प्राणियों की सक्षमता और कुशलता

August 1987

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इस पृथ्वी पर मनुष्य तो मात्र 500 करोड़ ही रहते हैं, पर उनकी तुलना में हजारों गुने अन्यान्य प्राणी रहते हैं। इनमें से पशु-पक्षी, मगर, मछली जैसे परिचित प्राणी तो थोड़े से ही हैं। वे भी मनुष्यों की तुलना में 100 गुने अधिक हो सकते हैं, पर सूक्ष्म जीवी नेत्रों की दृश्य सीमा से बाहर वालों की संख्या तो इतनी अधिक है कि उनकी गणना नहीं, कल्पना ही की जा सकती है। जल, थल, और नभ में जो भी असंख्यों हैं, उनकी उपस्थिति से कोई जगह खाली नहीं है। पर उनके संबंध में हम बहुत ही कम जानते हैं। उनके स्वार्थों के साथ अपने स्वार्थ मिलाकर चलने की बात तो कभी सोचते नहीं। सोचते भी हैं तो शोषण ही ध्यान में रहता है। संरक्षण और पोषण नहीं।

भूमि की उर्वरता इन्हीं सूक्ष्म जीवियों पर निर्भर हैं। वे ही वनस्पति के उगने और बढ़ने में सहायता करते और संतुलन बनाये रहते हैं। यदि उनकी संख्या कम हो जाय तो प्रकृति विकृति में बदल जाती है और वनस्पति को नष्ट करने वाले कृमि कीटक उपज पड़ते हैं। कीटनाशक औषधियों के द्वारा उनका विनाश करने का प्रयास किया जाने लगा, पर प्रकृति को तो अपने संतुलन का ज्ञान है। उसने उन कीटकों को यह अभ्यास करा दिया कि वे इन मारक विषों को ही पचाने लगें और उनका नशे की तरह सेवन करके उल्टे अधिक ढीठ बनने लगें।

प्रकृति ने सभी प्राणियों को भावनाशील और कर्त्तव्य परायण बनाया है। जो व्यतिरेक करता है वह अपनी करनी का फल भोगता है। बच्चा माता का दूध ठीक तरह पीता है तब तक वह दुलार से छाती पर चिपकाये रहती है, पर जब वह उद्दण्डता पर उतारू होता है और स्तनों को काट कर लहूलुहान करने का तरीका अपनाता है तो माँ उसके लिए समुचित उपाय अपनाती है। बोतल का दूध पिलाती है और छाती लगाने की बजाय पालने में झुलाने का प्रबंध करती है। प्रकृति सभी जीवधारियों का भरण-पोषण ठीक प्रकार करती है। उनमें प्रत्येक को इतनी क्षमता और बुद्धिमत्ता भी देती है कि कठिन परिस्थितियों में भी अपना काम चलाते रहें। मनुष्य का यह अहंकार ठीक नहीं कि उसकी चतुरता असाधारण एवं सर्वोपरि है। जीव को अपने-अपने प्रयोजन के उपयुक्त ऐसी क्षमता एवं भावनाएँ प्रदान की हैं कि उन्हें देख कर आश्चर्यचकित रह जाना पड़ता है।

जिस प्रकार पृथ्वी की उर्वरता बढ़ाने वाली प्रजातियों का बाहुल्य है, उसी प्रकार मनुष्य के साथ रहने वाले कीड़े मकोड़े भी उसे स्वच्छता, सुव्यवस्था का पाठ पढ़ाते हैं। साथ ही गलती करने पर करारा पाठ भी पढ़ाया है। शरीर की स्वच्छता ठीक न रखने पर जूँ उत्पन्न हो जाते हैं।

बिस्तर को अस्वच्छ रखने पर खटमल आ घुसते हैं। घर में अनाज या दूसरी वस्तुएँ फैली बिखरी फिरें और गंदगी फैलायें, इसकी सफाई का काम चूहों के जिम्मे है। मकान में सीलन उत्पन्न होने पर जो कृमि उत्पन्न होते हैं उन्हें छिपकली, तिलचट्टे ठिकाने लगाते रहते हैं। जहाँ-तहाँ सड़न कीचड़ से उत्पन्न होने वाले जन्तुओं को मक्खी-मच्छर निगलते रहते हैं। मक्खी गंदगी बटोरती है पर स्वयं असाधारण रूप से स्वच्छ रहती है। दोनों पंखों से शरीर पर कहीं भी मैल जमा नहीं होने देती।

वन में अनावश्यक रूप से बढ़ते हुए घास पत्ते को वन जीव खाते रहते हैं। वनजीवों की संख्या अनावश्यक रूप से न बढ़ने पाये, इसलिए सिंह व्याघ्र उनका नियंत्रण रखते हैं, पर साथ ही इस बात का भी ध्यान रखते हैं कि अनावश्यक रूप से मारकाट न की जाय। जब पेट खाली होता है तभी आखेट करता है, अन्यथा पेट भरा होने पर अन्य वन जीव उसके निकट ही घास चरते रहते हैं न किसी को डराया जाता है न सताया।

