लक्ष्मी जी देवताओं के आलस्य प्रमाद से दुःखी होकर दानवों के यहाँ चली गई, दानव सम्पन्न हो गये और देवता दरिद्रों की तरह दुःखी रहने लगे।
विष्णु भगवान ने इस अनर्थ को देखा, और लक्ष्मी जी को बुला कर स्थान परिवर्तन का कारण पूछा।
लक्ष्मी जी ने कहा- देव, भूल गये आपने जब मेरा वरण किया था तब मेरा पूरा नाम उद्योग लक्ष्मी था। उद्योग ही मुझे प्रिय है। आप जब तक उद्योगी हैं तभी तक मैं आपके पास हूँ। प्रमाद बरतेंगे तो आप को छोड़कर अपने पितृ गृह समुद्र में वापस लौट जाऊँगी। फिर देवताओं की तो बात ही क्या?