हृदय-हृदय को मरे पुलक से, देव! रचो कुछ ऐसा गान। आत्मा-आत्मा झूम उठे फिर, आज रचो कुछ ऐसी तान॥
जीवन क मरुथल को दे दो, स्नेह-सुधा की निर्मल धार। मन के मुरझाये मधुबन में, ले आओ तुम पुनः बहार॥
तिनके, आशा के जोड़ो, बस जाये फिर से उजड़ा नीड़। पाल धैर्य का बाँधो! डुबा न पाये तूफानों की भीड़॥
जन-जन में उत्साह भरो वह, दिखे न कोई भी मुख म्लान। हृदय-हृदय को भरे पुलक से, देव! रचो कुछ ऐसा गान॥
निशि बीते शंकाओं की, चमके विवेक का नया प्रभात। भ्रम के बादल छटे, दमकने लगे, उषा का स्वर्णिम गात॥
रूढ़िवाद की राख हटे, तो दहके तथ्यों के अंगार। करें सत्य, शिव, सुन्दर मिलकर, नव जीवन का नव शृंगार॥
मनुज, मनुज निभ्राँत हो सके, बाँटो सबको ऐसा ज्ञान। हृदय-हृदय को भरे पुलक से, देव! रचो कुछ ऐसा गान॥
संवेदन का अमृत पिलाओ, कुँठित उर पा जायें प्राण। बहे गंध उल्लास भरो बन, दो विषाद से सबको त्राण॥
स्वाति बूँद ममता की डालो, खोलो सखे! हृदय की सीप। हो चहुँ ओर प्रकाश प्रेम का, जलता रहे स्नेह का दीप॥
मानस-मानस में जग जाये, औरों की पीड़ा का भान। हृदय-हृदय को भरे पुलक से, देव! रचो कुछ ऐसा गान॥
*समाप्त*