वात्सल्य सभी मादाओं में बहुलता से देखा गया है। वे अपने बच्चों को दुलार, पोषण एवं संरक्षण देने में महिलाओं से पीछे नहीं रहतीं। अण्डे सेने के समय वे उन्हें छाती से लगाये बैठी रहती हैं नर पत्नी तथा बच्चे के प्रति अपने दायित्व को निबाहता है, उनके लिए आहार जुटाना तथा सुरक्षा में चौकस रहता है। कंगारू, बन्दर, चिंपांजी आदि मादाएँ, अपने बच्चों की कैसा संभाल करती हैं यह देखते ही बनता है। भेड़िया मादा को मनुष्य बालक मिल जाय तो वह उसे खाती नहीं वरन् अपने बच्चे की तरह पाल लेती है। ऐसी घटनाएँ अनेकों देखी गई है। हथिनी जब बच्चा देती है तो बच्चे को सारा झुण्ड अपनी सम्पत्ति मानता है, बीच में लेकर चलता है और कोमल वनस्पतियाँ ढूँढ़-ढूँढ़ कर उसे खाने को देते हैं। क्योंकि मादा का दूध इतना पर्याप्त नहीं होता कि उसका पेट भर सके। पक्षियों के बच्चे जब तक उड़ने लायक नहीं हो जाते तब तक उनके माता-पिता चोंच में खाना पहुँचाते रहते हैं। सारस प्रकृति के पक्षी पति-व्रत, पत्नी-व्रत निबाहते हैं। जोड़ा बिछुड़ जाने पर वे पुनर्विवाह नहीं करते। कछुए, घड़ियाल, जैसे जल जन्तु अपने अण्डों को बालू में गाढ़ देते हैं और जब पकने की हलचल होती है तभी निकालकर उन्हें स्वावलम्बी बनाने में जुट जाते हैं। बिल्ली अपने बच्चों को न केवल शिकार मारना सिखाती है वरन् मुहल्ले के सभी घरों के लिए इसलिए फिरती है कि वे वहाँ की परिस्थितियों से अवगत हो सकें। कंगारू मादा अपने पेट में बनी थैली में ही बच्चों को दूध पिलाती है, और पालती है।

बुद्धिमत्ता की दृष्टि से सभी जीव जन्तुओं में अपने अपने काम की बुद्धि है। खटमलों को यदि चारपाई के पाये पर मिट्टी का तेल आदि लगाकर रोका जाय तो वे दीवार के सहारे छत तक पहुँच जाते हैं और जिस बिस्तर में पहुँचना है उस पर ऊपर से कूद पड़ते हैं। झींगुर अपने पैरों को रगड़ कर ऐसी ध्वनि उत्पन्न करता है जो गायक को ही नहीं सुनने वालों को भी लुभाती है। तिलचट्टे रसोईघरों, पाखाने आदि में फैली हुई गंदगी को साफ करने में लगे रहते हैं, वे अपने को छिपाये रहने की कला में भी बहुत प्रवीण होते हैं।

शारीरिक शक्ति की दृष्टि से कई प्राणी मनुष्य की तुलना में कहीं अधिक बढ़−चढ़ कर हैं। नील गाय की एक छलाँग 12 मीटर तक देखी गई। कंगारू एक घण्टे में तीस मील की चाल से दौड़ सकता है। बिना पंख वाले आस्ट्रिच पक्षी की दौड़ 80 किलोमीटर प्रति घंटा देखी गई है। चीता सबसे बड़ा धावक है। वह 20 सेकेंड में 650 मीटर की दूरी पार कर लेता है।

मक्खी की एक छलाँग शरीर की तुलना में 60 गुनी होती है। इस अनुपात से यदि मनुष्य कूद सके तो उसकी हर छलाँग 120 मीटर की होनी चाहिए। मछलियों में से तेज दौड़ाने वाली 1 घंटे में 120 किलोमीटर तक दूरी पार कर लेती हैं। आर्किटिकटैन पक्षी उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव तक की यात्रा बिना रुके करता है। इसमें उसे 4 महीने लगते हैं और 40 हजार किलोमीटर दूरी पार करनी पड़ती है।

शिकागो क्षेत्र में एक घनी पूँछ वाली बिल्ली पाई जाती है-स्कंक। यह दौड़ने, नाचने और पेड़ों की चोटियों तक जा पहुँचने में माहिर होती है। वह किसी संकट में घिर जाने पर अपनी पूँछ में से भी विषैली गैस निकालती है कि पीछा करने वाले शिकारी बेहोश तथा अंधे तक हो जाते हैं।

पशु-पक्षियों की अपनी-अपनी साँकेतिक भाषाएँ भी हैं, जिससे वे अपने स्वजातियों से विचारों का आदान-प्रदान कर लेते हैं। तोता तो 60 तरह के शब्द बोल सकता है। दूसरे पशु-पक्षियों तथा कीट पतंगों में भी 15-20 प्रकार के शब्द बोल सकने की क्षमता होती है। इससे वे एक दूसरे को अपने मनोभाव प्रकट करते रहते हैं। मधुमक्खियाँ इस संबंध में बहुत माहिर होती है। चींटी तथा दीमक भी।

प्रकृति न मनुष्य को ही नहीं अन्य प्राणियों में अनेक प्रकार की क्षमताएँ दी हैं। कुत्ते की घ्राण शक्ति अन्यों की अपेक्षा कहीं अधिक होती है।


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