सम्राट अशोक कलिंग विजय करके लम्बी अवधि बाद घर लौटे। इस बार राज्यारोहन का उत्सव बड़े शानदार ढंग से मनाया जा रहा था।
अशोक अपनी माता का बहुत सम्मान करते थे। इस अवसर पर उनका विशेष आशीर्वाद पाने के लिए वे उनके कक्ष में पहुँचे। और संक्षेप का अपना प्रयोजन तथा कलिंग देश के ढाई लाख शत्रुओं का वध करने का विवरण कह सुनाया।
राजमाता फफक-फफक कर रोने लगीं। बोली उन मारे ढाई लाखों में एक तू भी रहा होता तो मेरे ऊपर और तेरे परिवार पर कैसी बीतती?
माता के रुदन से अशोक का दृष्टिकोण उलट गया। उन्होंने उत्सव आयोजन को रद्द कर दिया। अहिंसा के मार्ग पर चलने के लिए वह भगवान बुद्ध का उपदेश लेने पहुँचा। और जो कमाया था तथागत को सौंप दिया।
माता की करुणा का था यह चमत्कार।