हजरत मुहम्मद के अनेक विरोधी थे। पर वे उन सबकी परवाह न कर निरन्तर अपना धर्मप्रचार का कार्य करते रहते थे। विरोधी उन्हें इससे विरत करने के लिये तरह-तरह के प्रयास करते थे।
एक बार हजरत मुहम्मद अपने घर जा रहे थे तो उनके एक विरोधी ने ऊपर गन्दा कूड़ा-कचरा उनके सिर पर फेंक दिया। मुहम्मद साहब ने कोई विरोध नहीं किया और चुपचाप अपने रास्ते पर आगे बढ़ गये। अब उस व्यक्ति का यह नित्य का क्रम बन गया। जब भी हजरत मुहम्मद वहाँ से गुजरते, वह ऊपर से कूड़ा फेंक देता। अनेक दिनों तक ऐसा होता रहा। एक दिन सहसा इस क्रम का उल्लंघन हो गया। मुहम्मद साहब ने पड़ौसियों से पूछा ‘भाई वह व्यक्ति जो मुझ पर कूड़ा डालता था आज दिखाई नहीं दे रहा।’
पड़ौसियों ने बताया कि वह बहुत बीमार है। यह सुनते ही मुहम्मद साहब तुरन्त उसके घर गये, उसे दवा दिलवायी और कई दिनों तक उसकी सेवा सुश्रूषा करते रहे।
मुहम्मद साहब की इस उदारता और विशाल हृदयता ने विरोधी का मन जीत लिया। उसने उनके पैरों पर गिर कर अपने दुष्कर्मों के लिये क्षमा माँगी और धर्म प्रचार में उनका सहायक बन गया।