राण जायेगा। इसलिए परिणाम को देखते हुए शब्द छल करने में कोई हर्ज नहीं।
बार बार पूछने पर उनने उतर दिया जिसने देखा है वह बोलता नहीं जो बोलता है उसने देखा नहीं। कसाई इस ब्रह्मज्ञान की भाषा का अर्थ न समझ सका और आगे चला गया।
ऋषि पत्नी ने इस रहस्य वचन का कारण पूछा तो उनने कहा गाय का प्राण बचाने के लिए शब्द हल किया गया। सो जो कहा गया वह असल भी नहीं था। नेत्रों ने गाय देखी थी। वे बोलती नहीं। जीभ बोलती है देखती नहीं। इस प्रकार सत्य वचन की चिन्ह पूजा भी हो गई और नग्न सत्य के कारण होने वाला अनर्थ भी हल हो गया।