यजमान की पत्नी का स्वर्गवास हो गया। वह इस असामयिक निधन पर शोकातुर होकर लगातार रोता रहा। पुरोहित उसे सान्त्वना देने गये। ब्रह्मज्ञान सुनाते रहे और उसके शाक को मूर्खता बताते रहे।
कुछ दिन बाद पुरोहित की लंगड़ी गाय मर गई। बच्चों को उसी के दूध का सहारा था। इस क्षति से पण्डित जी को भारी चोट लगी। आँखों से आँसू बहने लगे और हिचकी बंध गई।
जिनने पुरोहित को यजमान से ब्रह्म ज्ञान बघारते सुना था। उनमें से कुछ पड़ोसी गाय के निधन पर किये जा रहे विलाप को भी सुनकर आ पहुँचे। उनमें से कई ने कहा-देखा, अपने पराये का भेद।