अन्धा सड़क के किनारे बैठकर भीख माँगा करता और किसी प्रकार अपनी गुजर करता।
राह चलते एक पथिक ने अन्धे के दुर्भाग्य को कोसा। बात अन्धे ने भी सुन ली। बोला-अभागा मैं अकेला ही नहीं। अन्य लोग भी हैं जो आँखें होते हुए भी अपनी गतिविधियों का परिणाम नहीं सोचते और पग-पग पर ठोकरें खाते हैं।