एक सम्पन्न घर की कन्या बड़ी रूपवती गुणवती थी। विवाह योग्य हुई तो उसने घोषणा की कि जो दौड़ में मुझसे आगे निकल सकेगा उसी के साथ विवाह करूंगी।
अनेकों इच्छुक आये और बाजी हार कर वापस लौटते गये।
एक दिन एक दुर्बल किन्तु चतुर धावक शर्त में सम्मिलित हुआ। दौड़ का मार्ग निर्धारित था। मार्ग के दाहिने भाग में युवती को दौड़ना था। सो युवक ने उस भाग मार्ग पर जहाँ-तहाँ सोने के सिक्के बिखेर दिये।
दौड़ आरम्भ हुई। युवती की नजर सिक्के पर पड़ी। उसका मल ललचाया। दौड़ती रहने के साथ-साथ वह सिक्के भी बीनती चली। दौड़ में रुकावट पड़ती रही और बाजी युवक ने जीत ली।
अनमने मन से उसे कुरूप युवक से विवाह तो किया पर मन ही मन यही कहती रही कि लालच ने मुझे अभीष्ट से वंचित कर दिया।