विद्या सीखकर आया (Kahani)

August 1987

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

एक तान्त्रिक ऐसी विद्या सीखकर आया कि उस अनुष्ठान की पूर्णाहुति रात्रि को बारह बजे हो। मंत्र पूरा होते ही उबलते पानी में मक्का के दाने डाल जायें तो वे सभी मोती बन जाय।

तान्त्रिक अपने काम में लग गया। पत्नी को पास बिठा लिया और सावधान कर दिया कि वह जैसे ही पूर्णाहुति सूचक हुँकार भरे वैसे ही खौलती हाँडी में मक्का डाल दें। विधान चल पड़ा।

पत्नी स्वभाव की आलसिन भी थी और अविश्वासी भी। उसने उपेक्षा पूर्वक सुना। पर आज्ञा पालन में भलाई देखी सो चूल्हे में आग जलाकर पानी चढ़ा दिया। मक्का का कटोरा भी पास था। रात बीतते-बीतते उन्हें नींद आने लगी सो पैर सिकोड़ कर वहीं सो गई।

पूर्णाहुति की हुँकार तान्त्रिक ने कई बार की, पर पत्नी तो सोई हुई थी। वह उठा, जगाया और पानी में मक्का डाला। पर कुछ हुआ नहीं। समय निकल चुका था। अविश्वास और आलस्य ने सारा प्रयास व्यर्थ कर डाला।

दूसरे दिन पड़ौस की बुढ़िया एक कटोरा भर कर मोती लेकर ताँत्रिक के पास आई। उन्हें सौंप दिये और कहा-आपकी बात मैं दीवार के छेद में से सुन रही थी। चूल्हे पर पानी उबालती रही और हुँकार की प्रतीक्षा करती रही। आपका संकेत सुनकर मैंने तत्काल पानी में मक्का डाल दी। उसी से बने यह मोती हैं।

जागरुकता और तत्परता सफलता की अनन्य सहायिका है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles