जापान की भूमि आये दिन भूकम्प आने के लिए कुख्यात है। इसलिए वहाँ लोग भारी मकान नहीं बनाते। लकड़ी और शेडों के माध्यम से ऐसे घर बनाते हैं, जिनके धराशायी होने पर जान-माल की कम से कम क्षति हो। कारखानों का भी मरम्मत से काम चल जाय। किन्तु जापान से लगे हुए चीनी क्षेत्र की स्थिति भयावह है। वहाँ जमीन के नीचे कई दिशाओं में छितराई हुई ऐसी पट्टियाँ जलती हैं जिनमें भीतर ही भीतर कई प्रकार हलचलें चलती रहती हैं और कभी-कभी तो भयंकर भूकम्पों की विनाश लीला उपस्थित करती हैं।
पिछली शताब्दी तक इन्हें दैवी प्रकोप माना जाता था और किसान अपने क्षेत्र सुरक्षित बने रहने के लिए मनौती मनाया करते थे। पीछे विज्ञान की प्रगति ने इसके कारणों को ढूँढ़ निकाला और यह अन्वेषण कर लिया कि उनका पूर्वाभास प्राप्त किया जा सके। काफी समय पूर्व जानकारी मिल जाने से वे लोग आपत्ति ग्रस्त क्षेत्र की सीमा छोड़कर खुले मैदानों में चले जाते। बाँस और बोरियों की सहायता से उनके नीचे गुजारा करते हुए उतना समय बिता लेते जितने दिनों में आपत्ति काल टल जाता।
चांग काई शेक के समय से लेकर माओत्से तुंग तक के काल में इस अनुसन्धान पर विशेष जोर दिया जाता रहा है कि विनाशकारी भूकम्प आने के क्षेत्र और समय की भविष्यवाणी कर सकता बन पड़े। साथ ही यह भी बताया जा सके कि उसकी शक्ति कितनी प्रचण्ड या हलकी होगी।
भविष्य कथन कभी गृह गणित पर निर्भर रहता था और उनसे बचने के लिए देवताओं की मनौती मनाने के अतिरिक्त और कोई उपाय न था। किन्तु अब वह पद्धति बिलकुल बदल गई है। जिन पट्टियों में भूकम्प की सम्भावना विदित हो चुकी है, उनमें भू-चुम्बकीय सिद्धान्त पर आधारित अनेकों वेधशालाएं बनाली गई हैं। वे जमीन के भीतर चल रही हलचलों की ऐसी सूक्ष्म सूचनाएं ऊपर परत पर भिजवाती हैं कि भूकम्प की लहर कितने क्षेत्र को प्रभावित करेगी, किस दिशा से किस दिशा को चलेगी, कितने समय ठहरेगी और उसकी विस्फोट क्षमता कितनी शक्तिशाली होगी।
यह सूचना मिलते ही बेतार के तार से उस क्षेत्र में विभिन्न प्रकार के साइरन बजने आरम्भ हो जाते हैं। इस प्रदेश के निवासों को सिखाया गया है कि किस प्रकार के भोंपू बजने का क्या तात्पर्य होता है। जहाँ विस्फोट की अधिक सम्भावना होती है वहाँ खतरे की लाल बत्तियाँ जलने लगती हैं और जहाँ संकट का अन्तिम दौर होता है वहाँ हरी बत्तियाँ जगमगाने लगती हैं ताकि लोग घर छोड़कर दिशा और अवकाश के समय की सही जानकारी प्राप्त कर सकें।
सरकारी सामान से ऐसे मोमजामे के मुसाफिर खाने बना दिये जाते हैं, जिनके नीचे लोग संरक्षण प्राप्त कर सकें। भोजन के लिए भुने हुए सत्तू जैसी वस्तु पहले से ही तैयार रखी जाती है। बाजार में भी बिकती है और लोग घरों में भी बनाकर तैयार रखते हैं। यह पचने में हलका होता है। बच्चे, बूढ़े और बीमार इसके सहारे सामयिक संकट की घड़ी निकाल सकते हैं।
पिछली शताब्दियों में भूकम्पों ने समूचे चीन व जापान क्षेत्र में कितनी क्षति पहुँचाई थी। इस शताब्दी में वेधशालाओं एवं अन्तरिक्षीय उपग्रहों के सहारे पूर्व ज्ञान प्राप्त करने और भविष्यवाणी करने की सुविधा ने हानि का अनुपात 95 प्रतिशत कम कर दिया है। साथ ही यह भी अनुमान लगने लगा है कि किसी क्षेत्र को संकट से मुक्ति मिल गई और किसमें नये सिरे से शुरुआत होने जा रही है। इस प्रकार चीन की तरह सर्वत्र भविष्य कथन उपयोगी हो सकता है। पर वह होना चाहिए वैज्ञानिक आधार पर। पंचांगों के सहारे ही जाने वाली फलित ज्योतिष जानकारी तो प्रायः तीर-तुक्का भर होती है।