पोरुएः काया और मन के दर्पण

August 1987

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कहते हैं कि लिफाफे को देखकर मजमून पहचाना जा सकता है। मानवी काया एवं मन भी एक ऐसा बन्द लिफाफा है, जिसे विशिष्ट विधा के ज्ञाता देखकर अन्दर की बात बता देते हैं। व्यक्ति की भाव मुद्रा, चलने-बैठने का ढंग, बातचीत आदि से भी बहुत कुछ उसके बारे में पता चलता है। कुछ व्यक्ति हथेली की रेखाओं को देखकर भविष्य बताते हैं, एवं चिकित्सक इन रेखाओं (डर्मेटोग्लाइफिक्स) के आधार पर रोगों का निदान करते देखे जाते हैं। किन्तु अब उँगली के पौरुवों-नाखूनों पर अंकित रेखाकृति तथा धब्बों को देखकर चिकित्सक व्यक्ति की शारीरिक, मानसिक स्थिति का विश्लेषण करने लगे हैं।

चिकित्सा शास्त्री यूजिन शीमान की मान्यता है कि मधुमेह रक्तवाही नलिकाओं के रोग तथा मनोविकारों के प्रारम्भिक लक्षण नाखून रूपी दर्पण में पढ़ जा सकते हैं। उन्होंने स्कीजोफ्रेनिया (मनो-अवसाद संबंधी रोग जिसमें व्यक्ति निरन्तर आत्म-हत्या का विचार करता एवं कर भी लेता है) से पीड़ित व्यक्तियों के नाखूनों की रक्त शिराओं की बनावट से ही अस्सी प्रतिशत रोगियों की डायग्नोसिस की एवं यह भी बताया कि चिकित्सा उपचार से किसके किस सीमा तक रोग मुक्त होने की आशा है। उन्होंने पाया है कि ऐसे रोगियों के पौरुवों पर अपरिपक्व टेड़ी मेढ़ी रक्त शिराएँ होती हैं जैसे-जैसे ये सुव्यवस्थित होती जाती है, रोगी स्वस्थ होता चला जाता है।

डॉ. हाँफ मैन (बर्कले यूनिवर्सिटी) का मत है कि नाखून पतले होते चले जाने का अर्थ हैं रक्त संचालन की प्रणाली दोष पूर्ण होना। ऐसे रोगी आगे चलकर हृदय में रक्तावरोध अथवा मस्तिष्क में रक्तवाही नलियों में थक्का जमने से लकवाग्रस्त हो सकते हैं।

फेफड़ों के ट्यूमर, क्षयरोग तथा यकृत विकारों के होने की जिनमें संभावना रहती है, उनके नाखूनों को “हिप्पोक्रेटिक” नाम दिया जाता है। इनका रंग नीला होता जाता है तथा वे ऊपर की ओर मुड़े होते हैं। इसी विधा के एक विशेषज्ञ डॉ. बी पारडो काँस्टेलों के अनुसार जैसे ही व्यक्ति रोग मुक्त हो जाता है, नाखून अपनी पूर्व स्थिति में पहुँच जाते हैं।

जिन व्यक्तियों के नाखून चम्मच की आकृति के होते हैं, उन्हें चर्म रोग, सिफिलिस, अपच अथवा मानसिक कमजोरी का शिकार मानना चाहिए। ऐसे लोग शीघ्र निर्णय नहीं ले पाते। एक चिकित्सक डॉ. व्यू ने नाखूनों पर आड़ी गहरी रेखाओं को इन्फ्लुएंजा, टाइफ़ाइड, स्कारलेट फीवर तथा न्यूरोसिस का प्रतीक चिन्ह माना है। उनके नाम पर इन रेखाओं को व्यू रेखाएँ कहा जाने लगा है। नाखूनों पर जो श्वेत रेखाएँ पाई जाती हैं, उनसे शरीर में आर्सेनिक विष होने, तेज बुखार अथवा हृदय रोगों की संभावना रहती है। नाखूनों पर यदि खड़ी रेखाएँ हों तो त्वचा विकार, थाइराइड की अतिसक्रियता अथवा गठिया रोग का चिन्ह उन्हें मानना चाहिए। जिनकी अंतःस्रावी ग्रन्थियाँ पूरी तरह विकसित नहीं होती, उनके नाखून बहुत छोटे होते हैं। वे कुतरे हुए, पतले दिखाई देते हैं। स्नायविक तनाव की स्थिति में नाखूनों पर श्वेत रंग के बिन्दु दिखाई देने लगते हैं। तनाव मिटते ही वे स्वतः गायब हो जाते हैं। पौरुओं पर यदि श्वेत रेखाएँ उभरने लगें तो ऐसा व्यक्ति लोकेषणा ग्रस्त, अत्यधिक महत्वाकांक्षी माना जाना चाहिए। मध्यमा उँगली पर श्वेत बिन्दु उभरने का अभिप्राय है-लम्बा प्रवास एवं काले बिन्दु दिखाई देने का अर्थ है-आसन्न विपन्नताएँ टल गई। सफदे बिन्दु तर्जनी उँगली के पौरुवों पर उभरने से यह आशा करनी चाहिए कि व्यक्ति को धन, यश एवं जन सम्मान मिलेगा। यदि इसके स्थान पर काले बिन्दु दिखें तो समझना चाहिए कि हाथ से अधिक खर्च होने, दरिद्रात के आ घेरने एवं सम्मान मिट्टी में मिलने का यह संकेत है।

कुछ कहा नहीं जा सकता कि हस्त रेखा एवं पौरुवों के विशेषज्ञों ने जो उपरोक्त मान्यताएँ बताई हैं, कहाँ तक सही हैं, पर यह तो हो ही सकता है कि ऐसी कोई संभावना दिखाई दे तो व्यक्ति पहले ही सचेत हो जाय, ताकि समस्याओं के घुमड़ते बादल छँट सकें, एवं रोग शरीर व मन को अपना घर न बना सके। जहाँ यह सही है कि ये चिन्ह अंदर की स्थिति बताते हैं, वहाँ यह भी सही है कि प्रचण्ड मनोबल एवं पुरुषार्थ से इन चिन्हों व हथेली की रेखाओं को बदला भी जा सकता है।


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