कितना जानते हैं, अपने आपके बारे में आप?

August 1987

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

एक पिन की नोंक पर लाखों बिठाये जा सकें, ऐसे भ्रूण कलल से इस काय पिण्ड का “एकोऽहं बहुस्यामि” की प्रतिज्ञानुसार विकास होता है और देखते-देखते एक मानव शरीर जन्म ले लेता है। इस शरीर में कितना कुछ वैभव भरा पड़ा है, सामान्यतः इसकी जानकारी हमें नहीं होती। हम इसे मल-मूत्र की गठरी भर मान बैठते एवं शिश्नोदर पारायण जीवन जीते हुए चंदन का कोयला बनाते रहते हैं। इसकी स्थूल संरचना ही हमें यह सोचने पर बाध्य कर देती है कि विराट् का लघु रूप ही जब इतना असीम भाण्डागार अपने अन्दर छिपा बैठा है तो उस विभु की, परब्रह्म की तो कल्पना ही नहीं की जा सकती। कुछ विलक्षण तथ्य इस प्रकार हैं-

(1) एक विकसित मानवी काया में लगभग 650 माँसपेशियाँ, 100 संधियाँ, साठ हजार मील लम्बी रक्तवाही नलिकाएँ तथा लगभग 1 खरब 13 अरब स्नायु कोशिकाएँ होती हैं।

(2) हमारे शरीर में जन्म के समय 300 हड्डियाँ होती हैं। इनमें से 94 विकास के साथ-साथ बाल्यकाल में परस्पर जुड़ जाती हैं। इस प्रकार वयस्क मानवी काया में 206 हड्डियाँ होती हैं। भार सँभालने के मामले में ये ग्रेनाइट से भी जबरदस्त शक्तिशाली हैं। एक माचिस के आकार का ब्लॉक इनके समुच्चय से बनाया जाय तो वह नौ टन भार सँभालने की क्षमता रखता है।

(3) विकसित मनुष्य के अण्डकोश (टेस्टीकल्स) प्रतिदिन एक करोड़ से भी अधिक नये स्पर्म सेल्स (शुक्राणु) बनाते रहते हैं। ये इतने हैं कि 6 माह की अवधि में सारी धरती को घेर सकें।

(4) औसत जीवन काल में हमारा हृदय लगभग बीस अरब बार धड़कता है एवं इतने समय में 5 अरब लीटर (110 मिलीयन गैलन) रक्त का पम्पिंग कर देता है। यहाँ तक की निद्रावस्था में भी हथेली के आकार का हमारा हृदय लगभग 340 लीटर प्रति घण्टे शुद्ध रक्त सारे शरीर में भेजने का कार्य जारी रखता है। यह मात्रा इतनी है जिससे कि एक औसत एम्बेसडर कार का पेट्रोल टैंक हर सात मिनट में भरता रह सकता है। इस पम्पिंग के कार्य में इसे इतना परिश्रम करना पड़ता है कि यह एक औसत भार की मोटर कार को 50 फीट ऊँचा उठा सके। हृदय जो औसतन 70 से 72 बार प्रति मिनट धड़कता है, जरूरत पड़ने पर व्यायाम की पराकाष्ठा की स्थिति में 200 बार प्रति मिनट भी धड़क सकता है।

(5) हमारे दोनों फेफड़ों में कुल मिलाकर 30 खरब बहुत पतली सूक्ष्म रक्तवाही नलिकाएँ (केपीलरीज) होता है, जिनका काम होता है-शरीर की कार्बनडाइ ऑक्साइड को प्रश्वास द्वारा बाहर कर श्वास के माध्यम से ऑक्सीजन को रक्त में प्रविष्ट करा देना। यदि इन्हें सिरे से सिरा मिलाकर फैलाया जाय तो ये चौबीस सौ किलोमीटर का क्षेत्रफल घेर लेंगी।

(6) आमाशय से प्रवाहित अम्ल इतने साँद्र व तीव्र क्षमता वाले होते हैं कि वे जस्ते को पिघला दें। किन्तु शरीर में वे इस अम्ल से कोई नुकसान इसलिए नहीं पहुँचता कि इस अंग आमाशय की अन्दर की सतह से पाँच लाख जीवकोश प्रति मिनट बदलते रहते हैं। यहाँ तक कि हर तीसरे दिन अंदर की पूरी झिल्ली आमूल-चूल बदल जाती है।

(7) हर गुर्दे के अन्दर 10 लाख फिल्टर (नेफ्रान्स) होते हैं। इन फिर्ल्टस की रक्तवाही कोशिकाओं को सिरे से सिरा मिलाकर फैलाया जाय तो पृथ्वी की विषुवत् रेखा के चारों और एक चक्कर लगाया जा सकता है। प्रति मिनट दोनों 1300 मिली लीटर रक्त को छानने की प्रक्रिया सम्पन्न करते हैं। पूरे साठ वर्ष की आयु तक ये लगभग चार करोड़ लीटर रक्त छान चुके होते हैं।

(8) हड्डियों में अवस्थित मज्जा हर सेकेंड 12 लाख लाल रक्त कोशिकाएँ बनाती व परिवहन हेतु रक्त में छोड़ती रहती है। प्रत्येक की जीवनावधि 100 से 120 दिन की होती है। अपने पूरे जीवनकाल में मनुष्य अपनी मज्जा से आधा टन भार के बराबर रक्त कोशिकाएँ उत्पन्न कर चुका होता है।

(9) शरीर का सबसे बड़ा अवयव है-त्वचा, जिसने 20 वर्ग फीट का क्षेत्र घेर रखा है। यह लगभग हर पचास दिन में एक बार अपना पूरा कायाकल्प कर लेती है। नयी कोशिकाएँ पुरानी का स्थान ले लेती है। औसतन हर व्यक्ति अठारह किलोग्राम भार की त्वचा साँप की केंचुल की तरह गिरा चुका होता है।

(10) सबसे छोटी माँसपेशी शरीर में कान के अन्दर होती है। यह लगभग एक मिलीमीटर लम्बी होती है। यहाँ पर स्थित आँतरिक अवयव ही मात्र ऐसे हैं जो रक्त से पोषण नहीं पाते, एक विलक्षण रस द्रव्य में सतत् डूबे रहते हैं ताकि धड़कन की ध्वनि ही इन्हें नष्ट कर बहरा न  बना दे।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118